इंदौर प्रशासन पर एकपक्षीय कार्रवाई का आरोप, 15 अल्पसंख्यकों के मकान ढहाने का इल्ज़ाम

मंगलवार को चांदनखेड़ी गांव में राम मंदिर रैली के दौरान हिंसक झड़प हुई थी, जिसके ठीक एक दिन बाद प्रशासन ने 15 अल्पसंख्यक परिवारों के घर ढहा दिए

Updated: Jan 01, 2021, 06:03 AM IST

Photo Courtesy : Twitter
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इंदौर। मध्य प्रदेश में इस समय कुछ संगठनों द्वारा राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के नाम पर जगह-जगह रैलियां निकाली जा रही हैं। ऐसी ही एक रैली मंगलवार को इंदौर से 58 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गौतमपुरा थाने के एक मुस्लिम बहुल गांव चांदनखेड़ी से निकाली जा रही थी। इस दौरान रैली में नारेबाजी कर रहे लोगों और कुछ स्थानीय लोगों के बीच झड़प हो गई, जिसमें करीब 10 लोग घायल हो गए जबकि 30 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।   

 

लेकिन इसके बाद जो हुआ वो हैरान करने वाला है। दरअसल इस घटना के ठीक एक अगले दिन यानी बुधवार को स्थानीय प्रशासन ने 15 मुस्लिम परिवार के घर अवैध अतिक्रमण बता कर ढहा दिए। स्थानीय प्रशासन की इस एकपक्षीय कार्रवाई के बाद मुस्लिम समुदाय के कुछ प्रतिनिधियों ने इंदौर आईजी योगेश देशमुख से शिकायत की। उन्होंने आईजी से कहा कि मध्य प्रदेश के अल्पसंख्यकों में डर का माहौल बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन घटनाओं से अल्पसंख्यकों में ऐसा डर पैदा हो सकता है कि वो इस देश में महफूज़ नहीं हैं। ऐसी घटनाओं के जरिए मध्य प्रदेश की फ़िज़ा को जानबूझकर खराब करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने मीडिया से भी कहा कि प्रशासन की  एकपक्षीय कार्रवाई बेहद चिंता की बात है। इसीलिए हमने आज आईजी साहब से मिलकर पूरे मसले पर निष्पक्ष कार्रवाई करने की मांग की है। 

 

मुस्लिम समुदाय की शिकायत के बाद गौतमपुरा के थाना प्रभारी आरसी भास्करे और एसडीओपी पंकज दीक्षित को सस्पेंड कर दिया गया है। इंदौर आईजी ने कहा कि मुस्लिम समुदाय की शिकायत थी कि प्रशासन ने इस पूरे मामले में एकपक्षीय कार्रवाई की है। जिसके बाद हमने उन्हें इस बात का आश्वासन दिया है कि इस देश के किसी भी नागरिक को डरने की ज़रूरत नहीं है। कोई भी अपने आप को असहाय न समझे। पूरे घटनाक्रम पर पुलिस निष्पक्ष रूप से कार्रवाई कर रही है। जो भी दोषी हैं, पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है। आप मुसलमान थोड़ी हो ? 

अरे एसपी साहिब आप भी तो  हिन्दू ही हो 

 

पूरे मामले की जब खबर इंदौर जिला प्रशासन तक पहुंची तब इंदौर एसएसपी हरि नारायणचारी मिश्रा स्थिति का जायज़ा लेने घटनास्थल पर पहुंचे थे। मिश्रा स्थिति को नियंत्रित करने और लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन वहां पर मौजूद कुछ उपद्रवी तत्व एसएसपी से कहने लगे कि आप भी तो हिन्दू हैं। इस घटना को और लोगों की भाषा सुनने वाले देश के हर नागरिक को यह ज़रूर सोचना चाहिए कि देश की जनता में सभी नागरिक समान रूप से शामिल हैं। 

