दफ्तर दरबारी: सीएम डॉ. मोहन यादव ने नागनाथ को पुकारा तो याद आ गया सांपनाथ
MP News: सांपों की गणना और जहर से जहर उतारने की कवायद के रूप में किंग कोबरा को मध्य प्रदेश लाने की कवायद के बीच सिस्टम के सांपों को पहचानने की कांग्रेस की चुनौती भी खूब चर्चा में रही।

मध्य प्रदेश के प्रशासनिक अमले में एक खासतरह का ऊहापोह है यह असमंजस सांप का लेकर है। साधारण सांप नहीं नागराज कहे जाने वाले किंग कोबरा को लेकर। किंग कोबरा दूसरे सांपों का शिकार करता है। यही कारण है कि महाकौशल और अन्य क्षेत्रों में जहरीले सांपों के काटने से होने वाली मौत से निपटने के लिए राज्य सरकार जहरीले सांपों के शिकारी किंग कोबरा को मध्य प्रदेश में बसाने की तैयारी में हैं। भोपाल में वन विभाग के एक कार्यक्रम में सीएम डॉ. मोहन यादव ने किंग कोबरा को एमपी में बसाने के साथ सांपों की गणना के निर्देश दिए हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव बार-बार सांपों की गणना की बात करते हैं लेकिन उनकी कोई सुन नहीं रहा है। इसका खुलासा स्वयं डॉ. मोहन यादव ने किया। उन्होंने मंच पर बैठे अधिकारियों ने कहा कि सांपों की गिनती का प्रावधान है लेकिन कोई सांपों की गिनती करता ही नहीं है। मैं तो कई बार इस विषय पर पूछ चुका हूं, लेकिन मुझे कहा जाता है कि इसका कोई हिसाब-किताब ही नहीं है।
कार्यक्रम में मौजूद केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की बात से सहमति जताई। बात भले ही सर्पदंश से निपटने की हो रही थी लेकिन जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने नागनाथ का जिक्र किया तो मानो विपक्ष को मौका मिल गया। कांग्रेस ने इस मौके को हाथोंहाथ लिया। कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के सांपनाथ का जिक्र कर दिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री के बयान को शेयर करते हुए लिखा, 'हजारों समस्याओं को दरकिनार कर मुख्यमंत्री अब सांपों की गिनती करवा रहे हैं! सच में कमाल है! सांपों को ढूंढने जंगल जा रही। भाजपा सत्ता अपने आसपास के सांपों को कैसे भूल रही है? कर्ज के सांप, करप्शन के सांप, कमीशन के सांप! इन्हें कौन पहचानेगा? इन्हें कौन पकड़ेगा?'
जाहिर है, सांपों की गणना और जहर से जहर उतारने की कवायद के रूप में किंग कोबरा को मध्य प्रदेश लाने की कवायद के बीच सिस्टम के सांपों को पहचानने की कांग्रेस की चुनौती भी खूब चर्चा में रही।
अपने साथ जफासे खफा आईपीएस गुना
एसपी के पद से हटाए जाने के बाद आईपीएस संजीव कुमार सिन्हा खफा भी है और मायूस भी। बात हनुमान जयंती की है। गुना के कर्नलगंज में मस्जिद के सामने जुलूस निकालते समय दोनों समुदाय के बीच विवाद की स्थिति बन गई थी। कथित पथराव के बाद हिंसा के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे। तत्कालीन एसपी संजीव कुमार सिन्हा ने बयान जारी कर कहा था कि, किसी तरह की पत्थरबाजी नहीं हुई। जुलूस वहां से निकला जहां से जुलूस निकाले जाने की परमिशन नहीं थी। खास समुदाय के धार्मिक स्थल के सामने नारेबाजी की गई। इससे दूसरे पक्ष के लोग भड़क गए। मैंने सीसीटीवी में देखा किसी तरह का पथराव नहीं हुआ। इस हिंसा के दो दिन बाद ही बीजेपी पार्षद ओमप्रकाश कुशवाह समेत हिन्दू संगठन के कार्यकर्ताओं के विरूद्ध एफआईआर दर्ज की गई थी।
इस कार्रवाई पर आईपीएस संजीव कुमार सिन्हा की प्रशंसा भी हुई तो दूसरा पक्ष नाराज हो गया था। हिंदुवादी संगठनों की नाराजगी के बाद राज्य शासन ने एसपी को हटा कर भोपाल पदस्थ कर दिया। साफगाई पर सरकार की कार्रवाई से आईपीएस संजीव कुमार सिंह निराश हैं। वफा को जफा समझ लिए जाने और तबादले की सजा से वे खफा भी हैं। वे इतने दु:खी हैं कि अपने समर्थकों और मित्रों के बीच नौकरी छोड़ देने तक का संकेत तक दे चुके हैं। फिलहाल उन्हें शांत रह कर इंतजार करने की सलाह दी गई है।
