दफ्तर दरबारी: द केरल स्‍टोरी पर किरकिरी, अफसरों ने नियम और सरकार ने एजेंडा लागू किया 

MP Politics: 'ए' सर्टिफिकेट वाली फिल्‍म ‘द केरल स्‍टोरी’ को सरकार ने नियमों को ताक पर रखते हुए टैक्‍स फ्री करने की घोषणा की है। सवाल यह उठ रहे हैं कि हिंसा, बलात्‍कार और महिलाओं पर अत्‍याचार दिखाने वाली इस फिल्‍म को टैक्‍स फ्री कर सरकार क्‍या संदेश देना चाहती है? क्‍या इससे बालमन पर विपरीत असर नहीं होगा ?

Updated: May 13, 2023, 12:56 PM IST

मुख्‍यमंत्री शिवराज  सिंह चौहान
मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान


‘द केरल स्‍टोरी’ को लेकर जारी विवाद के बीच मध्‍य प्रदेश की बीजेपी सरकार की एक और किरकिरी हुई है। इसबार विवाद का कारण फिल्‍म को टैक्‍स फ्री करने का निर्णय था। नियमों के अनुसार यह फिल्‍म टैक्‍स फ्री नहीं की जा सकती है मगर राजनीतिक घोषणा का पालन करने के लिए यह नियम ताक पर रख दिया गया है। 

हुआ यूं कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्‍य प्रदेश में भी ‘द केरल स्‍टोरी’ को टैक्‍स फ्री करने की घोषणा की थी। इस घोषणा का पालन करते हुए 6 मई को वाणिज्‍य कर विभाग ने टैक्‍स फ्री करने का आदेश निकाल दिया। कि‍रकिरी तब हुई जब 10 मई को विभाग ने एक आदेश जारी कर पहले के आदेश को निरस्‍त कर दिया। यानी कि फिल्‍म को मध्‍य प्रदेश में टैक्‍स फ्री नहीं करने का आदेश जारी किया गया। इससे हंगामा हो गया। विवाद बढ़ा तो गृहमंत्री डॉ. नरोत्‍तम मिश्रा ने बयान दिया कि फिल्‍म टैक्‍स फ्री है और रहेगी। 

असल में, वाणिज्‍यकर विभाग के अफसर नियमों का पालन कर रहे थे। नियम है कि एडल्‍ट श्रेणी (सेंसर द्वारा 'ए' सर्टिफिकेट प्राप्‍त) की फिल्‍म को सरकार टैक्‍स फ्री नहीं कर सकती हैं। इसका कारण यह है कि एडल्‍ट फिल्‍म 18 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चे नहीं देख सकते है। यू/स सर्टिफिकेट प्राप्‍त फिल्‍मों के लिए भी बच्‍चों के साथ अभिभावक का होना आवश्‍यक है। टैक्‍स फ्री करने से फिल्‍म की टिकट सस्‍ती हो जाती है और ऐसा करने का उद्देश्‍य होता है कि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग उसे देखें। 'ए' सर्टिफिकेट वाली फिल्‍मों की सामग्री बाल मन पर विपरीत असर डालती है। इसलिए सरकार ऐसी फिल्‍मों को प्रोत्‍साहित नहीं करती है। 

‘द केरल स्‍टोरी’ के मामले में अफसरों ने नियमों का पालन किया लेकिन सरकार ने अपने एजेंडे को लागू किया और नियमों को ताक पर रखते हुए फिल्‍म को टैक्‍स फ्री करने की बात पर अड़ी रही। एजेंडा लागू करने के इस कदम ने विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया है। कांग्रेस ने यह सवाल उठाया है कि हिंसा, बलात्‍कार और महिलाओं पर अत्‍याचार दिखाने वाली इस फिल्‍म को टैक्‍स फ्री कर सरकार क्‍या संदेश देना चाहती है? क्‍या इससे बालमन पर विपरीत असर नहीं होगा और हिंसा व नफरत को बढ़ावा नहीं मिलेगा? आमतौर पर ऐसी फिल्‍में टैक्‍स फ्री की जाती हैं जो जनता को प्रेरणा दे। इस फिल्‍म से जनता को क्‍या प्रेरणा मिल रही है? हिंसा को दिखा कर सरकार किस तरह का पाठ पढ़ाना चाहती है?  

एक तरफ सरकार लाड़ली लक्ष्‍मी और लाड़ली बहना योजनाओं को प्रचारित कर रही है और दूसरी तरफ लाड़लियों पर अत्‍याचार की फिल्‍म को प्रमोट कर रही हैं। जिस फिल्‍म को महिला विरोधी और सद्भाव विरोधी होने का दर्जा मिलना चाहिए उसे प्रोत्‍साहित किया जाना अनुचित है। इस निर्णय को निशाने पर लेते हुए याद दिलाया गया कि महिला अपराध में मध्‍य प्रदेश देश में नंबर एक है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्‍यूरो की रिपोर्ट बताती है कि 2021 तक प्रदेश से 35 हजार 638 बच्चियां और महिलाएं लापता हैं। इनमें से 33 हजार का अब तक पता नहीं चला है। अन्‍य आंकड़ें बताते हैं कि गुजरे दस सालों में मध्‍य प्रदेश में नाबालिग लड़कियों के साथ हुए अपराधों में 377 फीसदी की वृद्धि हुई है। ऐसे में हिंसा व अपराध प्रधान इस फिल्‍म का कथानक मध्‍य प्रदेश में क्‍या प्रतिक्रिया पैदा करेगा, आकलन करना कठिन नहीं है।  

