दफ्तर दरबारी: जिनके डर से कांपता था इंदौर शहर उन साहब की टेबल से चोरी
Corruption in MP: जैसा कि होता है विश्वास की भैंस पानी में ही जा कर बैठ जाती है। इधर,दबंग साहब गए और नए साहब आए, उधर, मुसीबत बढ़ी। ऐसा ही कुछ हुआ इंदौर में। करोड़ों की अनियमितता में पकड़े गए घोटालेबाज बाबू के पीछे कौन है, इस राज पर अब भी पर्दा पड़ा है? इधर, भोपाल में एक सीनियर आईएएस ने ऐसा फरमान दे दिया है जिससे उनकी ही बिरादरी के लोगों की मुसीबतें बढ़ जाने वाली हैं।

शहर में चोरी हो जाए तो फिर भी किसी तरह बचाव किया जाए लेकिन हरदम ‘जागते रहो’ कहने वाले दरोगा की टेबल से चोरी हो जाए तो क्या मानिएगा? इंदौर में ऐसा ही कुछ हुआ है जहां चोर पकड़ा गया तो दरोगा जी की ओर निगाहें उठ गईं। मामला इतना बड़ा है कि अदने कर्मचारियों के निपट जाने के बाद भी बड़ों की ओर उंगलियां उठ ही रही हैं।
मामला कुछ यूं है कि इंदौर नए कलेक्टर इलैया राजा ने पद संभालते ही कुछ उड़ती उड़ती सी खबरों को पकड़ा तो कलेक्टर कार्यालय से घोटाले का जिन्न बाहर निकला। पता चला कि कलेक्टर कार्यालय के बाबू मिलाप चौहान ने पौने छह करोड़ का घोटाला किया है। 2020 से लेकर अब तक ये राशि सरकारी योजनाओं के पात्र लोगों के हिस्से से उड़ाई गई थी। बाबू ने यह पैसा अपनी पत्नी तथा दफ्तर के ही कुछ अन्य कर्मचारियों के खाते में डाला था। उसकी ऐशोआराम वाली जिंदगी देख अकसर सवाल उठते थे। बैंक खातों में पैसा आने पर कभी शंका-आशंका होती तो वह यह कह कर सबको आश्वस्त कर देता कि मैं सबको हिस्सा दे रहा हूं, हमारा कोई क्या बिगाड़ेगा।
मगर जैसा कि होता है विश्वास की भैंस पानी में ही जा कर बैठ जाती है। इधर, साहब गए और नए साहब आए, उधर, मुसीबत बढ़ी। मगर हौसला देखिए, पकड़ा गए बाबू के पास गड़बड़ी का पैसा लौटाने की व्यवस्था है। वह कह रहा है खेत और जमीन बेच कर तीन-साढे तीन करोड़ तो मैं दे दूंगा। शेष पैसा उनसे वसूलो जिन्होंने उस सरकारी पैसे का हिस्सा लिया है।
पुलिस ने घोटाले के पैसे का हिस्सा पाने वाले 29 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। मगर सवाल तो आका पर है। वो कौन है जिसकी शह पर अनुकंपा नियुक्ति से सर्विस में आने वाला मिलाप कलेक्टर कार्यालय का दमदार कर्मचारी बन गया? किसी दमदार अफसर या नेता के पीठ पर हाथ रखे बिना किसी बाबू की इतनी ताकत नहीं हो सकती कि वह करोड़ों का खेल उस दफ्तर में कर जाए जिस दफ्तर के मुखिया से पूरा शहर आक्रांत रहता था।
वे कलेक्टर जिन्होंने शहर का सिस्टम बदलने के अपने प्रयास में किसी की भी नहीं सुनी। उन्हीं के अधीनस्थ रहते हुए बाबू मिलाप चौहान सरकारी योजनाओं के पैसे में हेरफेर कर रहा था और साहब इस सबसे अनजान थे। जिन्हें पूरे शहर की खबर थी उन्हें ही अपने दफ्तर में अपने अधीनस्थ बाबू की कारगुजारियों की भनक भी नहीं लगी।
जांच का विषय है कि आरोपी मिलाप चौहान ने किसके के बारे में कहा था कि मेरा कुछ नहीं होगा क्योंकि सबको हिस्सा दे रहा हूं। नए कलेक्टर ने भ्रष्टाचार के तालब में कांटा तो हाथ डाल ही दिया है अब देखना होगा कि छोटी मछलियां ही पकड़ी जाएंगी या बड़ी मछलियों के चेहरे भी उजागर होंगे।
अफसरों का चक्रव्यूह तोड़ने के लिए माननीयों को चाहिए चक्र
विधानसभा में माननीयों ने कहा है कि अफसरों के खिलाफ विभिन्न मामलों की जांच समिति में उन्हें भी शामिल किया जाए। इसके पीछे तर्क है कि अफसर जांच करते हैं तो अपनी बिरादरी के लोगों के प्रति नर्म रूख अपनाते हुए जांच में ढि़लाई बरत देते हैं। यह आरोप विपक्ष के विधायकों का नहीं है बल्कि सत्ता पक्ष के विधायक भी यही मांग कर रहे हैं।
विधायकों ने यह मांग खुल कर विधानसभा में की है। उनका कहना है कि भ्रष्टाचार सहित अनियमितता के आरोपों में जांच करवाई जाती है तो अधिकांश मामलों में जांच की गति बेहद धीमी होती है। अकसर दोषी व्यक्ति क्लिन चिट पा जाते हैं। विभिन्न आरोप लगाते हुए जांच चाहने वाले विधायकों की एक मांग यह भी है कि जांच में उन्ळें शामिल किया जाए। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने भी विधायकों से कहते रहे कि जांच करना विधायकों का काम नहीं है मगर माननीय मानने को तैयार नहीं है।
