आज़ादी के बाद देश में पहली बार किसी महिला को होगी फाँसी, अपने परिवार के 7 लोगों की हत्या की दोषी है शबनम

शबनम की दया याचिका को राष्ट्रपति कोविंद खारिज कर चुके हैं, 2015 में यूपी के तत्कालीन गवर्नर राम नाइक ने भी उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया था

Updated: Feb 17, 2021, 03:03 PM IST

Photo Courtesy: Jagran
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नई दिल्ली। यूपी के अमरोहा की रहने वाली शबनम को फांसी दिए जाने की तैयारी हो रही है। शबनम ने 13 साल पहले अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता पिता सहित परिवार के कुल 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। शबनम की दया याचिका को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने खारिज कर दिया है। लिहाज़ा शबनम की फांसी अब सुनिश्चित मानी जा रही है। हालांकि अब तक उसकी फांसी की तारीख तय नहीं हुई है, लेकिन खबर है कि इसके लिए जरूरी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। 

शबनम इस समय रामपुर की जेल में बंद है। जबकि उसका प्रेमी आगरा की जेल में बंद है। शबनम उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहने वाली है। अमरोहा के बाबनखेडी की रहने वाली शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार वालों को पहले बेहोशी की दवा दी, उसके बाद सब को कुल्हाड़ी से काट डाला था। 

जिन लोगों की हत्या की गई उनमें शबनम के पिता शौकत अली, मां हाशमी, भाई अनीस अहमद, भाभी अंजुम, भतीजी राबिया और भाई राशिद के अलावा अनीस का दस महीने का बेटा भी शामिल थे। शबनम ने यह जघन्य अपराध अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर 14 अप्रैल 2008 को किया था। शबनम और सलीम एक दूसरे से प्रेम करते थे। शबनम गर्भवती थी और सलीम से निकाह करना चाहती थी। लेकिन शबनम के परिवार वाले दोनों के रिश्ते के लिए राज़ी नहीं थे। लिहाज़ा शबनम और सलीम ने मिलकर पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया। 

शबनम के खिलाफ मुरादाबाद कोर्ट में केस चला। उस दौरान शबनम का गांव बाबनखेड़ी मुरादाबाद में ही आता था। लेकिन बाद में बाबनखेडी अमरोहा में आ गया। इसके बाद शबनम के खिलाफ ट्रायल अमरोहा कोर्ट में चला। 15 जुलाई 2010 अमरोहा कोर्ट ने शबनम के लिए फांसी की सज़ा मुकर्रर की। इसके बाद हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया, लेकिन शबनम की फांसी बरकरार रही। 2015 में शबनम की दया याचिका को यूपी के तत्कालीन गवर्नर राम नाइक ने खारिज कर दिया।

जेल में कैद रहने के दौरान ही शबनम ने 14 दिसंबर 2008 को बेटे को जन्म दिया था। 15 जुलाई 2015 को उसका बेटा बाहर आ गया। शबनम ने अपने बेटे को अपने पत्रकार दोस्त उस्मान सैफी को सौंप दिया। शबनम ने अपने दोस्त से कहा कि चूंकि उसके बेटे की जान को खतरा है, इसलिए उसे कभी गांव लेकर नहीं जाएं। शबनम ने अपने बेटे का नाम भी बदल देने के लिए कहा। 

अब शबनम फांसी के फंदे पर लटकने जा रही है। उसकी फांसी की तारीख तो अभी तय नहीं हुई है, लेकिन फांसी की तैयारियां मथुरा जेल में शुरू कर दी गई हैं। फांसी देने का काम करने वाले पवन जल्लाद से मथुरा जेल प्रशासन ने संपर्क भी कर लिया है। मथुरा जेल में महिलाओं को फांसी देने का इंतज़ाम 1870 में किया गया था, लेकिन आज़ादी के बाद से यहां किसी महिला को फांसी नहीं दी गई। स्वतंत्रता के बाद पहली बार किसी महिला को फांसी दी जाएगी।