मनीष सिंह के आने से कितनी उजली होगी सरकार की छवि 

इंदौर को देश का सबसे स्‍वच्‍छ शहर बनाने के अभियान की कमान संभालने वाले आईएएस मनीष सिंह को शिवराज सरकार में नई जिम्‍मेदारी दी गई है। सीएम शिवराज सिंह चौहन के प्रिय अफसरों में शुमार होने वाले मनीष सिंह जनसंपर्क आयुक्‍त बनाए गए हैं। अब वे सरकार की छवि को साफ सुथरा करेंगे। आयुक्‍त जनसंपर्क राघवेंद्र सिंह अपने अंदाज में काम कर रहे थे। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठकों में सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा भी की थी। अब चुनाव के ठीक पहले मनीष सिंह को आयुक्त जनसंपर्क बनाया गया है तो कयास लगाए जा रहे हैं कि वे किस बड़े लक्ष्‍य को साधने के लिए जनसंपर्क विभाग में लाए गए हैं?

अब तक जनसंपर्क विभाग में सौम्‍य छवि के अफसरों की नियुक्ति की जाती रही है ताकि पत्रकारों और सरकार के बीच बेहतर तालमेल हो सके। अफसरों के एटीट्यूड व पत्रकारों की ठसक का संघर्ष अंतत: सरकार को ही नुकसान पहुंचाता है। इस धारणा के लिहाज से मनीष सिंह का जनसंपर्क विभाग में आना चौंकाने वाला फैसला कहा जाएगा। 

मनीष सिंह की छवि सख्त अफसरों की है। काम करवाने का उनका अपना तरीका है, जिसमें वे किसी का दखल बर्दाश्‍त नहीं करते हैं। ऐसे में सरकार ने चुनावी मौसम भी उन्‍हें जनसंपर्क विभाग में भेजा है तो इसका अर्थ है कि उन्‍हें कुछ विशेष कार्य कर दिखाना है। वैसे भी मनीष सिंह के सामने पत्रकारों व मीडिया संस्थानों से तालमेल बैठाने और सरकार की छवि उजली करने की चुनौती तो है ही।  

एएसपी मनीष खत्री बने एसपी, ऐसी कृपा सभी पर हो 

1996 बैचे के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मनीष खत्री को भिंड एसपी बनाने के आदेश जारी हुए तो प्रशासनिक जगत में हलचल हो गई। कई सालों बाद ऐसा हुआ है जब सरकार ने आईपीएस को नजरअंदाज कर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर को पुलिस अधीक्षक बनाते हुए जिले की कमान दी है। अफसर कारण तलाशने लगे हैं कि क्‍यों मनीष खत्री पर सरकार मेहरबान हुई है। 

अफसरों के इस तरह अचरज में पड़ने का कारण भी है। अतिरिक्‍त पुलिस अधीक्षक से पुलिस अधीक्षक बनाने के लिए सरकार ने करीब 32 अफसरों को नजरअंदाज किया है। इन अफसरों में 11 आईपीएस तो एआईजी प्रमोट हो चुके हैं लेकिन मैदानी पोस्टिंग का उनका इंतजार खत्‍म नहीं हुआ है। 

राज्‍य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी दो सालों से आईएएस और आईपीएस प्रमोट करने के लिए होने वाली बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस महीने यह बैठक होने वाली है। इस बैठक के बाद 33 अधिकारी आईएएस और 16 अधिकारी आईपीएस बन जाएंगे। मनीष खत्री को भी अभी आईपीएस अवार्ड होना बाकी है। ऐसे में राज्‍य प्रशासनिक सेवा के ही नहीं आईपीएस अफसर भी दुआ मांग रहे हैं कि उनकी किस्‍मत मनीष खत्री जैसी हो और आईपीएस अवार्ड होते ही उन्‍हें भी जिले की कमान मिल जाए। 

एक और प्रशासनिक सर्जरी जल्द, बदले जाएंगे विभागों के मुखिया 

मध्‍य प्रदेश में सरकार लगभग हर माह ही अफसरों का तबादला कर चुनावी जमावट कर रही है। अब एक बार फिर वरिष्‍ठ अफसरों के फेरबदल की तैयारी चर्चा में हैं। जल्‍द ही एक और प्रशासनिक सर्जरी होगी जिसमें संभागायुक्तों के साथ विभागों के मुखिया बदल जाएंगे। 

अफसरों के कामकाज में बदलाव के लिए बैठकों का दौर जारी है। इसबार सूची तैयार करते समय चुनावी जमावट का पूरा ख्‍याल रखा जा रहा है। ऐसे अफसरों का हटना तय है जिनका कार्यकाल तीन साल पूरे करने जा रहा है। इन अफसरों में इंदौर के कमिश्‍नर पवन शर्मा, रीवा के कमिश्‍नर अनिल सुचारी और उज्जैन के आयुक्त संदीप यादव प्रमुख हैं। इनके अलावा बीजेपी संगठन और मंत्रियों की ओर से मिली शिकायतों के आधार पर भी कुछ अफसरों को बदला जाएगा। इस फेरबदल में आईएएस और आईपीएस के रूप में पदोन्‍नत होने वाले राज्‍य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को भी मैदानी पोस्टिंग में भेजा जा सकता है।