दफ्तर दरबारी: डीजीपी के सामने पुलिस को सीएस अनुराग जैन की खरी खरी
MP Police: प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन ने ऐसा काम कर दिया जो आमतौर पर प्रशासनिक मुखिया नहीं करते हैं। अपने विभाग में कसावट का काम पुलिस मुखिया का होता है लेकिन डीजीपी कैलाश मकवाना के साथ सीएस अनुराग जैन ने एमपी पुलिस को ऐसी खरी खोटी सुनाई की सभी हैरत में पड़ गए।

मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन धीरे-धीरे अपनी प्रशासनिक कसावट बढ़ा रहे हैं। बीते दिनों हुए आईएएस की तबादला सूची में उनके प्रभाव को साफ पढ़ा जा सकता है। प्रदेश में बढ़ते अपराधों पर भी उनका सख्त अंदाज ही दिखाई दिया। प्रदेश के पुलिस मुखिया कैलाश मकवाना के साथ कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में सीएस अनुराग जैन ने कहा कि प्रदेश में बढ़ते अपराधों का कारण जुआ-सट्टा है। जुआ-सट्टा पुलिस की मदद के बिना नहीं चलाया जा सकता है। पुलिस अधिकारी उस वक्त सकते में आ गए जब डीजीपी कैलाश मकवाना ने नहीं बल्कि सीएस अनुराग जैन ने कहा कि किसी भी इलाके में टीआई (थाना प्रभारी) की अनुमति के बिना जुआ नहीं चल सकता।
सीएस के तेवर देख कर डीजीपी कैलाश मकवाना ने हामी भरते हुए केवल इतना ही कहा कि अपराधों पर नियंत्रण के लिए एसपी और ईमानदारी से काम करना होगा। सीएस प्रशासनिक मुखिया हैं और डीजीपी पुलिस मुखिया। दोनों मिल कर काम करते हैं लेकिन क्षेत्र अलग-अलग हैं, जैसे जिले में कलेक्टर और एसपी, संभाग में कमिश्नर और आईजी। ऐसा कम ही होता है जब दोनों एकदूसरे के काम में हस्तक्षेप करें। यह हस्तक्षेप वास्तव में एक दूसरे के काम में दखल होता है। प्रदेश में अपनी कार्यप्रणाली की धाक जमा रहे सीएस अनुराग जैन ने भरी मीटिंग में पुलिस विभाग की खामियां गिना कर ऐसा ही किया। डीजीपी कैलाश मकवाना के सामने ही सीएस अनुराग जैन से बढ़ते अपराधों पर खरी खरी सुना दी। जब वे यह कह रहे थे कि मैं मान ही नहीं सकता हूं कि टीआई की मिलीभगत के बिना अपराध बढ़ सकते हैं तो उनका संकेत अपराधों पर तंत्र का नियंत्रण नहीं होने की ओर था। यह उन सभी पुलिस अधिकारियों के लिए आईना था जो अपराधों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं। यह भी एक इशारा ही है कि सीएस अनुराग जैन सबकुछ चुपचाप देखेंगे नहीं। जहां ठीक नहीं लगेगा बिना लिहाज किए बोलेंगे जरूर।
सड़कों से भिखारी छिपाए, गाय बैठी है, अचरज में हाई कोर्ट
यूं तो गाय और भिखारियों का सीधा सीधा कोई संबंध नहीं है लेकिन अगर दोनों सड़क पर हों तो राहगीरों के लिए तनाव का कारण बनते हैं। प्रशासन का दायित्व है कि वह दोनों का पुनर्वास कर सड़क पर से हटाए मगर हुआ यह कि मवेशी खासकर गाय सड़क पर रह गए और इंदौर-भोपाल में भिखारी सड़क से हटा दिए गए।
इंदौर को भिखारियों से मुक्त शहर बनाने की कवायद कुछ समय पहले शुरू हुई थी, अब यह काम भोपाल में हो रहा है। कलेक्टर ने भोपाल में भीख मांगना और देना दोनों को अपराध घोषित कर दिया है। भीख मांगने और देने पर एफआईआर की जा रही है। प्रशासन का कहना है कि समाज कल्याण विभाग ने तीन हजार भिखारियों को चिह्नित किया है, जिनका पुनर्वास किया गया है। जिला प्रशासन का यह एक्शन 24-25 फरवरी को होने वाली ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के पहले तेजी से हुआ है ताकि शहर की छवि चमकाई जा सके।
इस कोशिश के उलट शहर में सड़कों पर मवेशी दिखाई दे जाना आम बात है। अकेले भोपाल नहीं बल्कि अन्य जिलों और हाईवे पर मवेशियों का डेरा दुर्घटना का कारण बनता है। लेकिन तमाम नियम कायदे और हिदायतों के बाद भी प्रशासन सड़क से हटा कर मवेशियों का पुनर्वास नहीं कर पाया है, जबकि ये मवेशी सड़क दुर्घटनाओं और राहगीरों की मौत का कारण बन रहे हैं। भिखारियों को हटा रहा प्रशासन मवेशियों को हटाना भूल गया, इस पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जवाब तलब किया है।
हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 13 जिलों के कलेक्टरों को नोटिस जारी कर पूछा है कि उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को भी नोटिस जारी किया है। चार सप्ताह में कोर्ट को जवाब देना है। सरकार और प्रशासन का जवाब जानना दिलचस्प होगा कि उसने किस चतुराई से भिखारियों को छिपा दिया लेकिन सड़कों पर बैठी गाय क्यों दिखाई नहीं दे रही हैं।
क्या बदलेगी पुलिस कमिश्नर प्रणाली, आखिर यह माजरा क्या है?
अभी अभी अपर मुख्य सचिव गृह (एसीएस होम) बने सीनियर आईएएस जेएन कंसोटिया ने भोपाल और इंदौर में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली की समीक्षा के आदेश दिए हैं। इस आदेश के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि आईएएस और आईपीएस बिरादरी में वर्चस्व की जंग का कारण रही इस प्रणाली पर क्या सरकार बैकफुट पर आ रही है? यानी मोहन यादव सरकार पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक और फैसले को पलट सकती है और पुलिस कमिश्नर प्रणाली पर कोई फैसला ले सकती है।
मध्यप्रदेश में लंबे समय से जारी आईपीएस लॉबी की कोशिशें 9 दिसंबर 2021 को पूरी हुई थीं तब शिवराज सरकार ने भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की थी। इसके तहत भोपाल के 38 और इंदौर के 36 थाना क्षेत्रों को पुलिस के हवाले कर दिया गया था। तर्क दिया गया था कि इससे बढ़ते अपराधों की रोकथाम संभव होगी। इस प्रणाली के लागू होने से इंदौर और भोपाल में पदस्थ आईएएस के अधिकार कम हो गए हैं। इसी कारण आईएएस लॉबी पुलिस कमिश्नर प्रणाली का हमेशा विरोध करते रहे हैं। अब भी कहा जा रहा है कि तीन साल बीत जाने के बाव भी इन दोनों शहरों के अपराधों में कोई विशेष कमी नहीं देखी गई है।
यही कारण है कि आईएएस बिरादरी इस प्रणाली की समीक्षा की जरूरत बता रही है और सरकार ने इस प्रणाली की समीक्षा करने पर सहमति भी दे दी है। अब दोनों शहरों के अपराधों का विश्लेषण कर तय किया जाएगा। इसी समीक्षा के बाद ही उज्जैन, जबलपुर और ग्वालियर में भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लागू करने का निर्णय होगा। तब ही तय होगा कि इंदौर और भोपाल में पुलिस आयुक्तों के अधिकार बढ़ाए जाएं या कटौती की जाए।
मध्य प्रदेश में गाड़ी घोटाला, अफसरों की राजशाही
सरकारी नौकरी में सरकारी गाड़ी और ड्राइवर होना भी एक रूतबा है। फिर सरकारी गाड़ी छोटी क्यों हो, लक्जरी गाड़ी हो तो रूतबा और खिल जाता है। गाड़ी ट्रेवल से किराए पर लेकर भी लगाई गई है तो ड्राइवर सरकारी होना चाहिए। ऐसी ही तमाम ख्वाहिशों के चलते मध्य प्रदेश में अधिकारी अपने पद से ज्यादा खर्च वाहन सुविधा पर कर रहे हैं। यही खर्च भ्रष्टाचार का माध्यम भी बनता जा रहा है।
नियमों को तोड़ कर लक्जरी गाड़ी किराए पर लगाना और यह गाड़ी भी अपने परिचित की ट्रेवल एजेंसी को देने की शिकायतें नगरीय निकायों, पीडब्ल्यूडी, जल संसाधन विभाग जैसे विभागों में आम हैं। ऐसी शिकायतों पर गाइड लाइन जारी की गई है। तय किया गया है कि सरकारी अधिकारी अब एक से ज्यादा गाड़ी उपयोग नहीं कर सकेंगे। पहले के नियम का पालन सख्त किया जाएगा कि 7600 ग्रेड पे पाने वाले अधिकारी साढ़े 6 लाख रुपए कीमत तक के टैक्सी कोटे के वाहन उपयोग कर सकते हैं। 8700 ग्रेड पे के अधिकारी 8 लाख रुपए कीमत तक के वाहन और 9 हजार या उससे ज्यादा ग्रेड पे पाने वाले अधिकारी 10 लाख रुपए कीमत तक के वाहन टैक्सी कोटे में ले सकते हैं। सरकार ने संभाग स्तर से गाड़ियों के उपयोग और उनको हुए भुगतान की जानकारी मंगवाई है। अफसरों की राजशाही पर रोक की यह कवायद कितने दिन चलेगी और कितनी कारगर होगी, यह भी एक सवाल है।