क्या MP सरकार ने प्रवासी मजदूरों का पंजीयन किया था?

कुछ श्रमिक दिन भर की थकान के बाद नींद में ही जिंदगी हार गए। जिस ट्रेन को लेकर उन्‍हें घर आना था वह ट्रेन उन्‍हें इस दुनिया से ही ले गई। इसका जिम्‍मेदार कौन?

Publish: May 09, 2020, 12:10 AM IST

Photo courtesy : ni 24 news
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वे काम करने के लिए घर से बाहर इसलिए गए थे कि कुछ रुपए कमा सकें। वे अपने गांव से कई सौ किलोमीटर दूर अपने परिवार का पेट पालने के लिए गए थे। कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा की और इस लॉकडाउन के साथ ही इन श्रमिकों की जिंदगी का पहिया भी थम गया। रोज कमाने और रोज खाने वाले मेहनतकश श्रमिकों के सामने रोटी सबसे बड़ा सवाल बन गई। परदेस में भूख से मरने की जगह अपने गांव में अपनों के बीच रहने की मंशा से वे गांव लौटने का जतन करने लगे। मगर जब सरकारों ने उनकी नहीं सुनी तब वे पैदल ही निकल गए।

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वे अपने बच्‍चों, बूढ़े मां-बाप के साथ, कंधों पर गृहस्‍थी का सामान टांगे निकल पड़े। वे कई सप्‍ताह से सड़क पर हैं। उनके पैरों में छाले हैं। थाली में रोटी नहीं हैं। सरकारों ने उन्‍हें घर पहुंचाने के इंतजाम किए हैं मगर वे आधे अधूरे हैं। राज्‍यों में समन्‍वय नहीं हैं इसलिए मजदूर सीमा पर पड़े हैं। सरकार कह रही कि उनसे किराया नहीं लिया जाएगा मगर खाली हाथ श्रमिक किसी तरह 5-5 हजार रुपए देकर बसों से घर लौट रहे हैं। कुछ लौट पाए कुछ राह में रह गए। और कुछ दिनभर की थकान के बाद नींद में ही जिंदगी हार गए। उनके ऊपर से ट्रेन गुजर गई। जिस ट्रेन में सवार हो कर उन्‍हें घर आना था, वैसी ही एक ट्रेन उन्‍हें इस दुनिया से ले गई।

हम सवाल उठाएंगे कि उन्‍हें पटरी पर सोने की जरूरत क्‍या थी?  क्‍या वे अपने उस शहर में नहीं रह सकते हैं जहां काम करने गए हैं? क्‍या वे संक्रमण को रोकने के लिए घर में बैठ नहीं सकते?

ये सवाल उठाने के पहले यह पूछना पड़ेगा कि क्‍या दूसरे शहर में उनके पास खाने को है? रहने को घर है? बच्‍चे जब भूख से रोए तब वे क्‍या करें? पराए शहर में कोई राहत का साधन न हो तब घर न आएं तो क्‍या करें?

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बहुत से सवाल हमारी सरकारों की लापरवाहियों को उजागर करते हैं। औरंगाबाद में हुई घटना पर विपक्ष ने भी कुछ ऐसे ही सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया है कि मजदूरों के देशव्यापी महाप्रस्थान के दौरान औरंगाबाद में घटी घटना अत्यंत दुखभरी और विचलित करने वाली है। लॉकडाउन ने गरीबों की जिंदगी को तहस-नहस कर दिया है। उनके पास जीविका चलाने का कोई जरिया ही नहीं है। इस घटना में पीड़ित सभी परिवारों को मुआवजा मिलना चाहिए और हर सम्भव मदद होनी चाहिए।

वहीं, राहुल गांधी ने कहा है कि मालगाड़ी से कुचले जाने से मजदूर भाई-बहनों के मारे जाने की ख़बर से स्तब्ध हूं। हमें अपने राष्ट्र निर्माणकर्ताओं के साथ किये जा रहे व्यवहार पर शर्म आनी चाहिए। मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति  संवेदना व्यक्त करता हूं और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करता हूं।

कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी चाहिये। मध्यप्रदेश सरकार ने क्या इन प्रवासी मज़दूरों का पंजीयन किया था? यदि किया था तो उन्हें वापस लाने का क्या इंतज़ाम किया गया था?...  शिवराज सरकार रोज़ मीडिया के सामने जाकर बयान देने की बजाय कुछ करके दिखाएं।

युवा नेता देवाशीष जरारिया ने मौजूं सवाल उठाते हुए कहा है कि बड़े बड़े दावों के बाद भी मजदूरों का पलायन नहीं रुक रहा। सरकारें नाकाम साबित हो रही है। क्या लॉकडाउन कह देने से ही सारी समस्याएं खत्म हो जाती है ज़िंदगियाँ रुक जाती है। हमारी सरकारों ने क्या प्लानिंग की है? जनवरी से दस्तक दे चुके संक्रमण पर आंखे मूंद लेना क्या अपराध से कम नहीं? क्या सरकार इन मौतों की जिम्मेदार नहीं? आखिर कब तक ऐसी घटनाओं की पीड़ा सहनी होगी?