भीमा कोरेगांव केस: पेगासस स्पाईवेयर से इन्फेक्टेड था एक्टिविस्ट रोना विल्सन का फोन, जांच में खुलासा

द वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक एमनेस्टी इंटरनेशनल सिक्युरिटी लैब की फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट से पता चला है कि भीमा कोरेगांव मामले में अभियुक्त रोना विल्सन का फोन पेगासस स्पाईवेयर का शिकार था

Updated: Dec 17, 2021, 11:24 AM IST

Photo Courtesy: Junputh
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नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कैद भारतीय एक्टिविस्ट रोना विल्सन का फोन पेगासस स्पाईवेयर का शिकार था। ये खुलासा जानेमाने अमेरिकी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है। अखबार के मुताबिक एमनेस्टी इंटरनेशनल सिक्युरिटी लैब के फॉरेंसिक जांच में पता चला है कि गिरफ्तारी से पहले एक्टिविस्ट विल्सन की लगातार जासूसी की जा रही थी। 

रिपोर्ट के मुताबिक एमनेस्टी इंटरनेशनल के एनालिसिस से पता चला है कि रोना विल्सन के आईफोन 6S के दो बैकअप से स्पष्ट है कि उनका फोन पेगासस स्पाईवेयर के सर्विलांस पर था। एनालिसिस के मुताबिक जून 2018 में विल्सन की गिरफ्तारी से ठीक तीन महीने पहले उनका फोन पेगासस सर्विलांस पर आया था। एमनेस्टी के फॉरेंसिक रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2017 से लेकर फरवरी/मार्च 2018 तक विल्सन के फोन की जासूसी हुई थी। उनके फोन में 15 ऐसे मैसेज भेजे गए थे जिनमें पेगासस स्पाईवेयर का लिंक था।

इस फोन का बैकअप एमनेस्टी को अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग ने विल्सन के वकीलों के अनुरोध पर उपलब्ध कराया था। इसके पहले फरवरी महीने में आर्सेनल कंसल्टिंग ने ही खुलासा किया था कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार एक्टिविस्ट्स और बुद्धिजीवियों के खिलाफ जिन दस्तावेजों को मुख्य सबूत माना गया है, वे प्लांटेड थे। इन दस्तावेजों को एक्टिविस्ट रोना विल्सन के लैपटॉप को हैक करके उसके एक हिडेन फोल्डर में प्लांट किया गया था। 

आर्सेनल कंसल्टिंग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया था कि साइबर हमलावरों ने एक्टिविस्ट रोना विल्सन की गिरफ्तारी से पहले उनके लैपटॉप में एक विशेष मालवेयर के जरिए घुसपैठ की। इसके बाद उनके लैपटॉप में तकरीबन 10 ऐसे फर्जी सुबूत डाले जिससे यह साबित हो सके कि उनका लिंक माओवादियों और आतंकवादियों से था। इसी तरह के सबूत दूसरे आरोपियों के लैपटॉप और कंप्यूटर में भी प्लांट किए गए। ऐसा करते समय कई बार एक ही सर्वर औऱ आईपी एड्रेस का इस्तेमाल भी किया गया।

इतना ही नहीं पुलिस ने जिस पत्र के आधार पर विल्सन पर माओवादियों के साथ लिंक होने और कथित आतंकियों और माओवादियों से हथियार मंगाने के बारे में बात करने का आरोप लगाया था, वह इन्हीं प्लांटेड दस्तावेजों में शामिल था। इन्हीं पत्रों के आधार पर प्रतिबंधित समूहों के साथ मिलकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचे जाने का आरोप भी लगाया गया था। हालांकि, आर्सेनल के बाद एमनेस्टी की इस फॉरेंसिक रिपोर्ट ने पुलिस कार्रवाई और केंद्र की मोदी सरकार को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है।

पेगासस निर्माता कंपनी एनएसओ का स्पष्ट कहना है कि वह अपना मालवेयर लोकतांत्रिक सरकारों को ही देती है ताकि इसका इस्तेमाल देश अपनी सुरक्षा के लिए और आतंकियों से निपटने के लिए करे। लेकिन पेगासस रिपोर्ट में पूर्व में हुए खुलासे बताते हैं कि भारत में पेगासस का उपयोग राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं, चीफ इलेक्शन कमिश्नर रहे अशोक लवासा, सुप्रीम कोर्ट के जजों, दर्जनों पत्रकारों और एक्टिविस्टों के खिलाफ हुआ। भारत सरकार ने न तो अबतक इस बात को स्वीकार किया है कि देश में पेगासस का इस तरह इस्तेमाल हो रहा है और न ही इस बात से इनकार किया है कि भारत भी इजरायली कंपनी एनएसओ का क्लाइंट है।

क्या है भीमा कोरेगांव केस

दरअसल, हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में जमा होते है। वो यहां 'विजय स्तम्भ' के सामने सम्मान प्रकट करते हैं। इसी जश्न के दौरान साल 2018 में दलितों और मराठों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। पुलिस का आरोप है कि यहां हिंसा भड़काने में सामाजिक कार्यकर्ताओं का हाथ है। इस मामले में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन और अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वेरनॉन गोन्जाल्विस जैसे एक्टिविस्टों और बुद्धिजीवियों को आरोपी बनाया गया है। 

खास बात यह है कि पहले इस मामले की जांच महाराष्ट्र पुलिस कर रही थी। लेकिन भाजपा सरकार गिरने और उद्धव ठाकरे की सरकार आने के बाद इस मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई है। NIA ने अपनी चार्जशीट में दावा किया था कि आरोपी राष्ट्र के खिलाफ जंग की शुरुआत करना चाहते थे। वे देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को खतरे में डालने का प्लान बना रहे थे। इसके लिए फंड जुटाए गए थे और हथियार भी खरीदे गए थे। चार्जशीट के मुताबिक इनका मकसद 'जनता सरकार' बनाना था। इस काम के लिए आरोपियों ने विभिन्न यूनिवर्सिटीज से छात्रों को आतंकी कृत्य के लिए रिक्रूट किया था। जिन यूनिवर्सिटीज से छात्रों को लिया गया उसमें जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी और टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस का नाम दिया गया है।