आदिवासी नेतृत्व की कमी से जूझ रही बीजेपी, MP में नया आदिवासी चेहरा लाने की तैयारी

कांग्रेस से आयातित नेता बिसाहू लाल सिंह और सुलोचना रावत के सहारे काम चला रही बीजेपी, पार्टी के पास प्रदेश स्तरीय आदिवासी चेहरा नहीं, सुमेर सिंह सोलंकी को बढ़ाया जा सकता है आगे

Updated: Jan 17, 2023, 06:05 AM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व की कमी से जूझ रही बीजेपी अब नया नेतृत्व तैयार करने की जुगत में है। जानकारी के मुताबिक राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के बाद इस संबंध में निर्णय लिया जा सकता है। दरअसल, मध्य प्रदेश में भाजपा के पास केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं है। कुलस्ते भी प्रदेशभर में अपनी पकड़ नहीं बना पाए हैं। ऐसे में बीजेपी राज्य में मजबूत आदिवासी चेहरा लाना चाहती है।

बताया जा रहा है कि पार्टी अब मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य सुमेर सिंह सोलंकी पर दांव लगाने की तैयारी में है। सोलंकी को ताकतवर बनाने के लिए उन्हें प्रदेश संगठन में या मोदी कैबिनेट में भी जगह दी जा सकती है। बता दें कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए नेता दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद से पार्टी बड़े चेहरे की कमी से जूझ रही है। भाजपा को आज भी कांग्रेस से आयातित नेता बिसाहू लाल सिंह और सुलोचना रावत के सहारे काम चलाना पड़ रहा है।

लंबे समय से आदिवासी चेहरे के नाम पर शिवराज कैबिनेट में विजय शाह मंत्री जरूर हैं, लेकिन उनकी निमाड़ के बाहर कोई पकड़ नहीं है। आदिवासियों के बीच उनका प्रभाव नहीं है। अन्य मंत्री प्रेम सिंह पटेल हों या मीना सिंह, इनका प्रभाव विधानसभा क्षेत्र के बाहर नहीं है। भाजपा ने ओमप्रकाश धुर्वे को राष्ट्रीय पदाधिकारी बनाया, लेकिन वे भी प्रदेश में कोई पहचान नहीं बना पाए।

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भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर जिन आदिवासी चेहरों को आगे बढ़ाया, वे भी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष रहे गजेंद्र सिंह पटेल को भी पार्टी ने आगे बढ़ाया, पर वे लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से सक्रिय नहीं हैं। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पटेल को खरगोन संसदीय सीट से टिकट दिया था।

मंडला की जिला पंचायत अध्यक्ष रही संपतिया उईके को भी बीजेपी ने राज्यसभा सदस्य इसी उद्देश्य से बनाया था कि आगे चलकर वे मंडला लोकसभा सीट पर फग्गन सिंह कुलस्ते का विकल्प बन सकें, लेकिन पार्टी का यह प्रयोग भी फेल हो गया। इसी क्षेत्र में भाजपा ने एक पढ़े-लिखे युवक नरेंद्र मरावी पर भी दांव लगाया। मरावी पहले कांग्रेस की राजेश नंदिनी के खिलाफ शहडोल लोकसभा चुनाव हारे और फिर कांग्रेस के फुंदेलाल मार्को के खिलाफ पुष्पराजगढ़ से विधानसभा चुनाव हार गए। बहरहाल अब देखना यह होगा कि चुनाव पूर्व बीजेपी आदिवासी नेतृत्व को मजबूत करने के लिए किसे आगे करती है।