दफ्तर दरबारी: कुशल अफसर आईएएस बीपी सिंह पर क्‍यों बरसी बीजेपी

1984 बैच के आईएएस अधिकारी व प्रदेश के पूर्व मुख्‍य सचिव बीपी सिंह बीजेपी  के निशाने पर हैं। इस बार मतदाता सूची में कांटछांट और कम मतदान के कारण उनकी किरकिरी हो रही है। लेकिन चुनाव आयुक्‍त पर बीजेपी के लाल पीले होने की वजह कुछ ओर है।

Updated: Jul 09, 2022, 06:08 AM IST

चुनाव आयुक्‍त बीपी सिंह से बीजेपी प्रतिनिधि मंडल की मुलाकात
चुनाव आयुक्‍त बीपी सिंह से बीजेपी प्रतिनिधि मंडल की मुलाकात

1984 बैच के आईएएस अधिकारी व प्रदेश के पूर्व मुख्‍य सचिव बीपी सिंह बीजेपी  के निशाने पर हैं। इस बार मतदाता सूची में कांटछांट और कम मतदान के कारण उनकी किरकिरी हो रही है। पूरे कॅरियर में ठकुराई भरे अंदाज में काम करने वाले बसंत प्रताप सिंह के लिए यह विवाद रूचिकर नहीं है।

नगरीय निकाय चुनाव का पहला चरण बुधवार को पूरा हो हुआ। छह साल बाद हो रहे इन चुनावों को विधानसभा चुनाव 2023 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों से मिले रूझान बीजेपी के अनुकूल नहीं माने जा रहे हैं। यही कारण है कि पार्टी ने नगर पालिका व नगर निगम चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन, पहले चरण में मतदान का प्रतिशत घटने से बीजेपी में चिंता गहरा गई है। आंकड़े बताते हैं कि भोपाल में जब जब 50 प्रतिशत से कम मतदान हुआ है तब तब कांग्रेस का महापौर प्रत्‍याशी जीता है। बीजेपी के लिए 50 प्रतिशत से अधिक का मतदान मुफिद होता है। इस लिहाज से भोपाल सहित अन्‍य क्षेत्रों में मतदान कम होने से बीजेपी में फिक्र बढ़ गई कि मतदान घटने का प्रभाव उसके खिलाफ न जाए।

यही कारण है कि पार्टी ने चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी बताई। पार्टी के प्रतिनिधि मंडल ने तुरत फुरत चुनाव आयुक्‍त बीपी सिंह से भेंट कर उन्‍हें आगामी चरण के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं। बीजेपी नेताओं की इस सक्रियता और सोशल मीडिया पर आलोचना से चुनाव आयुक्‍त बसंत प्रताप सिंह अचानक सुर्खियों में आ गए हैं। पूर्व मुख्‍य सचिव बीपी सिंह पूरे कॅरियर में एक दो मसलों के अलावा कभी इतने बड़े विवाद से नहीं घिरे कि उनकी कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठने लगे।

सोशल मीडिया पर कांग्रेस और बीजेपी के हमलावर रूख के बाद जब बीजेपी के प्रतिनिधि मंडल ने ज्ञापन देते हुए सवाल उठाया कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाताओं को जागरूक करने के लिए कोई ठोस कार्यक्रम क्‍यों नहीं चलाया? जिन मतदाताओं के नाम मतदाता सूचियों में थे उनमें से अधिकांश मतदाताओं को मतदाता पर्चियां प्राप्त नहीं हुई है, जिसके कारण हजारों की संख्या में मतदाता मतदान के अधिकार से वंचित रह गए। विधानसभा चुनाव के मतदान केंद्र बिना सूचना के विभाजित कर दिए गए। इस कारण मतदाताओं को मतदान करने के लिए भटकना पड़ा।

