WHO चीफ की चेतावनी, अंतिम महामारी नहीं है कोरोना वायरस

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस ने कहा है कि सारे फंड्स कोरोना महामारी पर ही खर्च कर देने में समझदारी नहीं है, उन्होंने सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर निवेश बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया

Updated: Dec 27, 2020, 05:26 PM IST

Photo Courtesy: NDTV
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जिनेवा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रमुख टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा है कि कोरोनो वायरस संकट अंतिम महामारी नहीं है, इसलिए सारे फंड्स इसी से लड़ने पर खर्च कर देने में समझदारी नहीं है। इसके बाद और भी महामारियां आएंगी, उनके लिए तैयार रहने पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। टेड्रोस ने यह बात रविवार को आयोजित महामारी के लिए तैयारी के अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Epidemic Preparedness) पर जारी एक वीडियो संदेश में कही है। उनका कहना है कि दुनिया लंबे समय से घबराहट और उपेक्षा के एक चक्र में घिरी हुई है। कोरोना महामारी का यह दौर सबक सीखने के लिए है।'

टेड्रोस ने कहा कि सभी देशों को सभी प्रकार की आपात स्थितियों को रोकने, पता लगाने और उन्हें कम करने के लिए तैयार रहने की क्षमता विकसित करने पर निवेश करना चाहिए। उन्होंने सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने, खास तौर पर प्राथमिक स्वास्थ्य पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया। संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख ने कहा कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में निवेश बढ़ाकर ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे बच्चे और उनके बच्चों को एक सुरक्षित दुनिया विरासत में मिले। टेड्रोस की यह सलाह भारत जैसे देश के लिए बेहद अहम है, जहां बड़ी आबादी की सेहत सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के भरोसे रहती है। 

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने आगे कहा, 'हम एक आपदा से निपटने के लिए पैसे खर्च करते हैं और जब वह खतरा खत्म हो जाता है तो हम उसके बारे में भूल जाते हैं। अगले आने वाले खतरे को रोकने के लिए कुछ भी नहीं करते हैं। यह अदूरदर्शिता खतरनाक है। अगर हम ऐसा ही करते रहे तो भविष्य की चुनौतियों के लिए पहले से तैयार नहीं हो पाएंगे।

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, 'इतिहास गवाह है कि यह आखिरी महामारी नहीं होगी, महामारियां जीवन का एक तथ्य हैं। इस महामारी ने मनुष्यों के स्वास्थ्य, जानवरों और धरती के आपसी जुड़ाव और गहरे रिश्तों को उजागर किया है। जलवायु परिवर्तन से मानव अस्तित्व को खतरा है। यह हमारी पृथ्वी को कम रहने योग्य बना रहा है।'