दफ्तर दरबारी: सख्त महिला आईएएस के जरिए मंत्री को जवाब
MP News: एमपी के प्रशासनिक में गुजरा सप्ताह राजनीतिक दृष्टि से अहम् रहा। एक तबादले के पीछे खास राजनीतिक मकसद छिपा हुआ है। एक तरफ, वरिष्ठ मंत्री प्रहलाद पटेल के विभाग में ऐसी अफसर भेज दी गई हैं जिनके साथ तालमेल बैठाना आसान नहीं है वहीं अन्य मंत्रियों की मन मांगी मुराद पूरी हो हुई।
राजनीति शह-मात का खेल है और जब मुकाबला अपनों के ही बीच हो तो यह खेल और भी दिलचस्प हो जाता है। मध्य प्रदेश में यही हो रहा है। लंबे इंतजार के बाद जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के सीनियर आईएएस अफसरों को नया काम दिया तो उसके भी नए राजनीतिक अर्थ निकले। इस फेरबदल का एक अर्थ कद्दावर मंत्री प्रहलाद पटेल को जवाब देना भी है।
ताजा प्रशासनिक फेरबदल में सीनियर आईएएस दीपाली रस्तोगी को मंत्री प्रहलाद पटेल के विभाग पंचायत एवं ग्रामीण विकास में प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया है। यह एक सामान्य पदस्थापना होती लेकिन जब कुछ कडि़यों को जोड़ते हैं तो नए अर्थ खुलते हैं। आईएएस दीपाली रस्तोगी को खरी बात कहने और ईमानदार काम करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने स्वच्छता मिशन की विसंगतियों पर बेबाकी से आलेख लिखा था। वे सरकार या राजनेताओं की प्रतिक्रिया की परवाह किए बिना अपनी तर्क क्षमता से कार्य करती है।
मंत्री प्रहलाद पटेल भी मंझे हुए राजनेता हैं। वे भी उतने ही कौशल से काम करते हैं। अब तक उनकी और विभाग के एसीएस मलय श्रीवास्तव की अच्छी पटरी बैठ रही थीं। अब दोनों के मध्य प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी के आने से यह ट्यूनिंग बाधित होना तय है। आकलन है कि प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी को मंत्री और एसीएस की ट्यूनिंग तोड़ने के लिए ही भेजा गया है। वे अपने अंदाज में काम करेंगी और अब तक सहमति और सरलता से जो होता आया है वह शायद न हो।
इस नियुक्ति के कारण को तलाशने पर दिलचस्प तर्क पता चलता है। कुछ दिनों पहले मंत्री प्रहलाद पटेल के विभाग की असहमति के कारण भोपाल, इंदौर जैसे शहरों में रात में भी बाजार खुले रखने की लुभावनी योजना को वापस लेना पड़ा था। यह मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की महत्वाकांक्षी योजना थी। योजना के पास न होने से यह संदेश गया कि कद्दावर मंत्री प्रहलाद पटेल के आगे मुख्यमंत्री की नहीं चली। माना जा रहा है कि इस शिकस्त के बाद ही सख्त छवि की आईएएस दीपाली रस्तोगी को पंचायत ग्रामीण विकास विभाग में भेज दिया गया।
मंत्रियों को मिल गए अपने 'आईएएस'
एक तरफ, वरिष्ठ मंत्री प्रहलाद पटेल के विभाग में ऐसी अफसर पहुंच गई हैं जिनके साथ तालमेल बैठाना आसान नहीं है वहीं अन्य मंत्रियों की मन मांगी मुराद पूरी हो गई है। महीनों इंतजार करवाने के बाद मंत्रियों को मनचाहे स्टॉफ अफसर दे दिए गए हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद मुखिया बदलने के साथ ही संगठन ने कुछ नियम सख्ती से लागू किए थे। इनमें से एक नियम यह था कि नई सरकार में मंत्री नए चेहरे होंगे तथा उनका स्टाफ भी नया होगा। यानी पुराने मंत्रियों के साथ काम कर चुके निज सचिव व सहायकों को दोबारा यही काम नहीं दिया जाएगा। इसके पीछे तर्क दिया गया कि ये अफसर अपनी तरह से मंत्रियों को चलाएंगे और तंत्र पुराने ही ढर्रे पर चलता रहेगा। नए सहायकों और सचिवों की नियुक्ति का एक उद्देश्य सरकार के कामकाज को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना भी था।
मगर यह फैसला पूरी तरह लागू नहीं हुआ। कुछ कद्दावर मंत्रियों को उनके मनचाहे कर्मचारी दे दिए गए थे और नए मंत्रियों की मुराद रोक दी गई थी। इस भेदभाव से मंत्रियों में असंतोष था। मंत्री ठीक से काम भी नहीं कर पा रहे थे। विभाग के आईएएस अफसरों के आगे मंत्री नए और कम अनुभवी साबित हो रहे थे। वे अपने पसंदीदा अफसर पाने के लिए अड़े हुए थे और बार-बार नोटशीट लिख रहे थे। आखिर 8 माह बाद सरकार झुक ही गई। अब मंत्रियों को भले ही प्रमुख सचिव या विभागाध्यक्ष मन का न मिला हो, लेकिन निजी सहायक तो मन के मिल ही गए है।
