दफ्तर दरबारी: मास्टर प्लान तो आया अफसरों के आशियाने का क्या होगा
MP News: पर्यावरण प्रेमी यह जानकार खुश हैं कि सरकार ने बड़े तालाब को खत्म करने वाले प्रावधानों की ही खत्म कर दिया है मगर अभी तय नहीं है कि इस नए मास्टर प्लान से उस अवैध निर्माण का क्या होगा जो आईएएस-आईपीएस अफसरों ने कर रखा है? क्या ये बंगले नियमों की आड़ में बचे रह जाएंगे?

आईएएस-आईपीएस के नियम विरूद्ध बने बंगलों पर क्या चलेगा बुलडोजर?
17 सालों से बिना मास्टर प्लान वाले भोपाल के नए मास्टर प्लान 2031 का प्रारूप (ड्राफ्ट) जारी कर दिया गया है। मास्टर प्लान-2031 का ड्रॉफ्ट तीन साल में दूसरी बार जारी किया गया है। इससे पहले 10 जुलाई 2020 को ड्रॉफ्ट जारी किया गया था तब तालाब के कैचमेंट एरिया में निर्माण को अनुमति देने के प्रावधान पर विवाद हुआ था। सरकार ने करीब 10 माह बाद अपनी गलती सुधारते हुए तय किया है कि बड़े तालाब की सीमा को खत्म करने वाले कार्यों पर रोक जारी रहेगी।
अब इस मास्टर प्लान पर 30 दिन के दौरान दावे आपत्ति दर्ज करवाई जा सकती है। पर्यावरण प्रेमी यह जानकार खुश हैं कि सरकार ने बड़े तालाब को खत्म करने वाले प्रावधानों की ही खत्म कर दिया है मगर अभी तय नहीं है कि इस नए मास्टर प्लान से उस अवैध निर्माण का क्या होगा जो आईएएस-आईपीएस अफसरों ने कर रखा है।
बीते कई महीनों से अफसरों की कॉलोनी व्हिसपरिंग पॉम की चर्चा है। यहां अफसरों ने तय एफएआर 0.06 से ज्यादा निर्माण कर लिया है। यानी 10 हजार स्क्वेयर फीट के प्लाट पर मात्र 600 वर्गफीट तक निर्माण ही हो सकता है। जबकि अफसरों के बगलों में 5 से 7 हजार वर्गफीट तक का निर्माण किया गया है। इस अवैध निर्माण निर्माण को वैध करने के लिए ही जुलाई 2022 में प्रस्तुत ड्राफ्ट में व्हिसपरिंग पॉम का एफएआर 0.75 प्रस्तावित गया किया था। जब विरोध हुआ तो अब इसे सरकार ने बदलकर पहले की तरह 0.06 कर दिया है। यही नियम लो डेनसिटी एरिया में बने आईपीएस के बंगलों पर भी लागू होगा।
इस अवैध निर्माण पर नए मास्टर प्लान में कुछ नहीं कहा गया है। एक तर्क दिया गया है कि नया मास्टर जिस दिन से लागू होगा उसके नियम भी उसी तारीख से लागू होंगे और इस कारण पहले से बने इन बंगलों पर कोई आंच नहीं आएगी। लेकिन कायदे से यह अवैध निर्माण टूटने चाहिए क्योंकि किसी भी मास्टर प्लान में यहां अधिक निर्माण की अनुमति नहीं थी, न नए प्रारूप में ही अनुमति दी गई है।
सभी की निगाहें लगी हुई हैं कि अपराधियों में दहशत कायम करवाने के लिए प्रदेश में विभिन्न जगहों पर बुलडोजर चलवाने वाले अधिकारियों के बंगलों पर क्या अब बुलडोजर चल सकेगा? या ये बंगले भी खानूगांव में हुए अवैध निर्माण की तरह नियम कायदों को मुंह चिढ़ाते रहेंगे? बड़े तालाब का कल्याण तो तब होगा जब पिछले 25 सालों में इसके आसपास तथा कलियासोत व केरवा डेम के मार्ग पर हुए सभी अवैध निर्माणों को तोड़ दिया जाए। अन्यथा तो इन अवैध निर्माणों से निकला कचरा, सीवेज, सीपेज तालाब और इसके कैचमेंट एरिया को नुकसान ही पहुंचाता रहेगा।
आंधी चली, मूर्ति गिरी, लंबित जांच आगे बढ़ी .
