दफ्तर दरबारी: आईएएस में सत्ता का खेला, एक के दो पुनर्वास, दूसरे को मिला न ढेला
MP News: जब दो आईएएस में ही सत्ता संघर्ष हो तो मामला पेचिदा हो जाता है। यदि ये आईएएस सीनियर हों तब बात और भी दिलचस्प हो जाती है। मध्य प्रदेश में आईएएस के बीच ऐसे ही सत्ता संघर्ष में एक को दो-दो सफलता मिली तो दूसरों को खाली हाथ रहना पड़ा।
प्रशासनिक गलियारे में आईएएस का रसूख कुछ ओर ही होता है। यही कारण है कि सीएस पद से रिटायर होने के बाद वरिष्ठ आईएएस को तुरंत ही पुनर्वास के रूप में कोई महत्वपूर्ण पद मिल जाता है। लेकिन 30 सितंबर इको रिटायर हुई पूर्व सीएस वीरा राणा के साथ तो जैसे खेल हो गया। उनके लिए जो पद सजा हुआ था वह एसीएस पद से रिटायर हुए आईएएस मनोज श्रीवास्तव को मिल गया। मनोज श्रीवास्तव 2021 में रिटायर हुए थे और उनका कनेक्शन देखिए कि उनका रिटायरमेंट के तीन साल बाद दो-दो बार पुनर्वास हुआ।
वर्ष 2025 की शुरुआत में सरकार ने पूर्व सीएस वीरा राणा सहित कई आईएएस को दरकिनार कर मनोज श्रीवास्तव को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया। मनोज श्रीवास्तव की नियुक्ति चौंकाने वाली रही क्योंकि सरकार ने उन्हें कुछ माह पहले ही प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग के सदस्य बनाया था। इतना ही नहीं जब 30 सितंबर को वीरा राणा मुख्य सचिव पद से रिटायर हुई थी तब उन्हें नया राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए जाने के आदेश जारी ही होने वाले थे। राज्य निर्वाचन आयोग में इसकी तैयारी भी कर ली गई थी और तत्कालीन राज्य निर्वाचन आयुक्त बीपी सिंह ने स्टाफ को विदाई पार्टी भी दे दी थी।
आईएएस वीरा राणा का इस पद पर पुनर्वास इसलिए भी तय माना जा रहा था क्योंकि आमतौर पर सीएस रहे अधिकारी को रिटायर होने के बाद इसी पद पर नियुक्ति दी जाती है। लेकिन दिल्ली प्रतिनियुक्ति पर गए अनुराग जैन को मुख्य सचिव बनाया गया तो समीकरण बदल गए। वीरा राणा को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाने का आदेश रूक गया। प्रशासनिक जगत में यह भी चर्चा रही कि वीरा राणा मुख्य सचिव पद के लिए राजनीतिक पसंद कभी थी ही नहीं। चुनाव आचार संहिता के कारण चुनाव आयोग ने वरिष्ठता के आधार पर उन्हें नियुक्ति दी थी। फिर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उन्हें छह माह की सेवावृद्धि भी दिलवाई लेकिन उसके बाद तालमेल गड़बड़ा गया।
जब अक्टूबर में वीरा राणा की नियुक्ति का आदेश टला तो उनके अलावा रिटायर्ड एसीएस मलय श्रीवास्तव व अन्य अधिकारियों ने भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद के लिए अपनी दावेदारी जताई थी लेकिन अंतिम निर्णय आईएएस मनोज श्रीवास्तव के पक्ष में हुआ।
1987 बैच के आईएएस मनोज श्रीवास्तव अप्रैल 2021 में रिटायर हुए थे। तब से लेकर अब तक उन्हें सरकार ने कोई पद नहीं दिया लेकिन प्रदेश में निजाम बदलने के बाद वे फिर मुख्यधारा में आ गए। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव के पद से रिटायर हुए मनोज श्रीवास्तव ने इंदौर, झाबुआ कलेक्टर, भोपाल संभागायुक्त, जनसंपर्क आयुक्त तथा सीएम सचिवालय में सचिव और प्रमुख सचिव, संस्कृति व वाणिज्यिक कर विभाग प्रमुख सचिव के रूप में कार्य किया है।
आईएएस मनोज श्रीवास्तव की गिनती कुशल प्रशासक तथा राजस्व के मामलों के जानकार के रूप में ही नहीं होती बल्कि वे ख्यात लेखक भी हैं। सुंदरकांड पर उनकी किताबों की लंबी शृंखला है। वे बीते तीन सालों में वे संघ विचार की खुल कर पक्षधरता के लिए भी चर्चा में रहे हैं।
पूर्व सीएस वीरा राणा के पुनर्वास के अरमान तो अब ठंडे पड़ गए हैं लेकिन मलय श्रीवास्तव सहित अन्य आईएएस अब विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति प्रक्रिया से आस लगा कर बैठ गए हैं।
एक साल में छह बार भी दफ्तर नहीं गए, भ्रष्टाचार पर जांच की आंच
प्रदेश में परिवहन घोटाला सामने आने के बाद विपक्ष लगातार बीजेपी सरकार और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार पर हमलावर है। नित नए खुलासों के कारण परिवहन विभाग के अदने से कर्मचारी से लेकर शीर्ष स्तर तक की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में सरकार ने अब परिवहन आयुक्त को बदला है लेकिन चर्चा है कि यह बदलाव कार्यप्रणाली के कारण नहीं बल्कि खुद परिवहन आयुक्त यानी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर पर भ्रष्टाचार की आंच आने के कारण किया गया है।
