दफ्तर दरबारी: आईएएस अफसरों में यादवी संघर्ष, ये हटाते हैं, वे फिर लौट आते हैं
मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार में अफसरों के बीच वर्चस्व को लेकर यादवी संघर्ष चल रहा है। एक अफसर दूसरे अफसर को महत्वपूर्ण पोस्ट से हटाते हैं तो वे अपने रसूख का इस्तेमाल कर फिर ताकतवर पर पर आ जाते हैं। अफसरों के दंगल में किरकिरी सरकार की हो रही है।
आपसी गुटबाजी और वर्चस्व के लिए हुआ यादवी संघर्ष हमेशा एक व्यंग्य की तरह उपयोग होता है। एमपी के आईएएस अफसरों में वर्चस्व के लिए ऐसा ही यादवी संघर्ष दिखाई दे रहा है। सरकार की तबादला नीति जाने कब आएगी लेकिन प्रमुख सचिव स्तर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आईएएस के तबादले संदेह से घिर गए हैं। इन तबादलों ने प्रशासन में जारी आईएएस लॉबी की वर्चस्व की जंग को एक बार फिर सतह पर ला दिया है।
पिछले तीन हफ्तों के दौरान आधा सैकड़ा आईएएस के दायित्व बदले गए लेकिन कुछ अफसरों की पोस्टिंग विवादों से घिर गई। जैसे, वरिष्ठ आईएएस संजय दुबे को प्रमुख सचिव गृह विभाग से हटाकर प्रमुख सचिव विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग जैसे छोटे विभाग में भेजा गया था। सरकार ने अपना यह निर्णय 10 दिन बाद ही बदल दिया। इस बार आईएएस संजय दुबे अधिक ताकतवर हो कर लौट आए हैं। ताजा आदेश में उन्हें प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग, प्रमुख सचिव (समन्वय), मुख्य सचिव कार्यालय बनाया गया। उन्हें प्रमुख सचिव विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अतिरिक्त प्रभार दे कर उनका कद बढ़ा दिया गया है। इसी तरह प्रमुख सचिव वित्त बनाए गए अमित राठौर को 24 घंटे में ही हटा दिया गया। उनकी प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन रहे मनीष रस्तोगी को यह जिम्मा सौंपा गया है। शिवराज सरकार में सबसे पावरफुल रहे मनीष रस्तोगी अब मोहन यादव सरकार की पूरी वित्तीय व्यवस्था के कर्ता-धर्ता बन गए हैं।
आमतौर पर अफसरों की जिम्मेदारी उनके अनुभव, कौशल और मुख्यमंत्री व मंत्रियों के साथ तालमेल के आधार पर दी जाती है। मगर लगता है कि मोहन सरकार में अधिकारियों के ट्रांसफर करने के पहले ठीक से होमवर्क नहीं किया जा रहा है। प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी को सहमति के साथ बदलने की भी प्रथा रही है लेकिन जब किसी अधिकारी को बिना उसकी जानकारी के हटाया जाता है तो यह एक तरह से सजा होती है।
मोहन सरकार में किसी अधिकारी को हटा कर छोटे पद पर भेजा जाता है तो इसे सजा निरूपति किया जाए उसके पहले ही वह अधिकारी ताकतवर बन कर कोई दूसरी अहम् जिम्मेदारी पा लेता है। अंदरखाने की खबर तो यह है कि एक लॉबी है जो कुछ अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नहीं देखना चाहती है। वह मौका मिलते ही इन अधिकारियों को हटा देती है लेकिन प्रभावित अधिकारी अंतत: अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर ताकत में लौट आते हैं। अधिकारियों के इस यादवी संघर्ष में अंतत: किरकिरी तो मुख्यमंत्री मोहन यादव सरकार के निर्णयों की हो रही है।
मुख्यमंत्री से पहले पहुंच गया अपराधी अफसर
तबादलों की इस शृंखला में वर्चस्व का खेल ही सामने नहीं आया बल्कि मोहन सरकार अपराधियों के संरक्षण जैसे आरोपों से भी घिर गई है। सरकार ने एक तबादला कर विपक्ष को आगे रह कर हमले का एक मौका दिया है। मामला इंदौर का है। इंदौर में सबसे लंबे समय यानी लगभग 16 सालों तक खनिज अधिकारी रहे संजय लूणावत की पद पर वापसी हो गई है।
संजय लूणावत उन अफसरों में से हैं जिन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी लगे और जिनकी जांच भी चल रही है। 25 हजार की रिश्वत न देने पर बदले में एक महिला से अनैतिक मांग करने पर अदालत ने उन्हें सजा सुनाई। वे जेल भी रह कर आए हैं। वे निलंबित किए गए हैं। निलंबर के बाद ही बीजेपी सरकार ने ही उन्हें हटा कर ग्वालियर पदस्थ किया था। लेकिन अब मोहन सरकार में एक सिंगल आदेश निकाल कर संजय लूणावत को फिर से इंदौर का खनिज अधिकारी बना दिया गया है। मुख्यमंत्री अगले दो दिन अपने प्रभार के जिले इंदौर में रहने वाले है लेकिन उनके पहले सिंगल आदेश से हुई अपराधी अधिकारी की पोस्टिंग चर्चा में आ गई है। इस आदेश पर सरकार भ्रष्ट अधिकारियों को प्रश्रय देने के आरोप झेल रही है।
