मणिपुर में संवैधानिक मशीनरी का पूरी तरह ब्रेक डाउन हो चुका है, सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अब वहां हालात सुधर रहे हैं। CBI को जांच करने दें। अदालत इसकी मॉनिटरिंग करे। केंद्र की ओर से कोई सुस्ती नहीं है।
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नई दिल्ली। मणिपुर में जारी मैतेई-कुकी सामुदायिक संघर्ष के बीच दो महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र घुमाना आधुनिक भारत के इतिहास की शर्मनाक घटनाओं में एक है। इससे भी बड़ी चिंता इस बात की है कि यह घटना 4 मई की है और एफआईआर 18 मई की। क्या केंद्र और राज्य की सरकारों ने इसे छुपाया? यह सवाल अनुत्तरित है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस घटना को लेकर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि मणिपुर कोई कानून व्यवस्था नहीं बची है।
मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा लगता है संवैधानिक मशीनरी का पूरी तरह ब्रेक डाउन हो चुका है। वहां कोई कानून व्यवस्था नहीं बची है। किस तरह से जांच इतनी सुस्त है। इतने लंबे समय के बाद एफआईआर दर्ज की जाती है, गिरफ्तारी नहीं होती। इस पर सॉलिसिटर तुषार मेहता ने कहा कि अब वहां हालात सुधर रहे हैं। CBI को जांच करने दें। अदालत इसकी मॉनिटरिंग करे। केंद्र की ओर से कोई सुस्ती नहीं है।
मामले की सुनवाई अब 7 अगस्त यानी सोमवार को होगी। सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के डीजीपी को तलब किया है। सीजेआई ने कहा है कि एक नोट तैयार करके अगली तारीख पर कोर्ट को बताएं, जिसमें ये सभी जानकारी हों
1. घटना की तारीख
2. जीरो एफआईआर दर्ज करने की तारीख
3. नियमित एफआईआर दर्ज करने की तारीख
4. वह तारीख जिस दिन गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं
5. किस दिन CRPC की धारा 164 के तहत कोर्ट के सामने बयान दर्ज किए गए
6. गिरफ्तारी की तारीख
चीफ जस्टिस ने केंद्र और राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जब कानून व्यवस्था आम नागरिकों की सुरक्षा नहीं कर पा रही तो कैसी व्यवस्था है? आपकी रिपोर्ट और मशीनरी काफी आलसी और सुस्त है। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि सरकार अलग-अलग सारणी या सूची से बताए कि कितनी एफआईआर रेप और हत्या, हत्या, लूट, डकैती, आगजनी, जान माल के नुकसान से संबंधित हैं।