कहावत है कि बिल्ली के भाग से छींका टूटना... महाकाल लोक के भ्रष्टाचार मामले में यही कहावत लागू हो रही है। महाकाल लोक के निर्माण में भ्रष्टाचार की दो शिकायतें की गई थीं। कांग्रेस विधायक महेश परमार की शिकायत पर लोकायुक्त ने तीन आईएएस सहित 15 अफसरों को नोटिस दिए थे। इन अफसरों में तत्कालीन उज्जैन कलेक्टर और स्मार्ट सिटी लिमिटेड के अध्यक्ष आशीष सिंह, स्मार्ट सिटी के तत्कालीन कार्यपालक निदेशक क्षितिज सिंघल और तत्कालीन निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता शामिल हैं! आशीष सिंह इनदिनों भोपाल कलेक्टर हैं। इस मामले में लोकायुक्त ने रिकॉर्ड मांगा है लेकिन उज्जैन स्मार्ट सिटी की तरफ से अब तक यह रिकार्ड नहीं दिया गया है। इससे संकेत गया था कि सरकार किसी तरह की जांच नहीं चाहती है।
खबरें आई थीं कि सरकार से जानकारी नहीं मिलने के कारण लोकायुक्त भी खुद को असहाय महसूस कर रहे थे तभी आंधी और तेज बारिश ने जैसे अवसर का काम कर दिया। महाकाल लोक में फाइबर रिइंफोर्समेंट प्लास्टिक से बनी मूर्तियां गिरी और लोकायुक्त को जांच का वह मौका मिल गया जिसका वह इंतजार कर रहा था। मौका मिलते ही लोकायुक्त ने स्वत: संज्ञान से जांच शुरू कर दी है। संगठन के चीफ इंजीनियर एनएस जौहरी ने उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (ईडी) को चिट्ठी लिखकर मूर्तियों का टेंडर, एग्रीमेंट और वर्क ऑर्डर की मूल कापी मांगी है। इसके अलावा टेंडर बुलाने से लेकर उसे मंजूर करने, काम पूरा कैसे किया गया, बिल पेमेंट कैसे हुआ, काम की मौजूदा स्थिति क्या है आदि के बारे में हुए सभी पत्राचार और नोटशीट की मूल कॉपी मांगी है।
लंबे समय बाद लोकायुक्त ने खुद किसी मामले को जांच में लिया है। इस कारण माना जा रहा है कि जिस महाकाल लोक में भ्रष्टाचार को सरकार नकार रही है उसके दस्तावेज खंगाल कर लोकायुक्त सरकार की मुसीबत ही बढ़ा रहा है।
घोटाले की जांच होगी, इंतजार कीजिए
पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन की सब इंजीनियर हेमा मीणा के निवास से लोकायुक्त को 35 लाख नकदी, 10 तोला सोना, एक दर्जन से अधिक लग्जरी कारें, 30 लाख रुपए की विदेशी एलईडी टीवी, 20 हजार वर्गफीट में एक करोड़ का ऑलीशान फार्म हाउस सहित आय से 332 प्रतिशत अधिक संपत्ति मिली है। इस एक कर्मचारी के भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन में हुए अब तक के सभी घोटालों और गड़बडि़यों को चर्चा में ला दिया है। एक कर्मचारी के पास भ्रष्टाचार की इतनी रकम मिली है तो बाकी के पास कितनी होगी और भ्रष्टाचार की इस कड़ी का अन्य हिस्सा कौन हैं?
यह जानने के लिए जब 2021 से पहले हुए घोटालों की शिकायत करते हुए जांच की मांग की गई तो पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के चेयरेमैन डीजी महेश मकवाना ने जांच की उम्मीद जगा दी है। जांच की मांग वाले ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा कि वे इस मामले की जांच करवाएंगे, इंतजार कीजिए।
सीनियर आईपीएस महेश मकवाना के इस ट्वीट से जांच की उम्मीद जागी है। ये वही महेश मकवाना है जिन्होंने लोकायुक्त में रहते हुए भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के जतन किए थे और फिर ताबड़तोड़ उन्हें वहां से हटा दिया गया था। चेयरमैन महेश मकवाना ने तो अपने विभाग में गड़बडि़यों की जांच का आश्वासन दिया है और संभव है कि वे जांच करवा भी लें। लेकिन आदिवासी क्षेत्रीय विकास योजनाओं के सतुपड़ा भवन स्थित संचालनालय के रिनोवेशन में खर्च हुए 90 लाख में भ्रष्टाचार की शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। यह शिकायत फिलहाल पेंडिंग है।
आईएएस जॉन किंग्सली में दोष क्या?
बीते दिनों सरकार ने प्रशासनिक जमावट के तहत कुछ आईएएस को नई जिम्मेदारियां दी हैं। इनमें एक नाम आईएएस जॉन किंग्सली का है। इस एक तबादले पर कुछ लोगों को आश्चर्य हुआ तो कई ऐसे भी हैं जिन्हें यह जान कर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ कि सात माह में ही उनका तबादला कर दिया गया है। उनका मानना है कि सिस्टम में फिट नहीं होने वाले ऐसे अधिकारियों को बार-बार तबादले तो भोगना ही पड़ते हैं।
इस हफ्ते जारी तबादला सूची में 2004 के बैच के आईएएस जॉन किंग्सली को आयुक्त चिकित्सा शिक्षा से हटा कर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में सचिव बनाया गया है। यह एक सामान्य प्रशासनिक तबादला होता लेकिन इस तबादले की चर्चा इसलिए कि आईएएस जॉन किंग्सली को सात माह पहले ही चिकित्सा शिक्षा आयुक्त बनाया गया था।
सात माह पहले भी उन्हें वित्त विभाग में हटाया गया था क्योकि उनकी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी से तालमेल नहीं था। इस बार भी विभागीय मंत्री की नाराजगी को तबादले का कारण बताया गया है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर आईएएस जॉन किंग्सली का दोष क्या है कि दो साल में तीन तबादले हो जाते हैं जबकि कई अधिकारी एक ही विभाग में बरसों गुजार देते हैं।