वर्चुअल वर्ल्ड में भी किसानों ने दिखाया दम, फेसबुक को पेज हटाने पर मांगनी पड़ी माफी

कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान अपनी कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी भी साथ लेकर चल रहे हैं, फ़ेसबुक, ट्विटर एकाउंट और अख़बार के साथ-साथ यूट्यूब चैनल भी कामयाबी के साथ चला रहे हैं

Updated: Dec 21, 2020, 11:12 PM IST

नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर के किसान अपनी मांगों को लेकर कड़कड़ाती ठंड में दिल्ली के बॉर्डर्स पर प्रदर्शन कर रहे हैं। बीते चार हफ्ते के दौरान किसानों के इस प्रोटेस्ट ने किसानों के प्रति देशवासियों का नजरिया काफी हद तक बदला है। इसका मुख्य कारण यह है कि दिल्ली में किसान सिर्फ राशन पानी के साथ प्रदर्शन करने नहीं पहुंचे हैं बल्कि अपनी कम्युनिकेशन स्ट्रैटजी भी साथ लेकर आए हैं।

अबतक आम जनमानस में किसानों की एक जो छवि गढ़ी हुई थी जिसमें एक गमछा बांधे, हल लिए व्यक्ति ही किसान होता है उस छवि को इस आंदोलन ने पूरी तरह से बदल दिया है। किसानों ने वर्चुअल वर्ल्ड में भी केंद्र सरकार को अपना दम दिखा दिया है। दरअसल, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि सिर्फ 1 लाख लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं। मंत्री के इस बयान के पलटवार ने किसानों ने दावा किया कि करोड़ों लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं और अपनी संख्या सरकार तक पहुंचाने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया।

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किसानों ने जैसे ही अपने सोशल मीडिया पेज को लॉन्च किया उन्होंने तमाम पेशेवर मीडिया संस्थानों को भी पीछे छोड़ दिया। महज पांच दिनों में किसानों के यूट्यूब पेज किसान एकता मोर्चा (Kisan Ekta Morcha) के 6 लाख सब्सक्राइबर्स हो गए, वहीं किसान एकता मोर्चा के फेसबुक पेज पर 1 लाख 22 हजार फॉलोवर्स और ट्वीटर पर 88 हजार फॉलोवर्स हो गए। खास बात यह है कि यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। किसानों ने 25 दिसंबर यानी क्रिसमस तक 10 मिलियन लोगों को जोड़ने का टारगेट लिया है, जो उम्मीद है कि आसानी से हासिल भी कर लिया जाएगा।

किसान इन साइट्स पर अपने दैनिक कार्यक्रमों की जानकारियां, आगे की रणनीति, प्रदर्शन से जुड़ी खबरें और किसान नेताओं के भाषण लाइव कर रहे हैं। इसके पहले किसानों ने अपना अखबार ट्रॉली टाइम्स लॉन्च कर सरकार के इशारों पर काम कर रहे मीडिया संस्थाओं से लेकर केंद्र तक को यह संदेश दिया है कि किसान यदि सबका पेट भर सकता है तो कुछ भी कर सकता।

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जब किसानों के आगे झुका फेसबुक, जताई खेद

दरअसल, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक ने कल किसान एकता मोर्चा के फेसबुक पेज को कई घंटों के लिए हटा दिया था। फेसबुक की इस करतूत से किसान नाराज हो गए। किसानों ने बताया कि हमने पीएम मोदी के भाषण का जवाब देते हुए एक वीडियो क्लिप पोस्ट की थी। उसमें प्रधानमंत्री के प्रत्येक झूठ को तथ्यों और उदाहरणों के साथ बताया गया था। इसके बाद फेसबुक ने हमारे पेज को डाउन कर दिया।' किसानों के आह्वान पर लोगों ने "शेम ऑन फेसबुक" और "शेम ऑन जकरबर्ग" हैशटैग का उपयोग करना स्टार्ट कर दिया। देखते ही देखते यह हैशटैग विश्वभर में ट्रेंड करने लगे।

 

किसानों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के दबाव की वजह से फेसबुक ने यह काम किया है। यूजर्स भी इसे लेकर अलग-अलग तरह रिएक्शन देने लगे। एक यूजर ने लिखा कि फेसबुक ने जिओ में 43,750 करोड़ का इन्वेस्टमेंट किया है। किसान जिओ के खिलाफ हैं इसलिए कंपनी ऐसी हरकतें कर रही है।' वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा 'जब बजरंग दल नफरत फैलाता है तो फेसबुक उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेता है। लेकिन देश के किसान शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं तो यह उसके कम्युनिटी स्टैंडर्ड्स के खिलाफ है। भई हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है।'

विरोध बढ़ता देख फेसबुक ने भी आनन-फानन में किसानों के पेज को रिस्टोर करने में ही अपनी भलाई समझी। फेसबुक कंपनी के प्रवक्ता ने कहा,  'हमने किसान एकता मोर्चा के फेसबुक पेज (https://www.facebook.com/kisanektamorcha) को पुनर्स्थापित कर दिया है और असुविधा के लिए खेद व्यक्त किया है।'