जनता का मतलब जनता होता है, सिर्फ हिंदू नहीं 
नफरत फैलाने की इन कोशिशों के बीच मीराबाई जैसी महिलाओं के उदाहरण भी देखने को मिल रहे हैं, जिन्होंने सांप्रदायिकता से संक्रमित सोच को आईना दिखाने का काम किया है। 26 दिसंबर को उज्जैन प्रशासन ने शहर के बेगम बाग में रहने वाले अब्दुल रफीक का दो मंजिला घर गिरा दिया। पेशे से मजदूर अब्दुल रफीक ने सरकारी पट्टे की ज़मीन पर 35 साल में पाई पाई जोड़कर ये घर बनाया था। लेकिन प्रशासन ने उसे गिराने से पहले ज़रा भी नहीं सोचा। घर ढहाए जाने के बाद अचानक बेघर हुए रफीक और उनके पूरे परिवार को प़ड़ोस की मीरा बाई नाम की महिला ने अपने घर में जगह दी है।

अखबारों में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक उज्जैन में भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं के मुस्लिम बहुल इलाके में जुलूस निकालने और नारेबाजी करने के दौरान हुए पथराव के सिलसिले में पुलिस दो महिलाओं की तलाश कर रही थी। इन महिलाओं पर भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने मीरा बाई की छत से ही पथराव करने का आरोप लगाया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस जुलूस निकालने वालों की मांग पर उस घर को ढहाने जा रही थी, जहां से पथराव हुआ था। लेकिन 26 दिसंबर को जब ये बात सामने आई कि पथराव तो मीरा बाई की छत से हुआ था और वो हिंदू हैं, तो पुलिस की टीम पड़ोस में रहने वाले अब्दुल रफीक के घर की तरफ मुड़ गई और उसे ढहा दिया। 

मीरा बाई का कहना है कि पुलिस को ऐसा नहीं करना चाहिए था। अब्दुल भाई की कोई ग़लती नहीं थी। लेकिन प्रशासन ने अब्दुल रफीक को जो सज़ा दी है, उसको क्या समझा जाए? मीराबाई ने अब न सिर्फ अब्दुल रफ़ीक परिवार को अपने घर में रहने की जगह दी है , बल्कि उनका पूरा ध्यान भी रख रही हैं। लेकिन घटना के बाद से पूरे इलाके में तनाव का माहौल बना हुआ है। कुछ ऐसा ही हाल पास के शहरों मंदसौर और इंदौर का भी है। 

इस तरह पुलिस-प्रशासन की मर्ज़ी से जगह-जगह लोगों के मकान ढहाए जाने की घटनाओं पर संवैधानिक नज़रिए से भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं। सवाल ये है कि अगर किसी मकान से पथराव होने की घटना सामने आए तो पुलिस की क्या भूमिका होनी चाहिए? न्यायिक प्रक्रिया का तकाज़ा तो यही है कि पुलिस दोषियों का पता लगाकर उन्हें अदालत के सामने हाजिर करे और सबूत पेश करके कानून के मुताबिक सज़ा दिलवाए।

इसकी जगह अगर पुलिस-प्रशासन के अफसर खुद ही दोषी का फैसला करके उनके मकान गिराने लगेंगे तो कानून का राज कैसे रह जाएगा? क्या यह किसी कानून में लिखा है कि अगर किसी व्यक्ति पर पथराव में शामिल होने का आरोप लगता है तो पुलिस अपनी मर्ज़ी से उसका मकान ढहा सकती है?

अगर अतिक्रमण की स्थिति में भी कोई मकान गिराया जाता है, तो उसके लिए भी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है। कोर्ट से आदेश लेना होता है, मकान में रहने वालों को नोटिस दिया जाता है। घर खाली करने के लिए वक्त दिया जाता है। यहां तो ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि बवाल मचने के बाद एक पक्ष ने विरोधी समूह के घर गिराने की मांग करते हुए हंगामा शुरू कर दिया और फिर उनके दबाव में पुलिस ने जाकर कुछ लोगों के घर गिरा दिए। अगर ये खबरें सच्ची हैं तो प्रदेश में कानून का राज कायम रखने के लिए जिम्मेदार शासन-प्रशासन के लोगों को इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए। कानून के मुताबिक सही दिशा में कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि आम नागरिकों का सिस्टम पर भरोसा कायम रहे।