दफ्तर दरबारी: क्या योगी की राह पर चलेंगे सीएम डॉ. मोहन यादव
MP News: लाउड स्पीकर्स पर प्रतिबंध सहित अपने शुरुआती फैसलों के कारण सीएम डॉ. मोहन यादव की तुलना यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से की गई थी। अब एक और मामले पर निगाहें टिकी हैं कि क्या डॉ. मोहन यादव भी योगी सरकार की राह चलेंगे?
बीजेपी की राजनीति में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलग तरह की पहचान बनाई है। कट्टर हिंदुत्व वाली यह छवि अन्य प्रदेशों की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्रियों के लिए एक तरह से पैमाना हो गई है। जो उस कट्टर छवि का पालन करते हैं वे योगी की उपमा पा जाते हैं। डॉ. मोहन यादव ने जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी तब ही उनके आक्रामक रवैये को देखते हुए उनकी तुलना योगी से की गई थी। उत्तर प्रदेश की तरह मध्य प्रदेश में भी पुलिस का नया मुखिया चुना जाना है तो सवाल है कि जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने डीजीपी बनाने के अपने नियम बना लिए है, उसी तरह क्या मोहन सरकार भी अपने नियम बनाएगी या पुरानी व्यवस्था को ही चलने देगी?
इस सप्ताह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट ने पुलिस महानिदेशक के चयन के लिए (उत्तर प्रदेश के पुलिस बल प्रमुख) चयन एवं नियुक्ति नियमावली 2024 को मंजूरी प्रदान कर दी। तय किया गया कि राज्य सरकार द्वारा बनाई गई समिति नया डीजीपी नियुक्त करेगी। मतलब अब यूपी में डीजीपी की नियुक्ति में केंद्र या यूपीएससी का सीधा दखल नहीं होगा। यह निर्णय 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वार दिए गए निर्णय एवं आदेश के अनुसार है जिसमें राज्य सरकारों से एक नवीन पुलिस अधिनियम बनाने की आशा की गई थी। कहा गया कि इससे पुलिस व्यवस्था को किसी भी दबाव से मुक्त रखा जा सकेगा। ऐसा करने वाला यूपी चौथा राज्य बन गया है।
मध्य प्रदेश में भी डीजीपी सुधीर कुमार सक्सेना नवंबर अंत में रिटायर हो रहे हैं। अब तक यह व्यवस्था है कि राज्य सरकार डीजीपी पद के सभी योग्य आईपीएस के नाम संघ लोकसेवा आयोग को भेजती है। आयोग संपूर्ण ट्रेक रिकार्ड, कार्य-व्यवहार आदि का आकलन कर तीन नामों का एक पैनल राज्य सरकार को भेजता है। जिनमें से एक अधिकारी पुलिस का मुखिया यानी पुलिस महानिदेशक चुन लिया जाता है।
मध्य प्रदेश ने इसी व्यवस्था के तहत योग्य आईपीएस का ब्योरा संघ लोक सेवा आयोग को भेज दिया है। आयोग छानबीन की प्रक्रिया के बाद उपयुक्त तीन नामों का पैनल एमपी सरकार को भेज देगा। प्रशासनिक जगत में जिज्ञासा यही है कि जिस तरह यूपी सरकार ने चुनाव के पहले डीजीपी नियुक्ति का अधिकार अपने पास रखने के लिए कानून बना लिया है, क्या मध्य प्रदेश सरकार भी ऐसा करेगी?