वाटर प्लस इंदौर में अधिकारियों के नहले पर नालों का दहला
इंदौर देश का एक मात्र शहर है जिसने सीवेज सिस्टम और नालों को सुधार कर वाटर प्लस शहर होने का तमगा हासिल किया है। इस सफलता का जश्न मनाने वाले इंदौर अब मानसूनी बारिश में डूब रहा है। 4-5 इंच बारिश होने पर ही शहर पानी-पानी हो गया। अब सवाल उठ रहे हैं कि अधिकारियों की ने ऐसा काम क्यों करवाया जिससे शहर का ड्रेनेज सिस्टम सुधरने की जगह बिगड़ गया।
सलाह पर 350 करोड़ खर्च कर नालों की टैपिंग की गई थी यानी उन्हें जोड़ कर सीवेज को कान्ह नदी में जाने से रोका गया था। पानी निकासी की व्यवस्था बेहतर की गई थी। अब इस काम को बढ़ाते हुए 511 करोड़ और खर्च करने की तैयारी है लेकिन है। नालों को खत्म कर अफसरों ने खाली नालों पर एनिवर्सरी, बर्थ पार्टी की थी। निगम ने दंगल और क्रिकेट मैच भी करवाया। लेकिन अफसरों के नहले पर नालों ने दहला मार दिया है। दो दिन की बारिश ने व्यवस्था की ऐसी पोल खोली की बंद जब शहर में पानी भरने लगा तो नाला टेपिंग के लिए बिछाई गई लाइन को कई जगह फोड़कर पानी को बहाना पड़ा।
अपनी सरकार के विकास को बहता देख बीजेपी नेता चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि अफसरों ने पैसा बहा कर मौज की और जवाब नेताओं को देना पड़ रहा है। एमआइसी सदस्य राजेंद्र राठौर ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि नाला टेपिंग से शहर को फायदा नहीं हुआ। इस प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए खर्च करना फिजूलखर्ची साबित हुई। इस लापरवाही के लिए तत्कालीन अफसरों पर कार्रवाई की जानी चाहिए। एक अन्य एमआईसी एमआईसी सदस्य जीतू यादव बैठकों में कहा है कि नाले सूख गए तो अधिकारियों ने जश्न मनाते हुए नालों में क्रिकेट खेला, दंगल करवाया, शादी की सालगिरह और जन्मदिन जैसे आयोजन किए। आज जब इन नदी-नालों की हालत खराब है और सूखे नालों में गंदा पानी बह रहा है तब अधिकारी बगले झांक रहे हैं। क्या यही विकास है? इस तरह काम करके जनता का पैसा क्यों बर्बाद कर रहे हो?
आखिर क्यों और कैसे खत्म हुआ आईएएस मनीष सिंह का वनवास
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पसंदीदा आईएएस मनीष सिंह का आठ माह बाद वनवास खत्म हो गया है। वे उन पहले अफसरों में शुमार थे जिन्हें मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही हटा कर लूप लाइन में भेज दिया था। आईएएस मनीष सिंह ने इंदौर में पहले निगम आयुक्त और फिर कलेक्टर रहते हुए कई कार्य किए थे। उनकी खूब पीठ थपथपाई गई थी लेकिन उनकी कार्यशैली ने बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय को खूब नाराज भी किया था।
शिवराज सिंह चौहान की विदाई के बाद मनीष सिंह पर बीजेपी नेताओं की नाराजगी भारी पड़ी। उन्हें जनसंपर्क आयुक्त जैसे अहम् पद से हटा कर बेहद सामान्य पद पर भेज दिया गया था। लेकिन अब वही मनीष सिंह कैलाश विजयवर्गीय के विभाग में एक अंग हाउसिंग बोर्ड में एमडी बन कर लौट आए हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार की मनीष सिंह से नाराजगी खत्म हो गई या इस नियुक्ति के पीछे वे सवाल हैं जो नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार उठा रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने एक्स पर लिखा है कि इंदौर और उज्जैन में हजारों करोड़ों की हाउसिंग बोर्ड की अधिकृत एवं प्रस्तावित भूमियां को मुक्त करवाने के लिए मनीष सिंह को हाउसिंग बोर्ड का एमडी नियुक्त किया गया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि मनीष सिंह की नियुक्ति के बाद हाउसिंग बोर्ड की योजनाओं से किन जमीनों को मुक्त किया जाएगा। सीएम मोहन यादव इंदौर के प्रभारी मंत्री हैं और उज्जैन उनका गृह नगर है। समझिए! इसके पीछे बड़ा खेल है भैया!