कटघरे में राजद्रोह कानून, किरण रिजिजू ने कहा- किसी को लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए

याचिका देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक रिटायर मेजर जनरल सुधीर वोम्बतकेरे ने कहा कि "उन्होंने जिस संविधान की रक्षा की, उसकी शपथ ली, जब उसे चुनौती दी जा रही थी, उन्होंने तब अदालत जाने का फैसला किया

Updated: May 12, 2022, 07:44 AM IST

Courtesy:  Awaz Live
Courtesy: Awaz Live

दिल्ली। अंग्रेजों के समय लाया गया 152 साल पुराना कानून 124A इस समय संवैधानिकता की कसौटी से गुजर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश देते हुए राजद्रोह कानून पर अस्थायी रोक लगा दी है। इस कानून के तहत अब कोई भी नया मामला दर्ज नहीं किया जा सकेगा। कोर्ट ने कहा है कि कोई भी सरकार 124A में  नया मुकदमा दर्ज नहीं करे, पहले इस पर पुनर्विचार होगा। इस आदेश के आने के बाद केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि किसी को भी लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए।

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर लगाई रोक, जेल में बंद आरोपी भी लगा सकेंगे जमानत अर्जी

रिजिजू ने कहा कि "हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं। कोर्ट को सरकार को सम्मान करना चाहिए और सरकार को कोर्ट का सम्मान करना चाहिए। हम दोनों की सीमाएं तय हैं। ऐसे में किसी को भी लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए। हमने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। अदालत को पीएम की मंशा से भी अवगत कर दिया है।" उन्होंने कहा कि "हम कोर्ट का सम्मान करते हैं, लेकिन एक लक्ष्मण रेखा है जिसका राज्य के सभी अंगों को सम्मान कर चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि संविधान के प्रावधानों के साथ मौजूदा कानूनों का भी सम्मान किया जाए। अदालत को सरकार का, सरकार को अदालत का सम्मान करना चाहिए।"

कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में इस कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करने का आग्रह किया है। भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि "हम उम्मीद रखते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी एफआईआर दर्ज करने, जांच करने या आईपीसी की धारा 124ए के तहत जबरन कदम उठाने से परहेज करेंगी।" एक निजी चर्चा के बाद कोर्ट ने पूछा कि अभी कितने याचिकाकर्ता जेल में हैं। याचिकाकर्ताओं के तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने प्रस्तुत किया कि वर्तमान में 13000 व्यक्ति इस प्रावधान के तहत जेल में बंद हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि, यदि कोई नया मामला दायर किया जाएगा, तो लोग अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। इसी के साथ कहा कि सरकार कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए राज्यों को निर्देश दे सकती है।

यह भी पढ़ें: मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई, HC के जज फैसले पर एकमत नहीं हुए

वहीं एनडीटीवी से बात करते हुए इस कानून के खिलाफ याचिका देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक रिटायर मेजर जनरल सुधीर वोम्बतकेरे ने कहा कि "उन्होंने जिस संविधान की रक्षा की, उसकी शपथ ली, जब उसे चुनौती दी जा रही थी, उन्होंने तब अदालत जाने का फैसला किया।" कहा कि "हर सैनिक संविधान की रक्षा करने की शपथ लेता है। संविधान की रक्षा के लिए अपने जीवन को भी खतरे में डालता है। ताकि देश के भीतर लोग सुरक्षित रहें। अपने अधिकारों का मजा लें, जो संविधान उन्हें देता है। इसलिए मैंने इस मामले को उठाया।" 

यह भी पढ़ें: कृषि मंत्री कमल पटेल ने ऊर्जा मंत्री से कहा, बिजली कटौती बंद नहीं हुई तो किसान भाजपा को निपटा देगा

कोर्ट द्वारा कानून पर रोक लगा देने को लेकर उन्होंने कहा कि "इसका मतलब साफ कि राजद्रोह के आरोप में सैंकड़ो लोगों को इससे राहत मिलेगी। वे अब जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं और जांच पर रोक लगा दी जाएगी।" साथ ही उन्होंने कहा कि "यह अंतिम नहीं एक अंतरिम आदेश है। यह आदेश दिया गया, क्योंकि सरकार ने यू-टर्न लेते हुए कहा कि वे राजद्रोह कानून की समीक्षा करेंगे, लेकिन देशद्रोह कानून की न्यायिक परीक्षा जारी रहेगी।"  जनरल वोम्बतकेरे ने इस कानून का विरोध करने को लेकर कहा "मैंने देखा कि बहुत सी चीजें गलत हो रही हैं। मैं मानता हूं कि अगर एक जगह अन्याय है, तो हर जगह अन्याय है। अन्याय का विरोध करना होगा।" 

यह भी पढ़ें: प्रशांत किशोर ने खुलकर कही बात, कहा- भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी पीएम मोदी पर निर्भरता है

बता दें कि राजद्रोह कानून का मतलब है सरकार के खिलाफ की जाने वाली गतिविधि। ये कानून देश नहीं बल्कि राज यानी सरकार के खिलाफ द्रोह है। भारतीय दंड सहिंता 124 ए के तहत कोई भी व्यक्ति अगर सरकार के खिलाफ लिखता है, या किसी लेख का समर्थन करता है, तो उसपर राजद्रोह लगाया जा सकता है। इसी तरह संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास करता है या कोई राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करता है तो यह राजद्रोह है। इस कानून को ब्रिटिश सरकार लेकर आई थी। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाजें उठ रही थीं, लोग सरकार को चुनौती दे रहे थे इसलिए इस कानून को लाया गया। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये कानून स्थायी नहीं है। 1950 के संविधान में इस कानून को कोई जगह नहीं मिली थी। इस कानून को 1951 के पहले संशोधन में लाया गया था। इस कानून को लेकर सवाल उठते रहे हैं कि सरकार की आलोचना कब राजद्रोह बन जाए पता नहीं। 

यह भी पढ़ें: MP में खुलेगी NIA की ब्रांच, आतंकवादी गतिविधियों पर रखी जायेगी नजर

इस कानून को लेकर साल 2018 में विधि आयोग यानी लॉ कमीशन ने अपने एक परामर्श पत्र में कहा था कि 124 ए केवल उन्हीं मामलों में लागू की जानी चाहिए, जब किसी कार्य के पीछे सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने, हिंसा और अवैध साधनों से सरकार को उखाड़ फेंखने की मंशा हो। वहीं नेशनल क्राइम रिकार्ड्स बयूरो के आंकड़ों के अनुसार,  2015 से 2020 के दौरान 356 राजद्रोह के मामले दर्ज किए गए थे। जिसमें 548 लोगों को हिरासत में लिया गया था, लेकिन इनमें से सिर्फ 12 लोगों लोगों पर ही राजद्रोह का अपराध साबित हो पाया है। एक आंकड़ों के मुताबिक, हाथरस गैंगरेप का विरोध कर रहे 22 लोगों पर, सीएए यानी नागरिक संशोधन कानून के विरोध में शामिल 25 लोगों पर और पुलवामा हमले के बाद 27 अलग-अलग लोगों पर राजद्रोह के मुकदमें दर्ज किये गए थे।