प्रदेश का नया डीजीपी चुना जाना है। लेकिन इस मामले में मोहन यादव सरकार के यूपी के सीएम योगी के नक्शे कदम पर चलने को लेकर असमंजस है। 30 नंवबर के पहले नया डीजीपी चुनने की प्रक्रिया के तहत प्रदेश सरकार ने यूपीएससी को पैनल भेज दिया है। अब वहां से तीन नामों का पैनल आने पर एक आईपीएस की नियुक्ति की जा सकेगी। यदि सीएम योगी के नक्शेकदम पर चलना है तो एमपी सरकार को भी कैबिनेट में नया प्रस्ताव पारित करना होगा। यह प्रक्रिया अभी दिखाई नहीं दे रही है। इसलिए कहा जा सकता है कि डॉ. मोहन यादव कम से कम इस मामले में तो योगी की बराबरी नहीं करने वाले हैं।
आईएएस वीरा राणा जैसी नहीं हो किस्मत
जीवन भी कैसा धूप-छांह वाला है कि जिसकी किस्मत को देख कर कभी रश्क किया जा रहा था, उसके जैसे नसीब से अब बचने की प्रार्थना की जा रही है। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव आईएएस वीरा राणा की। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले जब मुख्य सचिव के चयन को लेकर ऊहापोह था तब चुनाव आयोग ने वीरा राणा को वरिष्ठता के आधार पर मुख्य सचिव बनाया था। उसके बाद माना गया कि नई सरकार अपनी पसंद के अधिकारी को मुख्य सचिव बनाएगी लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सीएस वीरा राणा के साथ ही काम करना उचित समझा। सीएम डॉ. मोहन यादव और मुख्य सचिव वीरा राणा की ऐसी जुगलबंदी हुई कि रिटायर होने के बाद वीरा राणा को छह माह की सेवावृद्धि दी गई।
छह माह की अवधि के बाद उन्हें और सेवावृद्धि नहीं मिली तो तय माना जा रहा था कि उन्हें राज्य निर्वाचन आयोग में आयुक्त बनाया जाएगा। परंपरानुसार रिटायर होने के बाद मुख्य सचिव को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जाता है। पूर्व मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह को भी राज्य निर्वाचन आयुक्त की बनाया गया था। उनका कार्यकाल 30 जून को खत्म हुआ और सरकार ने उन्हें अगला आदेश जारी होने तक सेवावृद्धि दी थी। इसीलिए यह संदेश गया कि बीपी सिंह को सीएस वीरा राणा के रिटायर होने तक पद पर बनाए रखा जा रहा है। ताकि रिटायर होते ही वीरा राणा का पुनर्वास हो सके।
1988 बैच की आईएएस वीरा राणा 30 सितंबर को रिटायर हो गई लेकिन उन्हें नया पद नहीं दिया गया। उनके लिए कुर्सी सजी हुई मानी गई थी लेकिन पद मिला ही नहीं। इसे उनकी किस्मत का खेल बताया जा रहा है।
मुख्य सचिव पद के दावेदार ऐसे कई अफसर हैं जिन्हें पहले वीरा राणा की किस्म से ईर्ष्या हुई थी और अब जब उनका पुनर्वास नहीं हो रहा है तब वे ही अफसर दुआ मांग रहे हैं कि उनकी किस्मत वीरा राणा जैसी न हो। इन अधिकारियों में वे आईएएस शामिल हैं जो रिटायर हो गए हैं या होने वाले और अपने पुनर्वास की कोशिशों में जुटे हैं। ऐसे अफसरों में कुछ पहले रिटायर हुए आईएएस पंकज राग, वर्तमान एसीएस मलय श्रीवास्तव, एसएन मिश्रा, विनोद कुमार आदि शामिल हैं। एसीएस मलय श्रीवास्तव नवंबर में रिटायर होंगे। एमपी में पदस्थ एसीएस एसएन मिश्रा जनवरी में रिटायर्ड होने वाले हैं। एसीएस रैंक की अन्य अधिकारी अजीत केसरी का रिटायरमेंट फरवरी में है तो विनोद कुमार मई में सेवानिवृत हो जाएंगे। मोहम्मद सुलेमान जुलाई में सेवानिवृत हो रहे हैं। वर्तमान मुख्य सचिव अनुराग जैन अगस्त में और एसीएस जेएन कंसोटिया अगस्त में रिटायर्ड हो रहे हैं।
