दफ्तर दरबारी: अफसरों के चुनावी मंसूबे, सरकार ने कहीं लगाई ईंट, कहीं रोड़े
MP Politics: अफसरों के राजनीतिक मंसूबों की भांपते हुए बीजेपी सरकार ने इन अफसरों के इरादों पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है। मगर इस निर्णय से सरकार आरोपों से घिर रही है। आरोप है कि जो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं उन पर रोक और जो फायदा पहुंचा सकते हैं उन अफसरों को छूट है।

चुनाव नजदीक आ रहे हैं। अपने चुनावी मंसूबों को लेकर वर्तमान और रिटायर्ड आईएएस भी सक्रिय हो गए हैं। लेकिन इन मंसूबों की राजनीति को भांपते हुए बीजेपी सरकार ने उन अफसरों के इरादों पर पानी फेर दिया है जो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं जबकि फायदा पहुंचा सकने वाले अफसर के लिए कहीं कोई बाधा नहीं है।
पत्नी के साथ विवाद में घिरे और फिर सुप्रीम कोर्ट से जीत कर आए आईपीएस पुरुषोत्तम शर्मा को सरकार ने एक और झटका ने दिया है। सरकार ने उनके स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के आवेदन को नामंजूर कर दिया है। चर्चा थी कि लूप लाइन में चल रहे आईपीएस पुरुषोत्तम शर्मा ने जोरा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है। इस सम्बंध में राजनीतिक दलों से बात भी हो चुकी है। वे जोरा में ब्राह्मण वोटों के जरिए राजनीतिक बाजी जीतने की योजना बना रहे थे। बीजपी सरकार इन मंसूबों को भांप गई थी। उनका वीआरएस अस्वीकार करने के पीछे यह कारण माना जा रहा है।
ऐसा ही हुआ डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे के साथ। लवकुश नगर में एसडीएम निशा बांगरे का बैतूल जिले के आमला में नया घर बना है। 25 जून को उसका गृह प्रवेश है। इस अवसर पर एक बड़ा धार्मिक कार्यक्रम होना है। सामान्य विभाग ने धार्मिक कार्यक्रम के नाम पर छुट्टी मंजूर नहीं की तो निशा बांगरे ने इस्तीफा दे दिया है। सरकार ने अभी इस्तीफा मंजूर नहीं किया है। असल में, निशा बांगरे के भी आमला से चुनाव लड़ने की चर्चा है। राजनीतिक नफे नुकसान का आकलन कर ही उनके बारे में कोई निर्णय होगा।
जहां इन दो अधिकारियों की राह में सरकार ने रोड़े अटकाए वहीं आईएएस बी. चंद्रशेखर का वीआरएस आवेदन तुरंत स्वीकार कर लिया गया। आईएएस चंद्रशेखर ने मार्च में आवेदन दिया था। सरकार ने उसे स्वीकार कर केंद्र को भेजा था। अब केंद्र सरकार भी उनके आवेदन को स्वीकार कर चुकी है। बी. चंद्रशेखर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सचिवालय में पदस्थ रहे हैं तथा दलित जागरूकता के अभियान से जुड़े हुए हैं। उन्होंने अपना नाम बदल कर समान शेखर कर लिया है। जाहिर है सरकार द्वारा दो अफसरों को ना और एक अफसर को हां कहने के पीछे भी राजनीतिक एंगल है।
बजंरगी की दबंगई के आगे लाचार पुलिस की गुहार
पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश ने राजनीतिक दबंगई और पुलिस की निरीहता के दो उदाहरण देखे। यूं तो किसी भी मामले में पुलिसीया जवाब का मतलब होता है सख्त उत्तर मगर इन दो मामलों पुलिस की जवाबी भाषा गुहार के अंदाज में थी।
पहला मामला इंदौर का है। बजरंग दल कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन के दौरान स्थिति बिगड़ी और पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। बजरंग दल को यह नागवार गुजरा कि अपनी ही सरकार में उनकी पिटाई हो गई। जाहिर है मामला राजनीतिक होना था और हुआ भी। सरकार ने बजरंग दल कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के लिए थाना प्रभारी और डीसीपी पर कार्रवाई करते हुए उन्हें हटा दिया। मामले की जांच के दौरान ऐसे वीडियो भी आए जब बजरंग दल कार्यकर्ता पुलिस के साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे।
दबंगई से निपटने और कानून-व्यवस्था संभालने में जुटे अफसरों पर कार्रवाई से पुलिस बल में मायूसी है। और इसी लाचारी को व्यक्त करते हुए उन्होंने मायूस अंदाज में विरोध जताया। इंदौर के कई थानों के प्रभारी और पुलिसकर्मियों ने सोशल मीडिया पर स्टेटस रखा कि वर्दी का भी तो मान है ना।
उधर, गंगा-जुमनी स्कूल में धर्मांतरण के आरापों के कारण चर्चा में आए दमोह में कलेक्टर ने हिन्दू युवा वाहिनी जागरण मंच के नगर संयोजक कृष्णा तिवारी, बजरंग दल जिला संयोजक अनुराग यादव और हिंदू संगठन के सक्रिय कार्यकर्ता आशीष शर्मा को नोटिस दिया है। जिला बदर करने का यह नोटिस एसपी की अनुशंसा के बाद दिया गया है।
तीनों ही नेताओं की आक्रामकता और दबंग शैली से पुलिस परेशान रही है। यही कारण है कि उन्हें जिला बदर करने की तैयारी कर ली गई थी लेकिन बीजेपी सरकार ने फिर हस्तक्षेप किया और गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने मामले की दोबारा जांच करने को कहा है। यानी, पुलिस एक बार फिर राजनीतिक दबंगई के आगे स्वयं को लाचार महसूस कर रही है।
मुख्यमंत्री के ‘संबल’ से मिला भ्रष्टाचार को बल
ज्यादा दिन नहीं हुए जब मुख्मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में अपने भ्रमण के दौरान मंच से कई अफसरों व कर्मचारियों को उनकी लापरवाही और भ्रष्टाचार पर दंडित किया है। सीएम चौहान बार-बार कहते रहे हैं कि भ्रष्टाचार को लेकर प्रदेश में जीरो टालरेंस की नीति है। मगर भ्रष्टाचार भी कहां रूकने वाला है?
शिवपुरी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रिय योजना ‘संबल’ को ही भ्रष्टाचार का माध्यम बना दिया गया। यहां संबल योजना में आए पैसों को हड़पने के लिए जिंदा इंसान को मृत बता कर कर्मचारियों ने अंत्येष्टी के एक करोड़ रुपए डकार लिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने इंदौर यात्रा के दौरान कहा था कि एमपी अजब और गजब ही नहीं सजग भी है। मगर भ्रष्टाचार के खिलाफ सजगता काम नहीं आ रही है। असंगठित कामगारों के लिए लाई गई संबल योजना में मृत्यु होने पर श्रमिक के परिजनों को 4 लाख रुपए की अनुग्रह राशि उपलब्ध करवाई जाती है। जनपद पंचायत शिवपुरी में अधिकारियों-कर्मचारियों ने जिंदा लोगों को मृत बताकर एक करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला कर पैसा आपस में बांट लिया। दो पूर्व जनपद पंचायत सीईओ सहित अपराध में शामिल कर्मचारियों के विरूद्ध अब मामला दर्ज किया गया है। यह घोटाला 2018 से चल रहा था।
उधर, मुरैना में सामान्य लोग दिव्यांगों का हक खा गए। यह खुलासा तब हुआ जब 277 दिव्यांग प्रमाण पत्रों की जांच की गई तो पाया गया कि 77 प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए। इन लोगों पर तो मामले दर्ज कर लिए गए लेकिन दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी करने वाले स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों कोई सजा नहीं मिली है।
सरकार वर्सेस सरकारी कर्मचारी, न डीए, न एरियर, न पदोन्नति, न पेंशन
प्रदेश के कर्मचारी संगठन अपनी मांगों को लेकर कई दिनों से क्रमिक आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन के पांचवें चरण में 25 जून को आधा दर्जन संगठन सभी 52 जिला मुख्यालयों पर प्रभारी मंत्री, सांसद, विधायक को सीएम के नाम ज्ञापन सौंपेंगे। इस आंदोलन के पहले सीएम ने महंगाई भत्ता केंद्र के समान करने के लिए 4 फीसदी बढ़ाने की घोषणा की लेकिन कर्मचारी संगठन इससे खुश नहीं हुए। उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आई क्योंकि मामला केवल बढ़ाने देने का नहीं है, पैसा हाथ में आने का भी है।
मध्य प्रदेश लिपिक वर्गीय कर्मचारी संघ,तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ,मध्य प्रदेश लघु वेतन कर्मचारी संघ,मध्य प्रदेश वाहन चालक यांत्रिकी कर्मचारी संघ,मध्य प्रदेश पेंशनर एसोसिएशन कर्मचारियों को 5 फीसदी महंगाई भत्ता एवं सेवानिवृत कर्मचारियों को 9 फीसदी महंगाई राहत केंद्रीय दर एवं केंद्रीय तिथि से आदेश जारी करने सहित एरियर का बकाया देने, पुरानी पेंशन बहाल करने, कर्मचारियों की पदोन्नति, समय मान वेतनमान, आउट सोर्स प्रथा बंद करने सहित 17 सूत्रीय मांगों के साथ आंदोलन कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री चौहान की घोषणा से कर्मचारियों में उत्साह नहीं है क्योंकि एरियर अटका है। पेंशनरों के महंगाई भत्ते का मामला छग सरकार के साथ समन्वय में अटका है। पदोन्नति का इंतजार करते हुए हजारों कर्मचारी रिटायर हो गए हैं। सरकार भत्ता बढ़ाने की घोषणा तो करती है मगर एरियर का भुगतान नहीं होता है। यही वजह है कि डीए में 4 फीसदी की वृद्धि की घोषणा भी कर्मचारियों के चेहरे पर मुस्कान नहीं ला पाई है।