जी भाईसाहब जी: बीजेपी की नई लाइन में पुराने दरकिनार, अब किस मंत्री की बारी

MP New CM: विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद अब बुधवार को उज्‍जैन से विधायक मोहन यादव मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेंगे। मुख्‍यमंत्री के दावेदार नेताओं के समर्थक अब तक समझ नहीं पाए हैं कि एमपी बीजेपी में यह हो क्‍या गया है।  बीजेपी की नई लाइन में पुरानी लीडरशिप दरकिनार कर दी गई है। इस निर्णय से मंत्री पद के दावेदार डर में हैं कि अब उनकी बारी है।

Updated: Dec 12, 2023, 07:44 PM IST

शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय
शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय

बीजेपी विधायक दल की बैठक में जब सोमवार को मोहन यादव का नाम नेता के रूप में पुकारा गया तो सहसा किसी को यकीन नहीं हुआ। मंच पर मौजूद सभी बड़े नेता चौंक गए कि क्‍या पर्यवेक्षक के रूप में आए हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सही नाम पुकारा है। खुद मोहन यादव भी पीछे की पंक्ति में बैठे रहे। तब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने मंत्रिमंडल के उच्‍च शिक्षा मंत्री मोहन यादव से कहा कि उठ कर मंच पर आ जाओ। आलम यह था कि जब यह खबर बैठक स्‍थल के बाहर अपने नेता के लिए नारे लगा रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं तक पहुंची तो वे भी सकते में आ गए। देर तक किसी ने कोई नारा ही नहीं लगाया। जब माजरा समझा गया तब जा कर मोहन यादव के पक्ष में माहौल बनना शुरू हुआ। 

विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद अब बुधवार को उज्‍जैन से विधायक मोहन यादव मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेंगे। इस अवधि में वे प्रदेश बीजेपी के बड़े नेताओं से मिल रहे हैं। सोशल मीडिया में कई तरह के मिम्‍स चल रहे हैं। मुख्‍यमंत्री के दावेदार नेताओं के समर्थक अब तक समझ नहीं पाए हैं कि एमपी बीजेपी में यह हो क्‍या गया है।                            

पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने चौंकाने वाले फैसलों की परंपरा जारी रखी और अब मोहन यादव नए सीएम चुने गए हैं। इस फैसले का अर्थ यही नहीं है कि भारी बहुत में पार्टी की वापसी के बाद भी मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विदाई हो गई है। इसका एक अर्थ यह भी है कि मध्‍यप्रदेश बीजेपी की राजनीतिक प्रयोगशाला में एक और प्रयोग किया गया है। तीसरी बार विधायक चुने गए मोहन यादव को विधायक दल का मुखिया चुन कर बीजेपी ने पुराने नेताओं को पीछे धकेल कर नई लीडरशिप आगे कर दी है। युवा नेताओं को नेतृत्‍व की कमान देने की शुरुआत प्रदेश अध्‍यक्ष के रूप में सांसद वीडी शर्मा की नियुक्ति कर की गई थी। युवा नेताओं को आगे लाने के क्रम में अब मुख्‍यमंत्री पद की बारी है। इसे संगठन के नवीनीकरण की प्रक्रिया कहा जा सकता है। 

पार्टी की इस नई लाइन का मुख्य चेहरा बने मोहन यादव के लिए भी नई लाइन को पूर्ववर्ती सीएम शिवराज सिंह से बड़ी लाइन खींचनी होगी। उनकी पहली चुनौती मंत्रिमंडल गठन नहीं है क्‍योंकि सभी जानते हैं कि कैबिनेट के सदस्‍यों को भी दिल्‍ली ही तय करेगी और जब सरकार पर दिल्‍ली का यूं नियंत्रण होगा तो मुखिया का काम केवल बेहतर क्रियान्‍वयन का होगा। शिवराज सरकार की योजनाओं और आगामी नीतियों के क्रियान्‍वयन का कार्य ब्यूरोक्रेसी के मार्फत होगा इसलिए मोहन यादव का कौशल ब्‍यूरोक्रेसी को साधने में दिखाई देगा। उनकी असली चुनौती शिव ‘राज’ की  छाया से बाहर निकल कर अर्थव्यवस्था को संभालना होगी।

