म्यांमार में तख्तापलट के संकेत, आंग सान सू की हिरासत में

म्यांमार की सत्ताधारी पार्टी के कई और नेताओं को भी हिरासत में लिए जाने के संकेत हैं, सेना ने पिछले दिनों हुए चुनाव में धांधली के आरोप लगाए थे

Updated: Feb 01, 2021, 04:06 AM IST

Photo Courtesy: Patrika
Photo Courtesy: Patrika

म्यांमार में एक बार फिर से चुनी हुई लोकप्रिय सरकार का तख्तापलट करके सैनिक तानाशाही लागू किए जाने की आहट मिल रही है। देश की सबसे बड़ी नेता आंग सान सू की और सत्तारूढ़ पार्टी के कई प्रमुख नेताओं को आज सुबह छापेमारी के दौरान हिरासत में लिए जाने की ख़बर है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़ सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के एक प्रवक्ता ने अपने नेताओं को हिरासत में लिए जाने की जानकारी दी है। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के प्रवक्ता के मुताबिक सेना ने यह कदम चुनी हुई सरकार के साथ बढ़ते तनाव के बाद उठाया है।  

हालांकि इससे पहले म्यांमार की सेना ने उन विवादित बयानों को बीते दिनों खारिज कर दिया था जिन्हें तख्तापलट की चेतावनी माना जा रहा था। सेना ने दावा किया कि मीडिया ने उनके बयानों को ग़लत ढंग से पेश किया है। दरअसल, म्यांमार की सेना के एक प्रवक्ता ने पिछले सप्ताह कहा था कि पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में  बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। सेना ने यह भी कहा था कि अगर इस बारे में उनकी शिकायतों को नजरअंदाज किया गया, तो तख्तापलट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बयान के बाद म्यांमार में राजनीतिक चिंताएं बढ़ गईं थीं।

कमांडर इन चीफ सीनियर जनरल मिन आंग लैंग ने बुधवार को अपने भाषण में वरिष्ठ अधिकारियों से कहा था कि अगर कानूनों को सही ढंग से लागू नहीं किया गया, तो संविधान को रद्द किया जा सकता है। देश के बड़े शहरों की सड़कों पर फ़ौजी वाहन तैनात किए जाने से भी इन आशंकाओं को बल मिला था। लेकिन शनिवार को सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया कि मीडिया का यह दावा सही नहीं है कि सेना ने संविधान को रद्द करने की चेतावनी दी है। बयान में दावा किया गया कि मिन आंग लैंग के भाषण को सही संदर्भ में नहीं लिया गया। असल में उन्होंने सिर्फ़ संविधान के बारे में अपने विचार ज़ाहिर किए थे।

म्यांमार में पिछले साल आठ नवंबर को हुए चुनाव में सत्तारूढ़ 'नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी' को 476 में से 396 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इसके बाद 'स्टेट काउंसलर' आंग सान सू की को फिर से सरकार बनाने का मौका मिल गया था। सेना के समर्थन वाली 'यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट' पार्टी को केवल 33 सीटें मिली थीं। इस करारी हार को पचा पाने में नाकाम सेना ने कई बार सार्वजनिक तौर से चुनाव में धांधली के आरोप लगाए थे। उसने सरकार और केन्द्रीय चुनाव आयोग से नतीजों की समीक्षा करने का भी आग्रह भी किया था। लेकिन इलेक्शन कमीशन ने यह कहते हुए इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था कि देश के चुनाव में कोई धांधली नहीं हुई है।

लगता है इन हालात में सेना ने एक बार फिर से सत्ता की लगाम सीधे-सीधे अपने हाथ में लेने का मन बना लिया। आंग सान सू की को दशकों तक सैनिक तानाशाही ने नज़रबंदी में रखा था, जिसके कारण वे दुनिया भर में मशहूर हुईं और उन्हें नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन पर रोहिंग्याओं पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों पर परदा डालने और अत्याचारियों का समर्थन करने के गंभीर आरोप लगे। म्यांमार से लाखों रोहिंग्याओं के पलायन से दुनिया भर में उनकी छवि को बड़ा धक्का लगा है। कभी मानवाधिकारों की बड़ी चैम्पियन समझी जाने वाली सू की अब दुनिया के बहुत से लोगों की नज़र में वह हैसियत खो चुकी हैं। ऐसे में देखना होगा कि इस बार हिरासत में लिए जाने के बाद उन्हें पहले की तरह अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलता है या नहीं।