अफ्रीका में बढ़ी आकाल की आशंका, ग्लोबल वार्मिंग से तापमान हो रही है तेजी, कई जानवरों की मौतः रिपोर्ट

ईस्ट अफ्रीका में क्लाइमेट चेंज की वजह से ईस्ट अफ्रीका में सूखा पड़ने की आशंका 100% बढ़ गई है। इसका खुलासा वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) की रिपोर्ट में हुआ है।

Updated: Jun 17, 2023, 07:22 AM IST

क्लाइमेट चेंज की वजह से ईस्ट अफ्रीका में सूखा पड़ने की आशंका 100% बढ़ गई है। इसका खुलासा वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में यह कहा गया है ढाई साल से अफ्रीका में एवरेज से कम बारिश हुई और ज्यादातर वक्त मौसम गर्म रहा। इस वजह से फसलें मुरझा गईं और जल गईं। कई जानवरों की मौत भी हो गई।

रिपोर्ट में कहा गया- जलवायु परिवर्तन ने दुनिया के सबसे गरीब इलाकों में से एक ईस्ट अफ्रीका (हॉर्न ऑफ अफ्रीका) को अकाल के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। हॉर्न ऑफ अफ्रीका रीजन में जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया और सोमालिया जैसे देश बसे हैं। यहां हजारों लोग भुखमरी और पानी की कमी से जूझ रहे हैं।

सोमालिया में सिविल वॉर, पिछले साल 43 हजार से ज्यादा मौतें

सोमालिया में सिविल वॉर चल रहा है। वहां के हालात लड़ाई के कारण पहले से ही खराब थे, लेकिन सूखे ने हालात और बिगाड़ दिए। इससे देश में अस्थिरता बढ़ गई। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में 43 हजार से ज्यादा लोगों की मौत सूखा पड़ने के कारण हुई। इनमें ज्यादातर 5 साल से कम उम्र के बच्चे थे। 

18 वैज्ञानिकों की एक टीम ने क्लाइमेट चेंज पर रिसर्च की। इसमें बाढ़, हीटवेव जैसे एक्स्ट्रीम वेदर चेंज की वजह जानने पर फोकस किया गया। वैज्ञानिक जानते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से क्लाइमेट चेंज हो रहा है, लेकिन अलग-अलग मौसम के बिगड़ने के पीछे एक ही वजह- ग्लोबल वॉर्मिंग कैसे हो सकती है। इसका रोल क्या है, ये जानने के लिए रिसर्च हुई।

आसान शब्दों में कहें तो ये बिल्कुल स्मोकिंग और कैंसर की तरह है। सब जानते हैं कि स्मोकिंग की वजह से कैंसर होता है, लेकिन स्मोकिंग करने वाले हर शख्स को कैंसर नहीं होता और हर कैंसर मरीज स्मोकिंग करता हो, ये भी जरूरी नहीं।

वैज्ञानिक भी ग्लोबल वॉर्मिंग और अलग-अलग मौसम के बदलावों के बीच के लिंक को गहराई से समझना चाहते हैं। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर सिमुलेशन की मदद से ग्लोबल क्लाइमेट और हाईपोथेटिक क्लाइमेट की तुलना की।
इसे आसान भाषा में ऐसे समझें- हमारे एटमॉस्फियर में अरबों टन कार्बन डाइऑक्साइड फैली हुई है। ये ग्लोबल क्लाइमेट की असलियत है। इस क्लाइमेट को हाईपोथेटिक क्लाइमेट यानी बिना किसी तरह के उत्सर्जन वाले क्लाइमेट से कम्पेयर किया गया।