NRC का दोबारा सत्यापन देशहित में ज़रूरी, संयोजक ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा
असम की बीजेपी सरकार भी लगातार जांच की मांग कर रही है, नवनिर्वाचित सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा लीगेसी डेटा में हुई हेराफेरी, कई अयोग्य नाम शामिल, कई योग्य बाहर छूटे

गुवाहाटी। कोरोना महामारी के तबाही मचाने से पहले देश का सबसे ज्वलंत मुद्दा एनआरसी एक बार फिर से सुर्खियां बटोर रहा है। एनआरसी की सूची में कई बड़ी अनियमितताएं पाई गई है जिस कारण असम में सूची को दोबारा सत्यापित करने के मांगें उठने लगी हैं। इसी बीच राज्य के एनआरसी संयोजक हितेश देव शर्मा ने पुनः सत्यापन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है। शर्मा का मानना है कि सूची से ना केवल कई योग्य लोगों को बाहर रखा गया है बल्कि कई अयोग्य लोगों को भी शामिल कर दिया गया है। राज्य के नवनिर्वाचित सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने भी इस हफ्ते शपथग्रहण के बाद पुनर्सत्यापन की मांग दोहराई थी।
दरअसल 2019 की नागरिक सूची के अंतिम ड्राफ्ट से लगभग 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था। उनमें से अमूमन सारे लोग इसलिए बाहर रखे गए थे क्योंकि वह अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए अपेक्षित काग़ज़ात नहीं प्रस्तुत कर पाए थे। हालांकि, संयोजक शर्मा की माने तो अनियमितताएं ना केवल एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट में है बल्कि उसके साथ के पूरक सूचियों में भी पाई गई है। शर्मा ने अपनी अर्जी में सर्वोच्च अदालत से यह भी मांग की है कि पुनर्सत्यापन की प्रक्रिया एक निगरानी कमेटी के देखरेख में होनी चाहिए ताकि गलती के कोई आसार नहीं रहे। उन्होंने निगरानी कमेटी के सदस्यों के रूप में हरेक जिले के जिला न्यायाधीश, जिला दंडाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को रखने का भी आग्रह किया है।
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सूची के फाइनल ड्राफ्ट के प्रकाशित होने के तुरंत बाद से ही असम के भाजपा नेता लगातार इसके सत्यापन और जांच की मांग कर रहे थे। इसी हफ्ते शपथ लेने वाले राज्य के नए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भी पहले ट्वीट कर कहा था कि, '1971 से पहले शरणार्थी के रूप में बांग्लादेश से आने वाले कई भारतीय नागरिकों के नाम NRC में शामिल नहीं किए गए हैं क्योंकि अधिकारियों ने शरणार्थी प्रमाणपत्र स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। कई लोगों का आरोप यह भी है कि लीगेसी डेटा में हेराफेरी के कारण कई नाम शामिल किए गए।'
#NRCAssam
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) August 31, 2019
Names of many Indian citizens who migrated from Bangladesh as refugees prior to 1971 have not been included in the NRC because authorities refused to accept refugee certificates. Many names got included because of manipulation of legacy data as alleged by many 1/2
राज्य संयोजक हितेश शर्मा ने अपनी अर्जी में लिखा है कि, 'असम में एनआरसी को अपडेट करने की पूरी प्रक्रिया में कई गंभीर, मौलिक और महत्वपूर्ण त्रुटियां सामने आई हैं। इन गलतियों ने संपूर्ण प्रक्रिया को बिगाड़ने का काम किया है। एनआरसी के वर्तमान ड्राफ्ट और अनुपूरक सूची जो प्रकाशित किए गए हैं वो त्रुटियों से मुक्त नहीं हैं।' अर्जी में यह भी कहा गया है कि जनहित में एक त्रुटि मुक्त एनआरसी ड्राफ्ट तैयार किया जाए ताकि क्षेत्रीय अखंडता, आंतरिक शांति और राष्ट्र की स्थिरता बनी रहे। हितेश ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है कि असम अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है ऐसे में अखंडता बने रहना ज़रूरी है।'
उनका मानना है कि अभी तक नागरिक सूची केवल नकली कागजों को पहचानने में मदद कर पाया है ना कि ऐसे सेकंडरी कागजों की पहचान करने में जिनकी मदद से मुख्य कागज़ ऊपर करवाए गए हैं। हितेश बताते हैं कि वोटर लिस्ट में किसी का नाम ढूंढ़ना आसान है लेकिन कोई भी अफसर इस बात की पुष्टि नहीं कर सकता कि उस सूची में नाम किन झूठे दस्तावेजों की वजह से आया है। सेकंडरी दस्तावेजों की सत्यता जांच करने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है। हालांकि इनके सत्यापन में फैमिली ट्री को तो अवश्य जांचा जा सकता है।
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हितेश ने सुप्रीम कोर्ट में डाली गई अर्जी में यह भी लिखा है कि सूची के दो भाग, मूल निवासी और बाहरी लोग, में भी कई गड़बड़ियां पाई गई है। बता दें कि कोरोना महामारी शुरू होने से ठीक पहले हो रहे देशव्यापी प्रदर्शनों के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया था कि जो लोग सूची से बाहर छूट गए हैं उनको तुरंत अवैध नहीं घोषित किया जाएगा। उनके पास फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के पास जाने का भी रास्ता और यदि वो चाहे तो आगे कोर्ट तक भी जा सकते हैं। इस प्रक्रिया के लिए राज्य उनको आर्थिक सहायता भी प्रदान करेगी।