मतदाता पर्ची नहीं बांटे जाने के लिए आयोग को दोषी ठहराने के पीछे राजनीतिक वजह भी है।  बीजेपी ने प्रदेश में 1 लाख 75 हजार बूथों पर पन्ना प्रमुख तैनात किए गए हैं। इन्‍हें कहा गया था कि ये वोटर लिस्ट के आधार पर घर-घर जाएंगे। तो सवाल यह है कि जब वोटर लिस्‍ट में नाम थे ही नहीं तो ये पन्‍ना प्रमुख मतदाओं से संपर्क करने कहां गए थे? कार्यकर्ता  मैदान में उतरे ही नहीं वरना वे  वोटर लिस्ट की गड़बड़ी को पकड़ लेते। अब जब पार्टी की यह व्‍यवस्‍था विफल हो गई है तो संगठन ने अपना बचाव करने के लिए चुनाव आयोग पर ठिकरा फोड़ दिया। मतदान होते ही बीजेपी नेताओं की सक्रियता का कारण भी यही था। 

दूसरी तरफ, बीजेपी के आरोपों के बाद तेजतर्रार छवि के आईएएस बीपी सिंह ने फिलहाल तो 1600 केंद्रीय कर्मचारियों को ऐनवक्‍त पर हटा लेने के निर्णय पर सारा ठिकरा फोड़ा है। अब देखना होगा कि अगले दौर में कैसी व्‍यवस्‍था होती है। बीपी सिंह इस परीक्षा में पास हुए तो ही राजनीतिक हमलों से मुक्ति मिल पाएगी अन्‍यथा उनकी राह मुश्किल है।

तो इस बहाने होगी कलेक्‍टर साहब की विदाई...

प्रदेश में कई जिलों पदस्‍थ कलेक्‍टर से सांसद, विधायक ही नहीं स्‍थानीय बीजेपी नेता भी नाराज है। सभी की एक ही शिकायत है कि कलेक्‍टर उनकी सुनते नहीं है। कलेक्‍टर भी भोपाल से मिले निर्देशों की ही तवज्‍जो देते हैं। स्‍थानीय संगठन उनके लिए महत्‍व का ही नहीं है। यही कारण है कि आए दिन बीजेपी विधायक, सांसद या स्‍थानीय नेताओं की कलेक्‍टर से खटपट की खबरें सुर्खियां बनती हैं।

भोपाल से वरदहस्‍त पाए आईएएस अधिकारियों के खिलाफ बीजेपी के स्‍थानीय नेता चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते हैं। मगर पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों ने जैसे इन नेताओं की मुराद पूरी कर दी है। कम मतदान और अन्‍य अव्‍यवस्‍थाओं को मुद्दा बनाते हुए बीजेपी नेताओं ने कलेक्‍टरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आधे जिले से ज्‍यादा जिलों के कलेक्‍टरों को हटाने के लिए शिकायत संगठन के माध्‍यम से सरकार तक पहुंचा दी गई है।

देखना होगा कि रसूख के दम पर बीजेपी के जनप्रतिनिधियों को हाशिए पर रखने वाले आईएएस नेताओं पर संगठन लगाम लगाने में कामायाब होगा या फिर सरकार अपने प्रिय अफसरों को मैदानी पोस्टिंग में बरकरार रख पाएगी।

शिवराज सिंह का तीर कमलनाथ पर, निशाने पर कौन

मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव में तीखी बयानबाजी जारी है। एमपी कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने मुरैना के रोड शो में कहा कि जनता शिवराज जी की नाटक-नौटंकी-झूठ व घोषणाओं से ऊब चुकी है, उनका इससे पेट भर चुका है। आजकल शिवराज जी तो बौखलाए हुए हैं। एक अन्‍य सभा में कमलनाथ ने कहा है कि बीजेपी के पास केवल पुलिस, पैसा और प्रशासन बचा है। बीजेपी का बिल्ला जेब में लेकर अफसर घूम रहे हैं।

