समाज को तर्कपूर्ण बना पाना ही बाबा साहेब को असली श्रद्धांजलि

आज बाबा साहेब की 129 वीं जयंती पर सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम भारतीय समाज को मानसिक रूप से वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण बनाएं।

Publish: Apr 14, 2020, 03:12 PM IST

आज कोरोना वायरस की महामारी के बीच में हम बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 129 वीं जयंती मना रहे हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को हम उनके चरित्र के विभिन्न आयामों के लिए याद करते हैं जैसे संविधान रचयिता, राजनयिक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक, रूढ़िवाद के विरुद्ध लड़ने वाला। आज इस संकट के समय में बाबा साहेब के विचारों का अवलोकन करने की बहुत आवश्यकता है।

कोरोना महामारी के बीच जो सबसे पहली चुनौती उत्पन्न हुई वो थी समाज में अंधविश्वास और भ्रामक जानकारी। सूचना क्रांति के इस युग में हर खबर का प्रसार बेहद आसान है और झूठी मिथ्या खबरें आग की तरह फैलती है।

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इसलिए, जब कोरोना की दस्तक देश मे सुनाई दी तो कुछ लोगों ने बताया कि इसका इलाज गौ मूत्र और गाय का गोबर है। उन्होंने इसके लिए इस बकायदा एक पार्टी का आयोजन तक किया। कुछ लोगों ने दैवीय शक्तियों को प्रसन्न करना प्रारंभ कर दिया। उनका कहना था इससे हम दोष मुक्त हो जाएंगे और कोरोना डर कर भाग जाएगा। कुछ ने कहा कि कोरोना का डर खुदा की इबादत करने से रोकने की साजिश है। 5 बार नमाज पढो सब ठीक हो जाएगा। बड़े-बड़े नेताओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मध्यप्रदेश के एक नेता ने कोरोना को डरोना बता दिया। एक ने कहा दिया कि कोरोना इसलिए फैल रहा है क्योंकि लोगो ने दीये नहीं जलाए। इससे पहले एक केंद्रीय मंत्री ने तो 'गो कोरोना गो' नाम से एक प्रोटेस्ट भी रख लिया था। उनका मानना था कि इससे कोरोना को भगाने में मदद मिलेगी। देश के बेहद समृद्ध लोगों की यह स्थिति है। भारत की गरीब-अनपढ़ जनता के लिए व‍ह एक महामारी के प्रति कैसी सोच रखता होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत जहाँ करोड़ों लोग अपने आप को जीवित रखने के लिए ही संघर्षरत है उनके लिए कोरोना डर भय के अलावा और क्या लाया होगा?

बाबा साहेब भारतीय समाज की इन चुनौतियों और धारणाओं को बेहद अच्छे से समझते थे। बल्कि उनका पूरा जीवन इन धारणाओं से लड़ने में बीत गया। एक समाज जो यह समझता हो कि एक मानव दूसरे मानव को छूने भर से या उसकी छाया तक से अशुद्ध हो जाएगा उसको कोरोना समझाना बेहद जटिल हो सकता है। 

कोरोना के डर भय से उत्पन्न अवधारणाओं ने भारतीय समाज में फिर मानसिक असुरक्षा का एहसास करा दिया है। इसीलिए बड़ी आसानी से भारतीय मीडिया ने कोरोना का सारा दोष तबलीगी जमात पर मढ़ दिया। उसके बाद कोरोना के साम्प्रदायिकरण का नया खेल प्रारंभ हो गया।

बाबा साहेब ने हमेशा विश्वास और तर्क के बीच एक रेखा खींची। उन्होंने कहा कि किसी बात पर केवल इसलिए विश्वास न कर लो कि वो किसी आसमानी ताकत ने कही है, या ऐसा होता आया है या किसी प्रभावशाली व्यक्ति का विचार है, उसे हमेशा अपने तर्क पर तोलो और जब स्वयं को संतुष्ट कर लो तभी उसका अंगीकार करो। बाबा साहेब तो खुद के कहे को भी आंख बंद कर मानने के लिए मना करते थे।

तर्क सवाल उत्पन्न करता है और विश्वास स्वीकार्यता को बढ़ाता है। एक तर्क पूर्ण समाज चुनौतियों से उत्पन्न प्रश्नों का हल ढूंढता है। इसीलिए बाबा साहेब ने संविधान में मौलिक कर्तव्यों में जोड़ा कि

'हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें'।

कोरोना महामारी से उत्पन्न इस संकट के समय हमारे पास मौका है कि हम पूरे देश को तर्कपूर्ण वैज्ञानिक सोच के लिए प्रेरित कर सकते है, लेकिन भारतीय राजनीति के सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोग तो स्वयं ही कोरोना में विश्वास की मशाल थमाने में व्यस्त है।

आज बाबा साहेब की 129 वीं जयंती पर सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम भारतीय समाज को मानसिक रूप से वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण बनाएं।