उत्तरी भारत में प्रदूषण 20 साल में सबसे कम

लॉकडाउन की वजह से कई स्थानों पर वायुमंडलीय संरचना में परिवर्तन दिखना तय था लेकिन भारतीय गंगातटीय क्षेत्रों में एरोसॉल का इतना कम स्तर पहले कभी नहीं देखा गया।

Publish: Apr 24, 2020, 12:10 AM IST

कोरोना वायरस के खतरे की वजह से पूरे देश मे लॉकडाउन लागू है. ऐसे में प्रदूषण का स्तर बहुत तेजी से कम हुआ है. अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सैटेलाइट डेटा के मुताबिक उत्तरी भारत में प्रदूषण का स्तर पिछले 20 सालों के सबसे कम स्तर पर है. एजेंसी ने पाया है कि लॉकडाउन के बाद हवा में एरोसॉल का स्तर पिछले 20 सालों में सबसे कम है.

नासा से जुड़े एक वैज्ञानिक पवन गुप्ता ने बताया, “हम जानते थे कि लॉकडाउन की वजह से हम कई स्थानों पर वायुमंडलीय संरचना में परिवर्तन देखेंगे. लेकिन मैंने भारतीय गंगातटीय क्षेत्रों में एरोसॉल का इतना कम स्तर पहले कभी नहीं देखा था.”

नासा द्वारा जारी किए गए डेटा में साल 2020 के एरोसॉल डेप्थ की तुलना 2016 से लेकर 2019 के आंकड़ों से की गई है. एरोसॉल डेप्थ अगर एक इकाई से ज्यादा होती है तो प्रदूषण का स्तर खतरनाक माना जाता है, वहीं 0.1 से कम होने पर वातावरण को साफ माना जाता है.

वैज्ञानिक पवन गु्प्ता ने बताया, “लॉकडाउन के पहले कुछ दिनों में प्रदूषण में ज्यादा कुछ बदलाव नहीं हुआ. लेकिन पहले सप्ताह के बाद इसमें काफी कमी आनी शुरू हुई और बारिश ने भी वातावरण को साफ किया.”

27 मार्च को उत्तरी भारत के इलाकों में भारी बारिश हुई, जिससे हवा में एरोसॉल कण साफ हो गए. वैज्ञानिक पवन गुप्ता ने बताया कि बारिश के बाद एरोसॉल डेप्थ में बढ़ोतरी नहीं हुई और आने वाले दिनों में भी स्तर स्थिर बना रहा.

एरोसॉल हवा में उपस्थित ठोस और द्रव्य पदार्थों के अतिसूक्ष्म कण होते हैं, जो इंसानों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और विजिबिलिटी कम कर देते हैं.

हालांकि, दक्षिणी भारत में परिस्थितियां उत्तरी भारत की तरह नहीं हैं. डेटा बताता है कि पिछले चार साल के मुकाबले दक्षिण भारत में प्रदूषण इस बार बढ़ा है. इसके पीछे का कारण साफ नहीं है, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि मौसम के पैटर्न और फसलों के अवशेष जलाने की वजह से ऐसा हुआ है.