आर्थिक संकट में देश, विपक्ष-विशेषज्ञों को साथ ले सरकार

आरबीआई  के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि देश सबसे बड़े आर्थिक संकट में है। सरकार को एकला चालो रे की नीति से अलग हट कर विपक्ष सहित विशेषज्ञों की सहायता लेनी चाहिए।

Publish: Apr 07, 2020, 04:54 AM IST

RBI Ex Governor Rahuram rajan
RBI Ex Governor Rahuram rajan

भारतीय रिजर्व बैंक  के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि आजादी के बाद से देश सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इसका मुकाबला करने में भारत समर्थ है मगर सारा काम केवल प्रधानमंत्री कार्यालय से हो रहा है। सरकार को एकला चालो रे की नीति से अलग हट कर इस चुनौती से निपटने के‍ लिए विपक्ष सहित विशेषज्ञों की सहायता लेनी चाहिए।

वर्तमान समय में संभवत: भारत की सबसे बड़ी चुनौतीशीर्षक से एक ब्लॉग पोस्ट में राजन ने यह टिप्पणी की है। देश में कोरोना वायरस के कारण उपस्थित चुनौतियों के मद्देनजर राजन ने कहा है कि यह आर्थिक लिहाज से संभवत: आजादी के बाद की सबसे बड़ी आपात स्थिति है। 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान मांग में भारी कमी आई थी, लेकिन तब हमारे कामगार काम पर जा रहे थे, हमारी कंपनियां सालों की ठोस वृद्धि के कारण मजबूत थीं, हमारी वित्तीय प्रणाली बेहतर स्थिति में थी और सरकार के वित्तीय संसाधन भी अच्छे हालात में थे। अभी जब हम कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे हैं, इनमें से कुछ भी सही नहीं हैं।

हालांकि उन्होंने कहा कि यदि उचित तरीके तथा प्राथमिकता के साथ काम किया जाए तो भारत के पास ताकत के इतने स्रोत हैं कि वह महामारी से न सिर्फ उबर सकता है बल्कि भविष्य के लिए ठोस बुनियाद भी तैयार कर सकता है। राजन ने कहा कि सारे काम प्रधानमंत्री कार्यालय से नियंत्रित होने से ज्यादा फायदा नहीं होगा क्योंकि वहां लोगों पर पहले से काम का बोझ ज्यादा है।

उन्होंने कहा कि अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सरकार को उन लोगों को बुलाना चाहिए जिनके पास साबित अनुभव और क्षमता है। भारत में ऐसे कई लोग हैं जो सरकार को इससे उबरने में मदद कर सकते हैं। सरकार राजनीतिक विभाजन की रेखा को लांघ कर विपक्ष से भी मदद ले सकती है, जिसके पास पिछले वैश्विक वित्तीय संकट से देश को निकालने का अनुभव है।

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राजन ने कहा कि कोविड-19 के प्रकोप से निकलने के लिए हमारी त्वरित प्राथमिकता व्यापक जांच, एक-दूसरे से दूरी तथा कठोर क्वारंटीन के जरिए संक्रमण के प्रसार की रोकथाम होनी चाहिए। 21 दिनों का लॉकडाउन (बंद) पहला कदम है। इससे हमें बेहतर तैयारी करने का समय मिला है। सरकार हमारे साहसी चिकित्सा कर्मियों के सहारे लड़ रही है और जनता, निजी क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र, सेवानिवृत्त लोगों समेत हर संभव संसाधन का इस्तेमाल करने की तैयारी में है। हालांकि सरकार को गति कई गुणा तेज करने की जरूरत है।

अभी से सोचें- लॉकडाउन के बाद क्‍या?

राजन ने कहा कि हम लंबे समय तक लॉकडाउन नहीं सह सकते हैं। ऐसे में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि किस तरह से संक्रमण को सीमित रखते हुए आर्थिक गतिविधियों को पुन: शुरू करें। भारत को अब इस बारे में भी योजना तैयार करने की जरूरत है कि लॉकडाउन के बाद भी वायरस पर काबू नहीं पाया जा सका तब क्या किया जाएगा।

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सब तक नहीं पहुंची सरकार की सहायता

उन्होंने लॉकडाउन की वजह से प्रभावित गरीबों और बेरोजगार हुए लोगों की चिंता करने को भी कहा है। उनके मुताबिक सरकार ने जो सहायता दी है, वह अधिकतर लोगों तक तो पहुंची है, लेकिन सब तक नहीं पहुंची है और जो पहुंची है वह भी पर्याप्त नहीं है। उन्होंने ये भी कहा है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह आसान नहीं है, लेकिन जरूरतमंदों को छोड़ा नहीं जा सकता, इसलिए हमें मानवीय पहलुओं को देखने के साथ-साथ कोरोना के खिलाफ जंग भी लड़ना होगा। इसके लिए उन्होंने कम महत्वपूर्ण खर्चों को कम करने या टालने की सलाह दी है और साथ ही तत्काल जरूरी कदमों को प्राथमिकता देने को कहा है। इसके साथ ही उन्होंने सरकार को निवेशकों का भरोसा फिर से बहाल करने के लिए भी कदम उठाने को कहा है। इसके लिए उन्होंने एनके सिंह कमिटी की सलाह के आधार पर स्वतंत्र वित्तीय परिषद गठित करने और मीडियम टर्म डेबिट टारगेट तय करने का रास्ता बताया है।

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर एवं अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कोरोना वायरस के कारण उपस्थित चुनौतियों के मद्देनजर कहा कि देश आर्थिक लिहाज से आजादी के बाद के सबसे आपातकालीन दौर में है। उन्होंने कहा कि सरकार को इससे निकलने के लिये विपक्षी दलों समेत विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिये।