दफ्तर दरबारी: वो कौन खास अफसर हैं जो सीएम को मार रहे लंगड़ी
MP Police: अगले माह मोहन सरकार को दो वर्ष पूरे हो रहे हैं। इन दो वर्षों में सीएम डॉ. मोहन यादव ने अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से गाढ़ी रेखा खींचने की कोशिश की है लेकिन कुछ कदम लौटाने पड़े। क्या इसका कारण अफसर और उनके फैसले हैं?
मुख्यमंत्री की मंशा लागू करना अफसरों का काम है और अफसरों के काम से ही सरकार की छवि बनती है। इधर सीएम मोहन यादव अपनी छवि गढ़ने और कामकाज को शिवराज से आगे ले जाने का जतन कर रहे हैं। दूसरी तरफ कुछ मामलों में सरकार की किरकिरी हो रही है।
ऐसे कई मामले हैं जो प्रशासनिक गफलत के कारण सरकार पर भारी पड़े हैं। फिलहाल दो-तीन मामलों की बात करते हैं। सबसे बड़ा मामला तो सिंहस्थ 2028 के लिए भूमि अधिग्रहण का है। यह मोहन सरकार के लिए प्रतिष्ठा आयोजन है। सरकार ने तय किया था कि परंपरा को तोड़ते हुए इस सिंहस्थ के लिए 30 हजार हेक्टेयर जमीन हमेशा के लिए अधिग्रहित कर ली जाए। जबकि हर बार किसानों से एक वर्ष के लिए अस्थाई तौर पर जमीन ली जाती रही है। सरकार के स्थाई निर्माण के फैसले का किसानों ने विरोध कर दिया। भोपाल से दिल्ली तक ताकत लगाने के बाद भी आरएसएस से जुड़ा भारतीय किसान संघ माना नहीं। अंतत: मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किसान संघ की बात मान ली।
किसानों के साथ बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस फैसले को वापस लेने की घोषणा कर दी। लेकिन जब अफसरों ने आदेश जारी किया तो उसकी भाषा और प्रावधान से किसान संघ भड़क गया। जिस मामले को जैसे-तैसे संभाला गया था और किसान संघ के आंदोलन को टाला गया था वह फिर ज्वलंत हो गया।
इसी तरह, मध्य प्रदेश में महाकाल लोक सहित अन्य निर्माण कार्यों में जमीन अधिग्रहण हुआ, तोड़फोड़ हुई, विरोध भी हुआ लेकिन अफसरों ने जनता के आक्रोश को मैनेज कर लिया। इसबार जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ओंकारेश्वर में 120 करोड़ व्यय कर ममलेश्वर लोक बनाने की घोषणा की तो जनता सड़क पर उतर आई। अंतत: सरकार को कदम पीछे खींच लेने पर मजबूर होना पड़ा। इससे पहले बिजली विभाग के अधिकारी ने किसानों को 10 घंटे बिजली न देने का आदेश जारी कर दिया। बात बिगड़ी तो सीएम डॉ. मोहन यादव को हस्तक्षेप करना पड़ा।
ये ऐसे मामले हैं जिन्हें अफसरों की वजह से खड़ा होना और अफसरों के कारण विवाद में घिरना माना जा रहा है। अफसर सूझबुझ से काम लेते तो शायद ऐसे मामले खड़े ही नहीं होते। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी 2 साल के अब तक के कार्यकाल में आधा दर्जन अफसरों पर भरोसा जता कर सीएम सचिवालय में शामिल किया और हटाया लेकिन अक्सर बड़े मामलों में बात बनते-बनते बिगड़ जाती है। सवाल यही है कि आखिर वे कौन अफसर हैं जो बात को संभालने की जगह उसे बिगड़ने देते हैं और मुख्यमंत्री की राह में लंगड़ी मार देते हैं।
बढ़ते अपराध और मुख्यमंत्री का बिहार कनेक्शन
मुख्यमंत्री की मंशा को चोट पहुंचा रहे अफसरों की बात चली है तो भोपाल की कानून व्यवस्था का जिक्र आना स्वाभाविक है। भोपाल और इंदौर में इस दावे के साथ पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई थी कि अपराध घटेंगे, अपराधियों पर नियंत्रण होगा। मगर कई मामलों में बुरे अनुभव हो रहे हैं। बीते हफ्ते भोपाल में ऐसी घटनाएं हुईं कि यहां की कानून व्यवस्था की तुलना जंगल राज से की जाने लगी। जैसे, नर्मदापुरम रोड़ पर एक कैफे पर नकाबपोश एक दर्जन हमलावरों का तोड़फोड़ करना। वाइसरॉय कॉलोनी में चार युवकों को घर से निकाल का दौड़ा-दौड़ा कर पिटना, चार इमली जैसी पॉश कॉलोनी में डिप्टी कलेक्टर के घर से चोरी हो गई तो जेपी अस्पताल के पास उपमुख्यमंत्री के पीए का मोबाइल लूट लिया गया। इससे पहले आईजी इंटेलीजेंस के मोबाइल लुटेरों को पकड़ने में पुलिस को पसीने आ गए थे।
आईएएस और आईपीएस के बीच सत्ता संघर्ष में आईपीएस लॉबी ने बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लागू करवाया है। ऐसे मामलों में पुलिस प्रशासन कमतर ही साबित नहीं हो रहा है बल्कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पर भी उंगलियां उठ रही हैं क्योंकि वे ही गृहमंत्री भी हैं। जब बिहार जीत में उनके योगदान पर बात चल रही थी तब कानून व्यवस्था के बुरे हाल को बिहार से जोड़ कर तंज हुए कि गृहमंत्री (सीएम) प्रचार करने बिहार गए और पुलिस ने भोपाल को बिहार बनने दिया। यह बात ओर है कि पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर आरोपियों को पकड़ लिया लेकिन यह भी तो उजागर हुआ कि अपराधियों में पुलिस का खौफ नहीं है।
अपराध मुक्त देश बनाने निकले आईपीएस पर भ्रष्टाचार के आरोप
2024 के लोक सभा चुनाव में पीएम मोदी के खिलाफ मैदान में उतरने वाले मध्य प्रदेश के रिटायर्ड आईपीएस मैथिलीशरण गुप्त ‘अपराध मुक्त भारत अभियान’ चला रहे हैं। वर्ष 2021 में मध्यप्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजी) पद से सेवानिवृत्त होने के बाद से वे इस काम में जुटे हैं। एक तरफ अपराध मुक्त भारत अभियान और दूसरी तरफ उन पर पड़ोसी ने जमीन पर कब्जा करने के आरोप लगाए।
भोपाल के दानिश कुंज में उनके बंगले के पड़ोसी प्लॉट मालिक माधव गुप्ता ने कुछ समय पहले आरोप लगाया था कि पूर्व डीजी ने उनके प्लॉट पर कब्जा कर रखा है। जब प्लॉट से कब्जा नहीं हटा तो माधव गुप्ता ने ईओडब्ल्यू में शिकायत कर दी। शिकायत का आधार 2024 में भोपाल लोकसभा से चुनाव लड़ने दौरान भरे गए नामांकन में दिया गया शपथ पत्र है। आरोप है कि शपथ पत्र में संपत्ति संबंधी जानकारी गलत है। आरोप है कि इस बंगले की रजिस्ट्री 2010 में कराई गई। कीमत भी उनकी दी गई जानकारी से अधिक है। बंगले की मार्च 2010 में रजिस्ट्री के समय कीमत 23.60 लाख रुपए थी। लेकिन बंगले को 3.85 लाख रुपए में खरीदना बताया गया। बाकी की कीमत को अलग-अलग अदा किया गया था। इसके प्रमाण शिकायत आवेदन के साथ संलग्न कर दिए हैं।
पूर्व आईपीएस मैथिलीशरण गुप्त ने इन आरोपों पर पड़ोसी इंजीनियर माधव गुप्ता को ही दोषी करार दिया है। मामला अब पुलिस यानी ईओडब्ल्यू के पास ही है। अब किसका दोष सिद्ध होगा यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन अपराध मुक्त भारत अभियान के सूत्रधार फिलहाल एक शिकायत के केंद्र तो बन ही गए हैं।
काश, बहती गंगा में हाथ धुल जाएं
बहती गंगा में हाथ धोना सबसे आसान है और इस बहाने मंग मांगी मुराद पूरी हो जाए तो बात की क्या? मध्य प्रदेश के कई पुलिस अफसर इसी उम्मीद में बैठे हैं कि किसी की सजा उनके लिए वरदान बन जाए। मामला यूं है कि दिसंबर पहले सप्ताह में विधान सभा का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है। विधायक चौधरी सुजीत मेर सिंह ने विधानसभा में सवाल पूछा है कि प्रदेश में कितने पुलिस अधिकारी सालों से एक ही जगह पर जमे हुए हैं। इस पर 2 दिसंबर को सरकार की ओर से जवाब आना है।
इस जवाब के पहले कई सालों से एक ही स्थान पर जमे अधिकारियों को हटाने की कवायद शुरू हो गई है। खासतौर पर सब इंस्पेक्टर, इंस्पेक्टर और एसडीओपी को हटाया जाना तय माना जा रहा है। गौरतबल है कि मध्यप्रदेश में पुलिस अधिकारियों का 3 साल में ट्रांसफर का प्रावधान है। हालांकि विशेष परिस्थितियों में इस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है। मगर एक हजार पुलिस अफसर ऐसे हैं जो तबादला नीति के विरूद्ध एक ही जगह पर सालों से बने हुए हैं। इन अफसरों को अपनी जगह से हटना पड़ सकता है जो उनके लिए सजा की तरह होगा लेकिन ऐसे भी अफसर हैं जो मनचाही जगह पर जाना चाहते हैं। कयास लगाए जा हैं कि जल्दी ही प्रदेश के कुछ जिलों के एसपी बदले जाएंगे। यही अफसर इस उम्मीद में ही कि सालों से जमे अफसरों को हटाने की प्रक्रिया में उनकी लंबित सूची भी आ जाए और वे मनचाही पोस्टिंग पा जाएं।