इसके जवाब में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रायसेन में कहा कि कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे, तब भी पुलिस-प्रशासन को अपमानित करते थे। रस्सी जल गई, लेकिन बल नहीं गया। निकाय चुनाव में भी आक्रमक होकर कांग्रेस नेताओं पर जमकर बयानी प्रहार कर रहे हैं। पुलिस अफसरों पर दिए गए कमलनाथ के बयान पर शिवराज सिंह चौहान ने विंध्‍य की सभाओं में कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कर्मचारियों को आतंकवादियों की तरह धमकी दे रहे हैं।

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हमला तो कमलनाथ और उनके बयान पर किया है मगर निशाने पर कर्मचारी हैं। मध्‍य प्रदेश के पेंशनरों ने मांग पूरी नहीं होने पर वोट नहीं देने का अभियान चलाया हुआ है। कई क्षेत्रों में घरों के आगे पोस्‍टर लगे हैं कि हम पेंशनर हैं, हमसे वोट मांगने नहीं आएं।

दूसरी तरफ, अपनी मांगों को लेकर हमेशा मुखर रहने वाले कर्मचारी संगठन पिछले कुछ से खामोश हैं। प्रमोशन में आरक्षण न होने से कर्मचारी नाराज हैं। दूसरी तरफ पुरानी पेंशन बहाली भी बड़ा मुद्दा है। कांग्रेसशासित राज्‍यों ने पुरानी पेंशन बहाल कर दी है। कमलनाथ ने भी वादा कर दिया है कि यदि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो वे कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करेंगे। अब बीजेपी सरकारों पर दबाव है। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के पहले शिवराज सरकार इस मामले पर कुछ फैसला ले सकती है।

बहरहाल, चिंता नगरीय निकाय चुनाव है तो मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ को कर्मचारियों के मामले पर निशाने पर ले लिया। वे यह सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं कि कर्मचारियों की असली फिक्र तो बीजेपी ने की है। कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों की चिंता नहीं की। देखना होगा कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी इस बात को कितना स्‍थापित कर पाते हैं।

बहुरेंगे रिटायर्ड आईएएस व आईपीएस के दिन

मध्‍य प्रदेश के लिए यह ख्‍यात है कि यहां आईएएस अफसरों का पुनर्वास बहुत तेजी से होता है। वे रिटायर बाद में होते हैं, नए पद की व्‍यवस्‍था पहले होती है। इस व्‍यवस्‍था के बाद भी कई आईएएस पुनर्वास से वंचित हैं। अब इन आईएएस की प्रतीक्षा खत्‍म होने वाली है।

सरकार ने खाली बैठे रिटायर्ड आईएएस को काम देने की तैयारी कर ली है। खबर है कि सुशासन के लिए सरकारी विभागों में जांच का काम रिटायर्ड आइएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों को देने जा रही है। नियुक्‍त होने के बाद रिटायर्ड अफसर तीन साल तक विभागों में अफसर व कर्मचारियों की विभागीय जांच करेंगे। नया काम पाने के लिए इस माह के तीसरे सप्‍ताह तक रिटायर्ड अफसरों को आवेदन करना होगा।

सरकार लंबित विभागीय जांचों की संख्‍या कम करने के लिए यह उपाय करने जा रही है मगर अफसरों व कर्मचारियों में एक खास तरह की आशंका सता रही है। अपने कॅरियर में सख्‍त रहे या स्‍वभावगत दोष के कारण कई अफसरों के कार्यकाल में फाइलें लंबित रही हैं। कुछ की सेवानिवृत्ति पर तो इसलिए खुशी मनाई गई थी कि उनके जाने के बाद उनकी कार्यप्रणाली से मुक्ति मिलेगी। अब यदि वही अफसर नई जिम्‍मेदारी के साथ लौट आएंगे तो पुरानी कार्यप्रणाली फिर कायम हो जाएगी। वैसे यह आशंका निर्मूल नहीं है। देखना होगा, सरकार की यह योजना सुशासन स्‍थापित करती है या अ‍फसरों के पुनर्वास की योजना भर बन कर रह जाती है।