अब बुंदेलखंड-महाकौशल को मंत्रिमंडल से आस 

मुख्‍यमंत्री के चयन को लेकर बीजेपी नेतृत्‍व के निर्णय से सब भले ही चौंके हों लेकिन मंत्री पद के दावेदार नेता डर में हैं। जब जातीय, क्षेत्रीय, वरिष्‍ठता जैसे पैमानों के सारे दावेदार को किनारे कर मुख्‍यमंत्री के रूप में नया चेहरा चुना जा सकता है तो मुख्‍यमंत्री की कैबिनेट का रूप कैसा होगा यह समझा जा सकता है। 

ओबीसी सीएम मोहन यादव, ब्राह्मण और दलित डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्‍ला व जगदीश देवड़ा तथा ठाकुर विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का चयन कर बीजेपी ने जातीय संतुलन कायम करने की कोशिश की है। इस जातीय संतुलन थोड़ा क्षेत्रीय समीकरण गड़बड़ा गया है। मोहन यादव और जगदीश देवड़ा मालवा से है। मालवा में भी एक ही संभाग उज्‍जैन से हैं। जबकि राजेंद्र शुक्‍ल विंध्‍य से हैं। नरेंद्र सिंह तोमर ग्‍वालियर चंबल क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं। इस गणित में अभी महाकौशल और बुंदेलखंड खाली हाथ हैं। 

कैबिनेट गठन के कयासों के बीच मंत्री बनने के इच्छुक मालवा के नेता मायूस हैं क्‍योंकि दो बड़े पद तो पहले ही चले गए हैं। जबकि बुंदेलखंड और महाकौशल के नेताओं को ज्यादा जगह मिलने की उम्मीद है। पिछली सरकार में सबसे ज्यादा मंत्री बुंदेलखंड से थे। इसबार भी इस अंचल से सबसे सीनियर विधायक गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, शैलेंद्र जैन, प्रदीप लारिया, बृजेंद्र प्रताप सिंह, हरिशंकर खटीक, अनिल जैन मंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। 

महाकौशल के नेता पिछली सरकार में भी कम प्रतिनिधित्‍व से खुल कर नाराजगी जता चुके हैं। इसबार महाकौशल के केंद्र जबलपुर की 8 में से 7 सीटों पर बीजेपी के जीत मिली है। ऐसे में महाकौशल से पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष राकेश सिंह के साथ राव उदय प्रताप सिंह, अजय विश्नोई, अशोक रोहाणी, ओमप्रकाश धुर्वे, संजय पाठक, प्रणय पांडेय, दिनेश राय मुनमुन जैसे चेहरे प्रमुख हैं। 

इनके अलावा विंध्‍य, मध्‍य, मालवा से भी वरिष्‍ठ नेताओं की लंबी सूची है। पार्टी की महिला विधायक निर्मला भूरिया, कृष्‍णा गौर, अर्चना चिटनीस, मालिनी गौड़, संपत्तियां उईके, ललिता यादव भी मंत्री पद की दौड़ में हैं।  इन सब चेहरों के अलावा ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया खेमे के विधायक भी हैं जिन्‍हें पिछली सरकार में प्राथमिकता देकर मंत्री बनाया गया था। कयास हैं कि वरिष्‍ठ नेताओं को किनारे कर नए चेहरों को मंत्री पद से नवाजा जा सकता है।

सीएम की शपथ से पहले ही शब्दों का तीर चलाया

विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद उज्‍जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव के अतीत, रूख और स्‍वभाव को टटोला जा रहा है। सोशल मीडिया पर उनके कई मिम्‍स और फोटो के साथ तंज व टिप्‍पणियां वायरल हुए। बीजेपी के नेता तथा अफसर भी नए मुख्‍यमंत्री के स्‍वभाव की टोह लेने में लगे रहे। उनके हर कदम से उनकी योजना को समझा जा रहा है।