डॉ. मोहन यादव सरकार ने 4 फरवरी 2024 को डीपी गुप्ता को परिवहन आयुक्त तथा कुछ दिनों बाद एडीजी उमेश जोगा को अपर आयुक्त नियुक्त किया था। यह पहली बार था जब परिवहन विभाग में एडीजी रैंक के दो अधिकारियों को एक साथ पदस्थ किया गया था। लेकिन बीते दिनों छापों में करोड़ों की अवैध संपत्ति के खुलासे के बाद सिद्ध हो गया है कि दो सीनियर आईपीएस की नियुक्ति के बाद भी ढर्रा नहीं सुधरा।
परिवहन आयुक्त रहने के दौरान डीपी गुप्ता की कार्यप्रणाली कई कारणों से चर्चा में रही। डीपी गुप्ता अपने 11 माह के कार्यकाल में छह बार भी परिवहन मुख्यालय ग्वालियर नहीं गए। वे भोपाल से ही दफ्तर संचालित कर रहे थे। इतना ही नहीं लोकायुक्त ने परिवहन आयुक्त डीपी गुप्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज की है। लोकायुक्त के विधि सलाहकार ने परिवहन विभाग विभाग को पत्र लिखकर शिकायत का जांच प्रतिवेदन 28 नवंबर तक देने को कहा था। इस जांच और परिवहन घोटाले की आंच में आए ट्रांसपोर्ट कमिशनर डीपी गुप्ता को सरकार ने नई नियुक्ति भी नहीं दी है।
करप्शन का सिस्टम ऐसा ना बचूंगा ना बचा पाउंगा
कांग्रेस प्रदेश की बीजेपी सरकार में फैल रहे भ्रष्टाचार को लेकर आरोप लगाती रही है कि इस सिरे से लेकर उस सिरे तक सब शरीके जुर्म है। बीजेपी इन आरोपों का खंडन भी करती रही है लेकिन मैदान से कई ऐसी सूचनाएं, साक्ष्य सामने आ जाते हैं जिनके कारण भ्रष्ट आचरण का खंडन करना मुमकिन नहीं होता। ऐसा ही हुआ जब श्योपुर के एक सरकारी अधिकारी का वीडियो वायरल हुआ।
बताया गया कि यह वीडियो श्योपुर जिले के एसडीओ का है, जिसमें वे रेत माफियाओं से वसूली की रकम से संबंधित चर्चा कर रहे हैं। इस बातचीत में कथित अधिकारी कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि 'सभी घाट से 7 लाख लाओ, डीएफओ, सीसीएफ को देने के बाद मुझे बचेगा डेढ़ लाख... सिस्टम से चलना पड़ेगा नहीं, तो ना तू बचेगा ओर नाहीं मैं...'।
इन वीडियो के बाद यह आरोप फिर लगाया गया है कि श्योपुर में सरकारी कर्मचारी-अधिकारियों के संरक्षण में अवैध रेत का धंधा फलफुल रहा है। यही अवैध खनन होने देने के बदले पैसा वसूली से जुड़ा यह वीडियो वायरल हुआ है। राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण के एसडीओ योगेन्द्र कुमार पारधे के इस कथित वीडियो के वायरल होने के बाद इसकी सत्यतता की पुष्टि एवं निष्पक्ष जांच हेतु समिति गठित करने के लिए मुख्य वन संरक्षक वन वृत ग्वालियर को पत्र भेजा गया है। मतलब एक सप्ताह होने को है और अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जब वीडियो में दिखाई दे रहे अधिकारी पर ही कार्रवाई नहीं हो पाई है तो वीडियो में जिस सिस्टम का जिक्र किया जा रहा है, उसमें बदलाव तो मुश्किल है।
नए साल में प्रशासनिक सर्जरी, मजबूरी या मौका
प्रदेश में अफसर प्रशासनिक सर्जरी का इंतजार कर रहे हैं। इंतजार लंबा होता जा रहा है। अब मुख्यमंत्री मोहन यादव, मुख्य सचिव अनुराग जैन और पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना की बैठक में प्रशासनिक सर्जरी का स्वरूप तय किया गया है। संभव है कि यह 6 जनवरी के बाद प्रशासनिक फेरबदल हो जाएगा। 6 जनवरी का इंतजार इसलिए कि इस दिन तक मतदाता सूची सुधार का काम चल रहा है। तब तक जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर का तबादला संभव नहीं है।
प्रदेश के मुखिया के साथ बैठक में यह तय हुआ है कि 3 साल से एक ही स्थान पर जमे मैदानी अफसरों को बदला जाएगा। इसके साथ ही मंत्रालय में भी अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों के दायित्व में फेरबदल होना है। लेकिन मामला 3 साल तक जमे अफसरों को हटाने तक सीमित नहीं है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक माह पहले समीक्षा बैठक में सीएस अनुराग जैन से कहा था कि वे आईएएस अफसरों के कामकाज का आकलन करें। इस समीक्षा के आधार पर प्रशासनिक जमावट होगी। यह फेरबदल मनचाही पोस्टिंग पाने का मौका भी है। अफसरों ने इसी अवसर को समझते हुए अपने सूत्रों से संपर्क शुरू कर दिया है ताकि तबादलों में मुराद पूरी हो सके।