रिटायरमेंट के किनारे पर बैठे इन सभी अधिकारियों को पुनर्वास की उम्मीद है और कोशिशों में लगे हैं कि उपयुक्त पद पर नियुक्ति हो जाए। हालांकि, पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस का भी पुनर्वास नहीं हुआ है। आधा दर्जन और अधिकारियों के रिटायर होने के बाद स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली हो जाएगी।
हाथी की मौत और वन अफसरों की बल्ले बल्ले
उमरिया के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दस जंगली हाथियों की मौत वन विभाग ही नहीं मध्य प्रदेश के लिए कलंक का विषय है लेकिन ऐसा लगता है कि वन विभाग ने इस घटना से कोई सबक नहीं लिया। दस हाथियों की मौत का कारण अब भी पूरी तरह साफ नहीं है। शुरुआती जांच में पता चला है कि जंगल में उगा कोदो जैसा मोटा अनाज खाने से हाथी की मौत हुई है।
अभी हाथियों की मौत का कारण चाहे जो हो लेकिन हाथी जैसे बड़े और आक्रामक वन्य प्राणियों को संभालने में मध्य प्रदेश की लापरवाही उजागर हो गई है। पूरे प्रदेश को कलंकित करने वाली इस लापरवाही पर सख्त एक्शन दरकार थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सीएम डॉ. मोहन यादव ने रिव्यू मीटिंग के बाद बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर गौरव चौधरी और एसडीओ फते सिंह निनामा को सस्पेंड कर दिया गया। फील्ड डायरेक्टर गौरव चौधरी हाथियों की मौत के पहले छुट्टी पर गए थे। जब उन्हें इस मामले की जानकारी अधिकारियों द्वारा दी गई तो वह वापस नहीं लौटे और फोन भी बंद कर लिया। सहायक वन संरक्षक फते सिंह निनामा को जांच रिपोर्ट में लापारवाही बरतने के चलते निलंबित किया गया है।
ये दो निलंबन तो तात्कालिक लापरवाही के लिए है लेकिन उस लापरवाही का क्या जिसके कारण उमरिया में रूके हाथियों का उपयुक्त प्रबंधन नहीं हो सका। इस लापरवाही के लिए तो वन विभाग में आमूलचूल बदलाव हो जाना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बल्कि अफसरों को हाथी संरक्षण के नाम पर पर्यटन का मौका मिल गया। कोई टास्क फोर्स के बहाने तो कोई अध्ययन के लिए कर्नाटक, केरल, असम आदि राज्यों में जाने के बहाने पर्यटन के अवसर देख रहा है।
इन लापरवाहियों से इतर भी विभाग की भर्राशाही पर लगाम नहीं लग पा रही है क्योंकि विभाग में कई स्तरों पर भ्रष्टाचार है। विभाग में भ्रष्टाचार का यह खुलासा रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी आजाद सिंह डबास ने किया है। उनका आरोप है कि वन विभाग में पैसे से पोस्टिंग हुई है और जब इस तरह पद बांटें जाएंगे तो किसी को डर क्यों होगा?
अब बदलेंगे जायेंगे आईएएस
मध्यप्रदेश में प्रशासनिक फेरबदल की आहट सुनाई देने लगी है। सीएस अनुराग जैन को पद संभाले एक माह हो गया है। इस दौरान में सभी विभागों की समीक्षा कर चुके हैं। मुख्य सचिव अनुराग जैन के कमान संभालने के बाद से ही ये माना जा रहा है कि प्रदेश में नई प्रशासनिक टीम तैयार होगी। ऐसी टीम जो मुख्य मंत्री डॉ. मोहन यादव और सीएस अनुराग जैन के इरादों के अनुरूप काम करेगी।
मैदानी पोस्टिंग के अलावा मंत्रालय में भी विभाग प्रमुखों के पदों पर फेरबदल होना है। एसीएस स्तर के कुछ अधिकारी रिटायर हो रहे हैं। वहीं, कुछ अधिकारियों के पास दो से ज्यादा प्रमुख विभागों का जिम्मा है। ऐसे में अगले कुछ दिनों में नए सिरे से जमावट के आसार हैं। प्रशासनिक तैयारियों के अंदाज से माना जा रहा है कि इस माह में ही तबादला सूची जारी कर अधिकारियों को नई पदस्थापना दे दी जाएगी। मनचाही पदस्थापना पाने के लिए अधिकारी भी अपने-अपने स्तर पर जुगत में लग गए हैं।