जनप्रतिनिधियों को पुलिस का सलाम
अपने तीखे तेवर के लिए पहचाने जाने वाले डीजीपी कैलाश मकवाना का एक आदेश इनदिनों चर्चा में है। अपने ताजा आदेश में उन्होंने सभी पुलिस वालों से कहा है कि अब वे सांसद, विधायकों को सैल्यूट करें। आमतौर पर प्रशासनिक व्यवस्था के तहत आईएएस सहित मैदानी अफसरों के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ऐसे आदेश अक्सर निकालता है। अब जनप्रतिनिधियों के साथ पुलिस के व्यवहार की शिकायतों के बीच डीजीपी कैलाश मकवाना ने पुलिसकर्मियों से कहा है कि वे जनप्रतिनिधियों का उपयुक्त सम्मान करे।
इस आदेश के बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ प्रतिक्रियाओं में इसे पुलिस का मनोबल तोड़ने वाला आदेश कहा गया है। संदेह किया गया है कि नेताओं को सलाम ठोंकने वाली पुलिस अपने क्षेत्र में राजनीतिक प्रश्रय में पल रहे अपराधियों पर कार्रवाई कैसे करेगी? हालांकि, सभी चुने हुए विधायक और सांसद अपराधियों को संरक्षण नहीं देते हैं। ऐसे भी जन प्रतिनिधि हैं जो पुलिस के दुर्व्यहार के शिकार हुए हैं। सेमरिया से कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा ने अपने बेटे के साथ पुलिस के दुर्व्यवहार की शिकायत की तो उनकी व्यथा को जान कर मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल भावुक हो गए थे। उन्हें अपने साथ हुआ व्यवहार याद आ गया था। यह बात ओर है कि मंत्री पटेल ने तो थाने पहुंच कर पुलिसकर्मियों को निलंबित करवा दिया था।
डीजीपी कैलाश मकवाना के आदेश के पक्ष में भी तर्क दिए जा रहे हैं। तर्क यह है कि पुलिस अधिकारी और मैदानी अमला सत्ताधारी दल के नेताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते लेकिन विपक्ष के विधायकों, सांसदों के साथ उनका व्यवहार सम्मानजनक नहीं होता है। विपक्ष नेताओं के साथ अब पुलिस के व्यवहार में सुधारकी गुंजाइश बढ़ गई है।
शिवराज के आंगन में क्यों नहीं टिकते कलेक्टर
मध्य प्रदेश में एक सवाल जितना प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है उतनी ही चर्चा इसके राजनीतिक प्रभाव की भी है। सवाल यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र विदिशा में बार-बार कलेक्टर क्यों बदले जा रहे हैं?
विदिशा में लोकसभा चुनाव के पहले उमाशंकर भार्गव का तबादला कर बुद्धेश कुमार वैद्य को कलेक्टर बनाया गया था। आईएएस बुद्धेश कुमार वैद्य पांच बादह ही हटा दिए गए। धार्मिक आस्था के केंद्र के विवाद में बीजामंडल को पुरात्तव विभाग के हवाले से मुसलमानों का बताने पर हिंदुवादी संगठन तत्कालीन कलेक्टर बुद्धेश कुमार वैद्य से नाराज हो गए थे। यह विवाद उनके हटने का कारण बना।
अगस्त 2024 में जनसंपर्क विभाग के संचानक रोशन कुमार सिंह को विदिशा कलेक्टर बनाया गया था। अब जब उज्जैन कलेक्टर को पारिवारिक विवाद के कारण हटाने की बारी आई तो आईएएस रोशन कुमार सिंह को विदिशा से उज्जैन भेज दिया गया। भोपाल में जनसंपर्क विभाग के संचालक अंशुल गुप्ता को विदिशा का कलेक्टर बना दिया गया। दोनों अधिकारी आईएएस रोशन कुमार सिंह और अंशुल गुप्ता सीएम डॉ. मोहन यादव की गुड बुक में हैं।
सवाल यही है कि उज्जैन में अपने पसंदीदा अफसर को भेजने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विदिशा जिले को क्यों छेड़ा? क्या यह शुद्ध प्रशासनिक निर्णय है या इसके पीछे कोई राजनीतिक एंगल भी है? राजनीतिक एंगल इसलिए तलाशा जा रहा है क्योंकि विदिशा में कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पसंद का अधिकारी नहीं भेजा जा रहा है।