ओडिशा के नबरंगपुर में तीन आदिवासी गांवों में घरों को जलाया, खेतों में लगी फसल को भी किया नष्ट
वन सुरक्षा समिति पर लगा आदिवासियों के घरों को जलाने का आरोप, 100 एकड़ भूमि पर उगाई गई फसलों को नष्ट, अभी तक आरोपियों के खिलाफ नहीं हुई कोई कार्रवाई
ओडिशा के नबरंगपुर जिले से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां के तीन आदिवासी गांवों में रहने वालों के घरों को जला दिया गया। आदिवासियों के घर जलाने का आरोप वन सुरक्षा समिति पर लगा है। पीड़ितों ने बताया कि खेतों में लगी फसल को भी नष्ट कर दिया गया।
कपसवता, सरियावत और लोकतिखना गांव के लोगों ने वन सुरक्षा समिति पर आरोप लगाया है कि समिति ने 100 एकड़ भूमि पर उगाई गई फसलों को नष्ट कर दिया है और उनके कई घरों को भी जला दिया है। ये आरोप वन संरक्षण समिति कुसुमगुड़ा पर लगा है। दरअसल, कुछ गावों ने मिलकर ये समिति बनाई है। समिति बनाने वाले वे गांव हैं जिन्हें वन अधिकार नियम के तहत पट्टे पर जमीन दी गई है, लेकिन जिनपर हमला हुआ है उन्हें पट्टे पर जमीन नहीं मिली है।
Sources say that local leadership of BJP and BJD allegedly instigated this attack as the villagers sided with Congress and didn't vote for them in the panchayat elections held earlier this year. 1/2@TheQuint @QuintHindi pic.twitter.com/w2A1SbRPQF
— Upendra Kumar (@UpendraSuryaDe1) August 14, 2022
पीड़ितों का आरोप है कि इससे पहले भी उनकी फसलों को नष्ट और जलाया जाता रहा है। लेकिन इस बार को घरों को भी आग के हवाले कर दिया। इन तीनों गांवों के लोग पुलिस प्रशासन तक शिकायत लेकर पहुंचे हैं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। पीड़ित ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन करने और इलाज की मांग को लेकर नबरंगपुर जिला मुख्यालय स्थित कलेक्टर दफ्तर भी गए।
ग्रामीणों का दावा है कि स्थानीय पुलिस को पहले ही सूचित किया था और इसी तरह की घटना की आशंका जताई थी। उन्होंने वन सुरक्षा समिति से सुरक्षा की मांग की थी। बावजूद पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया। ग्रामीणों के घरों को जलाने का वीडियो भी सामने आया है जिसमें देखा जा सकता है कि अपना आशियाना जलता देख वे रो रहे हैं।
मामले पर फॉरेस्ट रेंजर का कहना है कि नष्ट की गई भूमि वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत आवंटित नहीं थी और जो भूमि नष्ट नहीं हुई थी वह FRA के तहत थी। हम उन लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, जो विवादित भूमि पर खेती नहीं कर सकते हैं। लेकिन वे समझने को तैयार नहीं हैं। वे प्रशासन की नहीं सुन रहे हैं और शायद इसीलिए फसलें नष्ट की गईं। हम उन्हें वनरोपण के लिए जमीन देने के लिए मनाने की कोशिश भी कर रहे हैं, लेकिन वे इसके लिए भी नहीं मान रहे हैं।