मुख्‍यमंत्री की शपथ के पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ से जहां मोहन यादव से मुलाकात की वहीं मोहन यादव ने बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता उमा भारती, नरोत्‍तम मिश्रा आदि से मुलाकात की। उनका यह कदम राजनीति वरिष्‍ठता के साथ समन्‍वय साधने का जतन है लेकिन जिनके लिए मोहन यादव का सीएम बनना सदमा है उनके लिए मोहन यादव का पहला ट्वीट भी एक झटका है। 

मंगलवार को सुबह सुबह मोहन यादव ने अपने एक्‍स अकाउंट पर एक सूक्ति पोस्‍ट की। इसमें उन्होंने लिखा है, ‘प्रेम या सम्मान का भाव सिर्फ उन्हीं के प्रति रखिए जो आपके "मन" की भावनाओं को समझते हो... कहते हैं कि जलो वहां जहां जरूरत हो, उजालों में चिरागों के मायने नहीं होते।’

इस एक कथन के कई अर्थ हैं। हर व्‍यक्ति अपनी-अपनी तरह से इसकी व्याख्‍या कर रहा है। समझा जाए तो यह कथन शब्‍दों का तीर है जिससे वे घायल हुए हैं जो मोहन यादव के साथ तालमेल में खुद को असहज पाते हैं। 

कांग्रेस में वर्तमान नेतृत्व पर भरोसा 

बीजेपी ने बदलाव का बड़ा चक्र घुमाया वहीं कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव तक वर्तमान नेतृत्व पर भरोसा जताया है। यह भरोसा 2024 के लिए बड़ा टास्क है। सीटों के मामले में मध्‍य प्रदेश में भले ही बीजेपी ने कांग्रेस को बहुत पीछे धकेल दिया है लेकिन वोट पाने के मामले में कांग्रेस खुद से कम पिछड़ी है। 

आकलन बताते हैं कि चार राज्यों में विधानसभा चुनाव 2023 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में कांग्रेस का वोट शेयर 40 प्रतिशत रहा है। ये लगभग उतना ही है जितना 2018 में था। मध्य प्रदेश का आकलन करें तो बीजेपी को 2018 में 41.02 प्रतिशत वोट मिले थे जो 2023 में बढ़कर 48.55 प्रतिशत तक पहुंच गए जबकि कांग्रेस के वोट शेयर में मामूली गिरावट हुई है। 2018 में कांग्रेस को 40.89 फ़ीसदी वोट मिले थे। 2023 में उसे 40.40 प्रतिशत वोट मिले। 

लोकसभा चुनाव में यह अंतर बढ़ गया था। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2018 में वोट शेयर का अंतर 0.13 प्रतिशत था, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़ कर 23.46 प्रतिशत हो गया था। 

कांग्रेस नेतृत्‍व के लिए वोट शेयर के इस अंतर को पाटना सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती पर कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता पी. चिदंबरम की राय महत्‍वपूर्ण है। एक लेख में उन्‍होंने लिखा है कि फिलहाल हवा बीजेपी के पक्ष में है, लेकिन कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनावों तक इस फर्क को पाट पाना मुश्किल नहीं है। मध्य प्रदेश बीजेपी की गहरी पैठ है और यह हिंदुत्व की प्रयोगशाला है। यहां बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस को संगठन के स्तर पर काफी मशक्कत करनी थी जो हो नहीं पाई। बीजेपी ने यहां केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को उतारकर बड़ा दांव खेला। बीजेपी को अपने निवेश का नतीजा भी मिला। 

यानी यदि केंद्रीय संगठन ने वर्तमान नेतृत्‍व पर भरोसा जताया है कि विधानसभा चुनाव के उत्‍साह को बरकरार रख कर प्रादेशिक संगठन लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। यूं भी बीजेपी ने पिछले चुनाव में 29 में से 28 सीट जीती थी। यदि कांग्रेस एकजुटता से कोशिश करे तो यह आंकड़ा बढ़ सकता है।