भोपाल की EID : हिन्दू हलवाईयों से मीठी होती थी ईद

हिन्दू हलवाई तरह तरह की मिठाईयां बनाकर नवाब परिवार को भेंट करते थे और अपने मुस्लिम दोस्तों को भी बांटते थे।

Publish: May 26, 2020, 12:26 AM IST

Photo courtesy : the greater middle east
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भोपाल में ईद का त्यौहार मनाने की एक ऐतिहासिक रिवायत रही है। रियासत काल से ही शहर में जोश-ओ-खरोश के साथ ईद मनाई जाती रही है। इस शहर की गंगा-जमुनी तहजीब का ही असर रहा है कि यहां हिन्दू हलवाईयों की मिठाईयों के बिना मीठी ईद की मिठास अधूरी मानी जाती रही है। नवाब काल में शहर के मशहूर हलवाई चिंतामणि और अन्य हलवाई मीठी ईद पर अपनी मिठाईयों का तोहफा नवाब परिवार और अपने मुस्लिम मित्रों को पेश करते थे।

शहर के इतिहासकार रिजवान खान बताते हैं कि ईदगाह में नमाज के बाद सदर मंजिल व बाद में अहमदाबाद पैलेस कोहेफिजा में दरबार लगता था,जहां ईद का जश्‍न मनाया जाता था। इसमें शहर के गणमान्य नागरिक जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनो ही शामिल होते थे। हिन्दू हलवाई तरह तरह की मिठाईयां बनाकर नवाब परिवार को भेंट करते थे और अपने मुस्लिम दोस्तों को भी बांटते थे। शहर के आम लोग अपने घरों में ईद का जश्‍न अपने ही तरीके से मनाया करते थे। बुजुर्ग औरतें ईद आने से कई महीनों पहले से ही हाथ से सैवईंयां तैयार करती थीं,जिन्हें भट्टी में सिकवाया जाता था। उस दौर में लोगों की पर्चेसिंग पावर कम होती थी,जिससे लोग केवल साल में एक बार ईद पर ही नए कपड़े और जूते खरीदते थे। इतिहासकार रिजवान खान कहते हैं कि बाद में ईद का त्यौहार मनाने की तौर तरीकों में काफी तब्दीलियां आई हैं,लेकिन इस त्यौहार की मिठास अब भी बरकरार है।

जब शहरकाजी ने नहीं किया इंतजार, बेगम हुईं नाराज

क्रीब 120 साल पहले ईदगाह के निर्माण के समय से ही ईद की नमाज मुख्य रूप से ईदगाह में ही अदा की जाती रही है। भोपाल इतिहास के जानकार और नवाब परिवार से करीबी ताल्लुक रखने वाले सैयद कमर अली ईदगाह में ईद की नमाज के वक्त हुए एक पुराने वाक्ये को याद कर बताते हैं कि भोपाल की शासिका नवाब सुल्तान जहां बेगम ईदगाह में नमाज अदा करने पहुंचती थीं। उस समय ईदगाह में महिलाओं के नमाज अदा करने के लिए अलग से व्यवस्था होती थी। उस दौर में सीहोर में ब्रिटिश रेसीडेंट रहा करते थे,जो रियासत में ब्रिटिश राज के सबसे बड़े अधिकारी होते थे। एक बार ईद पर ब्रिटिश रेसीडेंट ने नवाब सुल्तान जहां बेगम से ईद की नमाज देखने आने की बात कही,जिसे सुल्तान जहां बेगम ने खुशी के साथ कुबूल कर लिया। लेकिन ईद के दिन ब्रिटिश रेसीडेंट नमाज के समय तक ईदगाह नहीं पहुंचे, सुल्तान जहां बेगम ने शहर काजी को पैगाम भिजवाया कि रेसीडेंट का इंतजार किया जाए और नमाज थोड़ी देरी से अदा की जाए,लेकिन उसूलों के पक्के तत्कालीन शहरकाजी ने न तो नवाब सुल्तान जहां के हुक्म की परवाह की और न ही ब्रिटिश रेसीडेंट के गुस्से का ख्याल किया। उन्होंने नमाज तय वक्त पर ही अदा कराई। हालांकि पहले तो सुल्तान जहां बेगम इस बात से नाराज हुईं, लेकिन बाद में उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने शहरकाजी से माफी मांगी।