दिल्ली में चुनी हुई सरकार से ज्यादा शक्तियां LG को देने का बिल राज्यसभा में भी पास

राज्यसभा में ध्वनिमत से पास हुआ दिल्ली में चुनी हुई सरकार की शक्तियों को कम करने वाला बिल, आम आदमी पार्टी ने इस बिल को लोकतंत्र और संविधान के ख़िलाफ़ बताया है

Publish: Mar 25, 2021, 03:37 AM IST

Photo Courtesy: NDTV
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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने राज्यसभा में राष्ट्रीय राजधानी में एलजी की शक्तियां बढ़ाने वाले विवादास्पद बिल को पास करवा दिया है। सदन में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक (NCT Bill) 2021 को ध्वनि मत से पारित किया गया। इस बिल के कानून बन जाने पर दिल्ली की जनता द्वारा चुनी गई राज्य सरकार से ज्यादा शक्तियां केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उप-राज्यपाल के पास होंगी। इससे पहले 22 मार्च को इसे लोकसभा से मंजूरी मिली थी।

इस बिल के राज्यसभा से पारित होने के बाद आम आदमी पार्टी ने इसे लोकतंत्र के लिए काला दिन बताया है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि राज्यसभा में जीएनसीटीडी बिल पास हो गया। भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिन है। हम लोगों को सत्ता वापस दिलाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेंगे। जो भी बाधाएं आए, हम अच्छा काम करते रहेंगे। काम न तो रुकेगा और न ही धीमा होगा।

राज्यसभा में इस बिल को लेकर चर्चा के दौरान आप सांसद संजय सिंह ने भी इसे संविधान के खिलाफ बताया। संजय सिंह ने कहा, 'जब अन्याय और अत्याचार होता है तो रावण हंसता है, गद्दाफी हंसता है, नादिर हंसता है, बाबर हंसता है, जब द्रोपदी का चीरहरण होता है तो दुर्योधन हंसता है, कौरव हंसते हैं और याद रखा जाएगा कि जब आज संविधान का चीरहरण हो रहा है तो ये भाजपाई हंस रहे हैं।'

राज्यसभा में इस बिल का विपक्ष के कई अन्य दलों ने भी भारी विरोध किया। विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह असंवैधानिक है। उन्होंने इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। खड़गे ने कहा कि इस विधेयक के जरिए सरकार चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों को छीनकर उपराज्यपाल को देना चाहती हैं। इतना ही नहीं केंद्र सरकार उपराज्यपाल को ही सरकार बनाना चाहती है। उन्होंने सवाल किया कि ऐसे में चुने हुए प्रतिनिधियों की क्या आवश्यकता है।

जानकारों का कहना है कि इस बिल के कानून बन जाने पर दिल्‍ली सरकार का मतलब उपराज्‍यपाल हो जाएगा। दिल्‍ली सरकार को कोई भी फैसला स्‍वतंत्र रूप से लेने का अधिकार नहीं रह जाएगा। उसे हर फैसले के लिए उपराज्‍यपाल की मंजूरी लेनी पड़ेगी। राज्य की मंत्री परिषद को भी हर फैसला लेने से पहले उपराज्‍यपाल की इजाजत लेनी होगी। यह बिल साफ तौर पर जनता द्वारा चुनी सरकार के मुकाबले केंद्र सरकार के नुमाइंदे को ज्यादा अधिकार देता है। यह लोकतंत्र के उस सिद्धांत के भी खिलाफ है, जिसके तहत कोई भी चुनी हुई सरकार विधायिका यानी संसद या विधानसभा के प्रति जवाबदेह होती है। लेकिन मोदी सरकार का दावा है कि इस बिल से दिल्ली के लोगों को फायदा होगा।