विधायकों की इस मांग के पीछे एक एंगल और है। जनप्रतिनिधि लंबे समय से शिकायत कर रहे हैं कि ब्यूरोक्रेसी उनकी सुनती नहीं है। क्या मंत्रालय क्या मैदान, अफसरों की नजरअंदाजी से परेशान नेताजी चाहते हैं कि जांच कमेटी का चक्र उनके पास रहे ताकि वे अफसरों के चक्रव्यूह को भेद पाएं। ऐसा होगा तो नेताजी मैदान में अफसरों के आगे असहाय साबित नहीं होंगे। कुल मिला कर यह जांच के परिणाम पर विश्वास से अधिक अपनी धमक बनाए रखने की जुगत है कि विधाकय भी अफसरों के खिलाफ गठित जांच समिति का सदस्य होना चाहते हैं।
आखिर यह माजरा क्या है, क्या टूट जाएंगे सीनियर आईएएस के बंगले
भोपाल में बीते कुछ माह से एक कॉलोनी व्हिसपरिंग पाम की बड़ी चर्चा है। असल में इस कॉलोनी और यहां बने बंगलों के मालिकों पर आरोप है कि उनके कारण भोपाल का मास्टर प्लान बीते 18 सालों से सामने नहीं आ पाया है। यह तथ्य जानते ही उत्सुकता होती है न कि इन बंगलों के मालिक आखिर है कौन? इन बंगलों के मालिक तंत्र को चलाने वाले आईएएस हैं।
बरखेड़ी खुर्द गांव में स्थित व्हिसपरिंग पाम कॉलोनी में बंगले बनाने वाले पूर्व एसीएस पर अवैध निर्माण के आरोप है। तथ्य है कि व्हीसप्रिंग प्राल्मस कॉलोनी में आईएएस को 10 हजार वर्गफीट के प्लाट पर 600 वर्गफीट निर्माण की अनुमति मिली थी लेकिन उन्होंने 5000 वर्गफीट से ज्यादा का निर्माण कर लिया है। बड़े तालाब के कैचमेंट में आने के कारण व्हिसपरिंग पाम को लो डेनसिटी की श्रेणी में रखा गया है। इसमें सर्वेट क्वार्टर, कार पार्किंग, लिफ्ट एरिया को जोड़ कर भी अधिकतम 1500 वर्गफीट ही निर्माण हो व्हिसपरिंग पाम में 5 हजार वर्गफीट से ज्यादा का निर्माण होने से मास्टर प्लान अटक गया है।
इसी बीच शुक्रवार को नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई ने सभी नगरीय निकायों के आयुक्तों को आदेश दिया है कि 1 अप्रैल से 5000 वर्गफीट के निर्माण की जांच की जाए। यदि बिल्डिंग परमिशन से अधिक का निर्माण पाया जाता है तो उसे तोड़ा जाएगा। इस आदेश के बाद भोपाल की व्हिसपरिंग पाम कॉलोनी और मास्टर प्लान चर्चा में आ गया है। क्या भोपाल नगर निगम अपने प्रमुख सचिव का आदेश मान कर व्हिसपरिंग पाम में जांच करेगा और नियम से अधिक बड़े बंगलों को तोड़ेगा?
यह संभव भी है क्योंकि बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में कोई छेड़छाड़ नहीं करने के समर्थक कुछ आईएएस की राय है कि मास्टर प्लान के जरिए तालाब के कैचमेंट एरिया में निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन का यह पत्र इस दिशा में एक कदम माना जा सकता है। किसी भी शहर में 5 हजार वर्गफीट से ज्यादा का निर्माण आम आदमी का तो होगा नहीं। रसूखदारों पर नियम की कसावट के जरिए रिटायर्ड आईएएस के बंगले गिराने के इरादे तो दिखा ही दिए गए हैं।
सरकार की ‘इज्जत’ अब अफसरों के हाथ में है
फिल्मों में हमने कई बार सुना है कि मेरी इज्जत अब आपके हाथ में हुजूर...। 2018 की तरह मध्य प्रदेश में सरकार की इज्जत भी एकबार फिर अफसरों के हाथ आ गई है। कहा जा रहा है अफसरों ने साथ दे दिया तो मिशन 2023 फतह समझो। इस निर्भरता की वजह गेम चेंजर मानी जा रही योजनाएं तथा उनका क्रियान्वयन है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेसा एक्ट, लाड़ली बहना योजना, लर्न एंड अर्न योजना के जरिए बड़े वोट बैंक आदिवासियों, महिलाओं और युवाओं का मन जीतने की तैयारी की है। अब इनके क्रियान्वयन का काम जिला कलेक्टरों को करना है। मैदान से खबरें आने लगी हैं कि लाड़ली बहना योजना के पंजीयन तथा खाता लिंक करवाने के लिए महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अब युवाओं को भी पोर्टल में पंजीयन करवाने की जद्दोजहद करनी होगी। इसी बीच किसानों को बेमौसम बारिश से बिगड़ी फसलों का मुआवजा देना है।
सारे कार्य कलेक्टर के माध्यम से होना है। पिछले चुनाव के वक्त संबल योजना को लागू करने में कुछ कलेक्टर फिसड्डी साबित हुए थे। इस बार कलेक्टरों पर विशेष नजर रखी जा रही है कि वे इन योजनाओं की सरकार की मंशानुसार क्रियान्वयन करवाएं अन्यथा कुछ जिलों की कमान बदली हुई नजर आएगी।