कोरोना से निपटने में सरकारी इंतज़ाम नाकाफ़ी, निजी अस्पतालों ने मरीज़ों को लूटा, संसदीय समिति की रिपोर्ट में खुलासा

स्वास्थ्य मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने कहा, स्वास्थ्य पर GDP का 2.5 फीसदी खर्च करने का लक्ष्य जल्द हासिल हो, 2017 में यह खर्च महज 1.15 फीसदी था

Updated: Nov 22, 2020, 01:26 AM IST

Photo Courtesy: NBC news
Photo Courtesy: NBC news

दिल्ली। स्वास्थ्य मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने देश में कोरोना महामारी से निपटने की कोशिशों में सरकारी खर्च के बेहद कम होने और निजी क्षेत्र की मनमानी को बड़ी अड़चन माना है। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बेहद कम है, जिसे फौरन बढ़ाने की ज़रूरत है। समिति ने माना है कि देश के सरकारी अस्पतालों में बेड्स की संख्या कोविड और गैर-कोविड मरीजों की बढ़ती संख्या के हिसाब से बहुत कम हैं। ऐसे में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के बीच बेहतर साझेदारी की ज़रूरत है।

स्वास्थ्य पर सरकार खर्च बेहद कम : संसदीय समिति

संसदीय समिति ने राज्यसभा के सभापति को सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि 130 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले हमारे देश में सरकार स्वास्थ्य पर डेढ़ फीसदी भी खर्च नहीं करती, जिससे सबसे लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करने में भारी दिक्कत होती है। दरअसल राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में 2025 तक GDP का 2.5 फीसदी स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि 2017 में यह खर्च महज 1.15 फीसदी यानी सवा फीसदी से भी कम था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था की कमज़ोर स्थिति महामारी से निपटने में एक बड़ी अड़चन बनी हुई है।

GDP का 2.5% हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करने का लक्ष्य जल्द हासिल किया जाए

समिति ने सिफारिश की है कि देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर होने वाले खर्च को जल्द से जल्द बढ़ाया जाना चाहिए। समिति का मानना है कि सरकार को GDP का कम से कम 2.5 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करने के लक्ष्य को जल्द से जल्द हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए साल 2025 का निर्धारित समय अभी बहुत दूर है और मौजूदा हालात में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए इतना इंतज़ार नहीं किया जा सकता।

सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी बड़ी अड़चन: संसदीय समिति

समिति का कहना है कि कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों से निपटने में सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी बड़ी अड़चन है। दूसरी तरफ निजी क्षेत्र के लिए कोरोना इलाज से जुड़ी स्पष्ट गाइडलाइन न होने की वजह से प्राइवेट अस्पतालों ने मरीज़ों से काफी बढ़ा-चढ़ाकर पैसे वसूले। समिति ने ये भी कहा कि अगर ये तय कर दिया जाता कि निजी क्षेत्र के अस्पताल कोरोना के इलाज़ के लिए मरीज़ों से वाजिब तौर पर कितने पैसे ले सकते हैं तो महामारी से होने वाली बहुत सी मौतों को रोका जा सकता था।

कोरोना से निपटने के प्रयासों पर किसी भी संसदीय समिति की पहली रिपोर्ट

ये तमाम बातें स्वास्थ्य संबंधी मामलों की स्थायी संसदीय समिति की उस रिपोर्ट में कही गई हैं, जो समिति के अध्यक्ष राम गोपाल यादव ने शनिवार को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को सौंपी है। देश में कोरोना महामारी से निपटने के प्रयासों की समीक्षा करने वाली यह देश की किसी भी संसदीय समिति की पहली रिपोर्ट है।  समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले अपने देश में स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च बेहद कम है। समिति ने कहा कि जिन डॉक्टरों ने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में अपनी जान दे दी, उन्हें शहीद के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और उनके परिवार को उचित मुआवजा मिलना चाहिए।