दफ्तर दरबारी: कुख्‍यात आईएएस को गिरफ्तार करे कौन? 

MP News: पुलिसिया व्‍यवहार तो सारी दुनिया में कुख्‍यात है लेकिन कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें पुलिस के भी हाथ पैर फुल जाते हैं। ऐसा ही एक मामला भोपाल में चर्चित हो रहा है। पुलिस अफसरों के सामने आगे कुआं पीछे खाई जैसी स्थिति बन गई है। एक तरफ हाईकोर्ट के आदेश का पालन करना है दूसरी तरफ आईएएस का रूतबा है। पुलिस हैरान है करे तो आखिक करें क्‍या?

Updated: Apr 20, 2024, 04:48 PM IST

आईएएस सोनिया मीणा और नामांकन पत्र जमा करते बीजेपी उम्‍मीदवार
आईएएस सोनिया मीणा और नामांकन पत्र जमा करते बीजेपी उम्‍मीदवार

वे आईएएस हैं। वरिष्‍ठता के कारण प्रमुख सचिव बन गए हैं। पद के कारण ही नहीं बल्कि उनके बर्ताव के कारण ही अधीनस्‍थ अधिकारी कर्मचारी उनके सामने जाने से भी डरते हैं। उन्‍होंने युवा आईएएस ही नहीं प्रमोट आईएएस के साथ भी ऐसा बुरा व्‍यवहार किया कि यह विवाद कई दिनों तक सुर्खियां बना। अब इन्‍हीं आईएएस को गिरफ्तार करने की चुनौती है। उनके कद के आगे बौने पुलिस अधिकारी हिम्‍मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं कि साहब के कक्ष में जा कर वारंट तामील करवा दें। 

यहां हम जिक्र कर रहे हैं आईएएस मनीष रस्‍तोगी का। हाईकोर्ट की अवमानना के मामले में विभाग के प्रमुख सचिव होने के नाते हुए अदालत में पेश होना था। लेकिन वे पेश नहीं हुए। आदेश का पालन नहीं होने पर हाईकोर्ट जज ने नाराजगी जाहिर करते हुए प्रमुख सचिव का गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। 

अरेरा हिल थाना पुलिस को यह वारंट तामील करवाना है। थाना प्रभारी एक सप्‍ताह से मंत्रालय के चक्‍कर लगा रहे हैं लेकिन प्रमुख सचिव के कक्ष में जा कर वारंट तामील नहीं करवा पा रहे हैं। एक तरफ हाईकोर्ट के आदेश का पालन करना है और दूसरी तरफ सीनियर आईएएस का रूतबा है। पुलिस अफसरों के लिए इस आदेश का पालन करना किसी आपदा से कम नहीं है। वे इस आपदा से निपटने की राहें तलाश रहे हैं। 

चेहरा देख कर तिलक करते अफसर 

जनप्रतिनिधि यदि जनता के सेवक हैं तो अफसर भी जनता के सेवक ही हैं। संविधान ने विधायिका और कार्यपालिका की जिम्‍मेदारियां और अधिकार तय किए हैं। लेकिन कई बार देखा गया है कि ब्‍यूरोक्रेसी आम जनता तो ठीक जनप्रतिनिधियों के साथ थी बुरा व्‍यवहार कर देते हैं। यही कारण है कि अफसरों के लिए बार-बार दिशा निर्देश जारी किए जाते हैं कि वे जनप्रतिनिधियों को अपेक्षित सम्‍मान दें। अपने रुआब के आगे नेताओं का अपमान न करें। अफसरों से राजनीतिक रूप से निरपेक्ष होने की उम्‍मीद भी की जाती है। खासकर चुनाव के वक्‍त तो उन्‍हें उम्‍मीदवार या पार्टी को देख कर अपने व्‍यवहार में परिवर्तन नहीं करना चाहिए। लेकिन आम चुनाव 2024 की बेला में चेहरा देख कर तिलक करते अफसरों की तस्‍वीरें आ रही हैं। 

इनमें से एक तस्‍वीर नर्मदापुरम की कलेक्‍टर सोनिया मीणा की है। युवा आईएएस  सोनिया मीणा अपनी सख्‍त छवि के लिए मशहूर है लेकिन उनकी एक तस्‍वीर वायरल हो गई जिसे में वे खड़े हो कर लोकसभा सीट के लिए बीजेपी प्रत्‍याशी दर्शन चौधरी का नामांकन पत्र स्‍वीकार कर रही हैं। कलेक्‍टर की इस तस्‍वीर पर आपत्ति हुई। वे संवैधानिक पद पर हैं। रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) हैं अत: उन्‍हें कुर्सी से खड़े नहीं होना चाहिए। सवाल यह भी हुआ कि कलेक्‍टर ने सभी प्रत्‍याशियों के साथ तो समान व्‍यवहार नहीं किया केवल बीजेपी उम्‍मीदवार के साथ ऐसा क्‍यों? विवाद हुआ तो जनसंपर्क विभाग ने तस्‍वीर ही हटा दी। 

अफसरों के व्‍यवहार का दूसरा मामला रीवा का है। रीवा में कांग्रेस प्रत्‍याशी पूर्व विधायक नीलम मिश्रा से बहस करती हुई महिला टीआई का वीडियो वायरल हुआ। एक जनप्रतिनिधि के साथ पुलिस अधिकारी का अभद्र व्‍यवहार व आपत्तिजनक भाषा पर भी सवाल हुए। सत्‍ता में रहें या विपक्ष में नेता जनता के प्रतिनिधि हैं, उनके साथ अफसरों को शालीन व्‍यवहार करना चाहिए लेकिन सत्‍ता केंद्र के निकट होने के प्रयासों के चलते अधिकारियों की ऐसी तस्‍वीरें वायरल हो जाती हैं। 

डेथवेल बनते बोरवेल, पटाखे उड़ा रहे धज्जियां 

सख्‍त कार्रवाई होगी... जब-जब खुले बोरवेल में गिरने से किसी बच्‍चे की मृत्‍यु होती है तो भोपाल से लेकर गांव तक, मुख्‍यमंत्री से लेकर कलेक्‍टर तक, सभी जगह यही संदेश सुनाई देता है। लेकिन किसी घटना से कोई सबक नहीं लेता। रीवा में एक बार फिर एक छह साल का बच्‍चा मयंक खुले बोरवेल में गिर गया और 45 घंटे राहत कार्य चलाने के बाद भी उसे बचा नहीं जा सका। 

घटना के बाद खेत मालिक को गिरफ्तार कर लिया गया है। मामले के दोषी छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई है लेकिन मुख्‍यमंत्री और सरकार के निर्देशों के बाद भी कलेक्‍टर अपने क्षेत्र में खुले बोरवेल बंद नहीं करवा पा रहे हैं। ऐसे समय में जब खुले बोरवेल बच्‍चों के लिए डेथ वेल बन चुके हैं आवश्‍यक है कि बोरवेल मशीन कांट्रेक्टर का जिला स्तर पर रजिस्ट्रेशन हो। खुदाई के लिए बाकायदा आवेदन के बाद ही बोरवेल खुदाई होनी चाहिए। पानी नही निकलने पर उसे विधिवत बंद करने की जिम्‍मेदारी तय की जानी चाहिए। ऐसा न होने पर दोषियों के विरूद्ध तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए तब ही बच्‍चों की जान बचाई जा सकेगी। 

एक तरफ खुले बोरवेल पर प्रशासनिक लापरवाही सामने आई तो दूसरी तरफ पटाखा फैक्‍ट्री सरकार के कायदों की धज्जियां उड़ा रही हैं। हरदा में पटाखा फैक्‍ट्री में हुए विस्‍फोट के बाद खुलासा हुआ था कि फैक्‍ट्री अवैध तरीके से संचालित की जा रही थी। नेताओं के साथ गठजोड़ और अफसरों की कृपा से हुए इस काम के कारण कई लोगों ने अपनी जान गंवाई। उम्‍मीद की जा रही थी कि प्रदेश में अब ऐसा पटाखा अवैध फैक्‍ट्री नहीं होती लेकिन इंदौर में एक और हादसा हो ही गया।  

इंदौर के सिमरौल थाना क्षेत्र के आंबा चंदन गांव में पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट से कुछ कर्मचारी घायल हुए। पता चला कि प्रशासन ने फ़ैक्ट्री अनुमति पहले ही रद्द कर रखी थी लेकिन फिर भी काम हो रहा था।  अब ऐसी लापरवाहियों पर भी प्रशासन ऑल इज वेल का रूख रखेगा तो हादसों को कौन रोक पाएगा भला 

मेघा की बारिश में बह जाएंगे कितने अफसर 

इलेक्‍टोरल बांड से चंदा देने वाली दूसरी सबसे बड़ी कंपनी मेघा इंजीनियरिंग पर भ्रष्‍टाचार के आरोप हैं। इन आरोपों के चलते कंपनी खिलाफ सीबीआई ने केस क्‍या दर्ज किया है मध्‍यप्रदेश के अनेक अफसरों के इस बेमौसम बारिश में ‘बह’ जाने का अंदेशा छा गया है। 

केंद्रीय जांच ब्यूरो सीबीआई ने हैदराबाद में मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रांस्ट्रक्चर के खिलाफ कथित तौर से रिश्वत देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में इंटीग्रेटेड स्टील ब्रांड से संबंधित परेशानियों को हल करने के लिए मेघा इंजीनियरिंग ने 174 करोड़ रूपए की बिलों की मंजूरी के लिए 78 लाख रूपए की रिश्वत दी थी। 

भ्रष्‍टाचार के खिलाफ सीबीआई की यह जांच यदि मध्‍य प्रदेश तक पहुंची तो कई अफसरों उसकी जद में आ सकते हैं। मेघा इंजीनियरिंग ने मध्यप्रदेश में जल संसाधन विभाग और नर्मदा घाटी विकास विभाग में कार्य किया है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एम. गोपाल रेड्डी तथा इकबाल सिंह बैंस के कार्यकाल में मेघा इंजीनियरिंग को जल संसाधन विभाग कार्य मिला है। कंपनी को 950 करोड़ के टेंडर विवाद में उलझने के बाद भी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने 3000 करोड़ का टेंडर दिया था। इन दोनों अधिकारियों के अलावा विभाग के अन्‍य अफसरों से भी पूछताछ हो सकती है। इस कयास के बाद ऐसे अफसरों के नाम तलाशने तथा उनकी मुसीबतों का अंदाजा लगाने का दौर चल पड़ा है।