अफसरों को बदलने की ऐसी परिपाटी का क्या हासिल
सागर में दीवार गिरने से नौ बच्चों की मृत्यु के बाद राज्य सरकार ने सागर के कलेक्टर और एसपी को हटा दिया। सरकार ने अपने इस कदम से उतनी तारीफ नहीं पाई जितनी आलोचना हो गई।
हुआ यूं कि ज्यों ही बच्चों की मृत्यु की खबर आई लापरवाही के कारण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शाहपुर के डॉक्टर, एसडीएम सहित नगर पालिका के सीएमओ और सब इंजीनियर को सस्पेंड कर दिया था। इस कदम की प्रशंसा स्वाभाविक थी। हर वर्ष बारिश के पहले जर्जर भवनों का सर्वे कर नोटिस जारी किए जाते हैं। सागर में भी ऐसा हुआ लेकिन जर्जर दीवार को हटावाया नहीं गया। ऐसे में दोषी कर्मचारियों पर कार्रवाई उपयुक्त थी लेकिन रात में सरकार अपने एक और फैसले के कारण आलोचना का शिकार हो गई।
शाहपुर हादसे की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर जिले के कलेक्टर दीपक आर्य और पुलिस अधीक्षक अभिषेक तिवारी को देर रात हटा दिया गया। इसी पर सरकार घिर गई। इस फैसले पर इसलिए आलोचना हुई कि घटना के लिए सीधे-सीधे कलेक्टर कैसे दोषी हो गया? कलेक्टर को हटा देना लोकप्रिय फैसला हो सकता है लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से यह निर्दोष सजा मानी जाती है। ऐसी कार्रवाई से कलेक्टरों की स्वाभाविक शैली खत्म हो रही है वे भी नकल करते हुए देखा देखी कार्रवाई करने लगते हैं।
सवाल उठ रहे हैं कि हर घटना के बाद अफसरों को हटा देने की इस परिपाटी का क्या हासिल हैं जिसके कारण सरकार की छवि नहीं बनती बल्कि खुद सरकार हँसी का पात्र बन जाती है। इसी तरह, एसपी अभिषेक तिवारी को हटाने पर सवाल उठा कि जो अफसर पिछले एक पखवाड़े से अवकाश पर है और विदेश में है उसे सजा का क्या औचित्य है? खुद अभिषेक तिवारी प्रतिनियुक्ति पर जाना है। खुद तबादले का इंतजार पिछले कई महीनो से कर रहे थे। उन्हें हटाया जाना वास्तव में सजा नहीं है मुराद पूरी होना है।
कौन बजा रहा है मोहन सरकार का डमरू
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी कार्यशैली से पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अलग लाइन खींचने की कोशिश की है लेकिन अभी तो सरकार को एक साल भी पूरा नहीं हुआ है और सीएम डॉ. मोहन यादव वे ही कार्य करते हुए नजर आ रहे हैं जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किया करते थे।
बीते डेढ़ दशक में मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने एक सहज और लोकप्रिय नेता की छवि पाई है। इस छवि को गढ़ने में इवेंट और कार्यक्रमों की अहम् भूमिका रही है। उनकी ब्रांडिंग का कार्य अफसरों ने ही नहीं बल्कि ख्यात एजेंसियों ने भी किया है। अब वे मुख्यमंत्री नहीं है लेकिन लगता है कि मुखिया बदलने के बाद भी ब्यूरोक्रेसी का अंदाज नहीं बदल रहा है। ब्यूरोक्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ही तरह सीएम डॉ. मोहन यादव को भी चमकीली ब्रांडिंग के रास्ते चलवा रही है। मंच पर गाना, बहनों से राखी बंधवाना, अफसरों से सख्त लहजे में बात और गिनीज बुक रिकार्ड में दर्ज होने वाले भव्य आयोजन... शिवराज की शैली थी और मोहन यादव भी अब यही कर रहे हैं।
बीते दिनों जब संस्कृति विभाग के आयोजन में उज्जैन में एक साथ सबसे ज्यादा डमरू बजाने का विश्व रिकार्ड बना तो यही सवाल हुआ कि मैदानी मुद्दों से निपटने की जगह क्यों सरकार इस तरह के आयाजनों को रच रही है। क्या मोहन यादव भी इस चकाचौंध के जाल में उलझ कर रह जाएंगे? इस तरह तो मैदान में फैल रहे असंतोष को संभाल पाना मुश्किल काम हो जाएगा। फिर सलाहकार क्यों इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं।