दफ्तर दरबारी: इस दिवाली कर्मचारियों की जेब खाली
MP Elections 2023: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव है और राजनीति के गलियारों में रौनक है। इस दौरान दिवाली भी है और रोशनी के इस त्यौहार पर कर्मचारियों की जेब में केवल आश्वासन भरे हैं। अतिरिक्त लाभ के रूप में बोनस मिलना तो दूर, हक का पैसा भी नहीं मिलने से दिवाली ख़ाली खाली है।

MP Elections 2023: चुनावी मौसम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कर्मचारियों के लिए कई घोषणाएं की हैं। बीजेपी सरकार और संगठन दोनों जानते हैं कि पुरानी पेंशन योजना बंद होने सहित तमाम मुद्दों से कर्मचारी लंबे समय से नाराज हैं। उनकी नाराजगी को कम करने के लिए वादे और घोषणाएं की गयीं। कर्मचारियों के लिए इन वादों से उपजी खुशफहमी केवल शिगूफा ही साबित हो रही है।
कर्मचारी निराश हैं कि लाड़ली बहना जैसी तमाम योजनाओं और घोषणाओं को सरकार कर्ज लेकर भी पूरा कर रही है, मगर कर्मचारियों के लिए किए गए वादे केवल कोरे वादे भर रह गए हैं। केंद्रीय कर्मचारियों की तरह राज्य के साढ़े सात लाख कर्मचारियों और साढ़े चार लाख सेवानिवृत्ति कर्मचारियों को 4 फीसदी महंगाई भत्ता और राहत 1 जुलाई 2023 से देने का निर्णय किया था। अब तक यह भुगतान हुआ नहीं है। आचार संहिता लग चुकी है लेकिन कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यह चुनावी वादा नहीं नियमित प्रक्रिया है जिसे रोका नहीं जा सकता है। चुनाव आयोग को फाइल भेजकर स्वीकृति ली जानी चाहिए ताकि प्रदेश के कर्मचारी दीपावली उत्साह एवं उमंग से मना सकें।
तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के सचिव उमाशंकर तिवारी तो कहते हैं कि केंद्रीय कर्मचारियों को महंगाई भत्ता बोनस मिल गया है लेकिन सरकार की चुप्पी से राज्य के कर्मचारियों के लिए उत्सव का समय मायूसी में बदल चुका है। प्रदेश के कर्मचारियों को 1996 तक 1079 रुपए का बोनस मिलता था जो 27 सालों से बंद है। यही नहीं, इसबार संशय यह भी है कि नगरीय निकायों के कर्मचारियों को दिवाली के पहले वेतन मिल पाएगा या नहीं। राजधानी भोपाल नगर निगम तक में कर्मचारियों को वेतन और मानदेय के लिए 40 करोड़ का इंतजाम करना भारी पड़ रहा है। कर्मचारियों को वेतन शायद मिल भी जाए लेकिन भत्ता तो वादे में ही अटका है।
भोपाल की सीट तय करेगी कर्मचारियों का निर्णय
पुरानी पेंशन योजना सहित कर्मचारियों के कई मुद्दे हैं जिन पर बीजेपी सरकार बात तो करती रही है, आश्वासन भी देती रही है लेकिन समाधान का कोई प्रयास करते नहीं दिखती। कर्मचारी संगठनों के अनुसार पूरे प्रदेश के कर्मचारी इससे नाराज हैं और चुनाव के परिणाम में इस नाराजगी का असर भी जरूर दिखायी देगा। कम से कम भोपाल की एक सीट जरूर ऐसी है जहां का परिणाम तय करेगा कि कर्मचारियों की सरकार से नाराजगी कितनी बड़ी है। यह सीट है दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट। राजधानी की यह दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट कर्मचारी बाहुल्य है। इस क्षेत्र में चारइमली से लेकर पुलिस कॉलोनी और कर्मचारी क्वार्टर आते हैं। यहीं प्रदेश के सबसे ज्यादा सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स निवास करते हैं।
इसके अलावा भोपाल की मध्य विधानसभा और हुजूर विधानसभा क्षेत्र में भी कर्मचारी और पेंशनर ज्यादा संख्या में निवास करते हैं। मगर दक्षिण पश्चिम सीट को ही निर्णायक माना जा रहा है, जहां कर्मचारियों का वोट ही एकतरफा निर्णय करता है। इस सीट से कांग्रेस ने पूर्व मंत्री पीसी शर्मा को उम्मीदवार बनाया है तो बीजेपी ने प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी को मैदान में उतारा है। 2018 में कर्मचारियों और अन्य मतदाताओं ने कांग्रेस का साथ दिया था, कांग्रेस के पीसी शर्मा ने बीजेपी के मंत्री उमाशंकर गुप्ता को साढ़े छह हजार वोटों से हराया था। इसके पहले उमाशंकर गुप्ता 2003, 2008 और 2013 में इस सीट से जीते थे। बीजेपी को कारण पता लेकिन लेकिन समाधान के लिए वे सिर्फ संपर्क का रास्ता अपना रहे हैं, जो पूर्ण समाधान नहीं माना जा रहा है।
नौकरी गई और टिकट भी नहीं मिला, निशा के हाथ रह गयी अगली आशा
अफसर से राजनेता बनने की राह पर चली डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे की कहानी एकदम फिल्मी है। बैतूल में एसडीएम रहते हुए निशा बांगरे आमला क्षेत्र में प्रशासनिक पहचान ही नहीं बनायीं बल्कि इस आरक्षित सीट पर अपनी राजनीतिक पकड़ भी मजबूत कर ली। ऐसी कि लगने लगा था कि वह विधानसभा चुनाव लड़ेंगी तो जीत सुनिश्चित है। कांग्रेस से टिकट मिलना तय माना जा रहा था लेकिन इस्तीफा प्रकरण इतना खिंच गया कि नौकरी चली गई और टिकट भी नहीं मिला। अब निशा को उजली सुबह के लिए वादे पर आगे बढ़ने की उम्मीद है।
डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे तब चर्चा में आई थीं जब छतरपुर कलेक्टर ने उन्हें गृह प्रवेश में जाने की छुट्टी नहीं दी थी। कहा गया कि बैतूल में होने वाले गृह प्रवेश कार्यक्रम में विदेश से बौद्ध समाज के लोग शामिल हो रहे हैं। अवकाश स्वीकृत न होने का कारण राजनीतिक माना गया। फिर निशा ने इस्तीफा दे दिया लेकिन सरकार ने इस्तीफा स्वीकार करने के बदले निशा बांगरे को नोटिस दे दिया।
निशा बांगरे इस्तीफा देने तथा चुनाव लड़ने के इरादे पर अटल रही। चुनाव की घोषणा होने तक सरकार ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। वह भोपाल तक पैदल मार्च कर पहुंची तो यहां पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस्तीफा स्वीकार न करने का अदालती आदेश आता उससे पहले ही कांग्रेस ने आमला सीट पर उम्मीदवार उतार दिया। हालांकि कुछ दिनों तक कांग्रेस ने आमला सीट पर उम्मीदवार उतारने के लिए इंतजार भी किया। लेकिन कांग्रेस ने जैसे ही आमला से मनोज मालवे को टिकट दिया, अगले दिन निशा का इस्तीफा स्वीकार हो गया।
इसके बाद खुद निशा बांगरे ने कहा कि अब कांग्रेस को फैसला करना है, वह तो चुनाव लड़ेगी ही। लेकिन छिंदवाड़ा में हुई सभा में निशा कांग्रेस में शामिल हुई और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि निशा बांगरे चुनाव नहीं लड़ रही है। इस नाटकीय घटनाक्रम के बाद निशा बांगरे चुप हैं। छिंदवाड़ा की सभा में कमलनाथ ने कहा था कि प्रदेश को निशा बांगरे की जरूरत है। वे उदाहरण बनेगी। निशा बांगरे ने इन संकेतों को समझा है और उनकी चुप्पी की वजह यही है। यह भी आंकलन है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट का आश्वासन मिला है।
राजनीति के फेर में फंसे अफसरों के हाथ में ‘भजन’ की माला
डेढ़ दर्जन से ज्यादा अफसर मायूस हैं कि उन्हें टिकट नहीं मिला है। अफसरों ने विधायक बनने की उम्मीद में समय के पहले नौकरी छोड़ दी, वीआरएस लिया, राजनीतिक फेरे भी खूब हुए मगर टिकट नसीब न हुआ। अब आत्मविश्वास से निर्दलीय चुनाव लड़ने का दावा करनेवाले अफसर भी फिलहाल चुप बैठे हैं।
राजनीतिक जोड़तोड़ के बाद भी जिन अफसरों को टिकट नहीं मिला है वे ‘ज्ञान मार्ग’ में सक्रिय हो गए हैं। पूर्व आईएएस वेदप्रकाश ने ‘भाई साहब’ नामक पॉडकास्ट शुरू कर दिया है जिसमें वे शिक्षा, अपराध, कौशल विकास, वनवासी और आदिवासी जैसे विषयों पर अपनी बात कह रहे हैं, जबकि शहडोल के कमिश्नर रहे आईएएस राजीव शर्मा भिंड क्षेत्र में सामाजिक-साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय हो चुके हैं। वे इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन राजनीतिक दलों ने उन्हें टिकट नहीं दिया। वे भी फिलहाल निर्दलीय के रूप में मैदान में नहीं उतर रहे हैं।
टिकट के दावेदार अन्य अफसर भी ऐसी ही किसी सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में संलग्न हो गए हैं ताकि बेहतर सक्रियता बनी रहे और इंतजार का बेहतर उपयोग किया जा सके। इस बीच रिटायर्ड आईएएस वरदमूर्ति मिश्रा की वास्तविक भारत पार्टी को चुनाव चिह्न गैस सिलेंडर आवंटित कर दिया गया है। वे बीजेपी-कांग्रेस के वोट में सेंधमारी करने में जुट गए हैं।