जी भाईसाहब जी: मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खिलाफ साजिश के समीकरण
MP Election 2023: सत्ता संघर्ष के घमासान के बीच बीजेपी के साफ सुथरी छवि वाले नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर दाग लगाए जा रहे हैं। सब तरफ जिज्ञासा यही है कि यदि यह साजिश है तो कौन है जो यह साजिश रच रहा है और इस साजिश का राजनीतिक समीकरण क्या हैं?

बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के कद और कौशल को देख कर चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया था। उस वक्त लगा कि तोमर की प्रदेश संगठन में इस भूमिका से पार्टी मैदान में ताकतवर होगी। मगर चुनाव के अंत तक आते-आते मंत्री तोमर की छवि धूमिल करने के प्रयास हो गए।
इनदिनों यह खबर भूचाल लाए हुए है कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का बेटा करोड़ों की डील कर रहा है। एक वीडियो वायरल हुआ तो इसे फर्जी बताते हुए एफआईआर हुई। एफआईआर तो झट से हो गई मगर जांच अब तक नहीं हुई। इसबीच बीजेपी की ओर से मोर्चा संभालते हुए केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने सवाल उठाया कि वीडियो की सच्चाई का कोई सबूत नहीं है।
बीजेपी ने सबूत मांगे तो अब सबूत भी आ गया। स्वयं को कनाडा का कारोबारी बता रहे एक व्यक्ति ने वीडियो वायरल कहा कि तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह ने 500 करोड़ नहीं दस हजार करोड़ की डील हुई है। इसके बाद से मंत्री तोमर तो ठीक बीजेपी भी असहज हो गई है।
चुनाव के ठीक पहले इस घटनाक्रम पर कांग्रेस की भूमिका केवल जांच करवाने के बयान तथा घोटालों के आरोप लगाने तक ही सीमित है लेकिन जिस तरह से तोमर की घेराबंदी हो रही है उससे सभी की जिज्ञासा बढ़ गई है कि इस मामले को हवा कौन दे रहा है? सामान्य सा आकलन है कि यह काम विपक्ष से ज्यादा बीजेपी के अपनों का लगता है। इसकी वजह बीजेपी की अंदरूनी राजनीति को माना जा रहा है।
देखा जाए तो यह पूरा प्रकरण बीजेपी की राजनीति की दिशा और दशा तय करेगा। इसके पीछे चुनाव के बाद के समीकरण भी हैं। तोमर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के कद्दावर नेता ही नहीं साफ छवि वाले नेता भी है। मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीजेपी के सभी नेताओं में वे इकलौते थे जिन पर कोई दाग नहीं थे। लेकिन अब उन पर दाग लग गया है।
यूं भी समय-समय पर जब भी नेतृत्व परिवर्तन की बात होती है तो सर्वमान्य और बेहतर छवि वाले नेता के रूप में तोमर का नाम ही प्रमुखता से आता है। ऐसे में यह शक बेवजह नहीं है कि तोमर पर लगे आरोप के पीछे बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में लाभ का कोण है।
उत्सव नहीं उत्थान की दरकार
15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती है। मध्य प्रदेश के चुनाव के हिसाब से यह दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि इसदिन 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल से जनजातीय गौरव दिवस मनाने की शुरुआत की थी। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड में बिरसा मुंडा की जन्मस्थली पर पहुंचे हैं। एक उत्सवी कार्यक्रम में आदिवासियों को लुभाने के लिए वादे हुए, घोषणाएं हुई, योजनाओं को शुरुआत हुई लेकिन आदिवासी उत्थान की दशा वैसी ही बनी हुई है।
बिरसा मुंडा 121 वें शहादत दिवस पर आई एक खबर आदिवासियों के उत्थान की हकीकत बताने को काफी है। इस खबर में सब्जी बेचती एक युवती का फोटो था। वह युवती जौनी कुमारी मुंडा है जो शहीद बिरसा मुंडा की पड़पौत्री है। स्नातक की पढ़ाई कर रही जौनी कुमारी सब्जी बेचने को मजबूर है। वह बिरसा मुंडा से अपना रिश्ता बताने भी शरमाती है। खबर प्रकाशित होने तक उन्हें आदिवासियों के लिए बनी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा था। छात्रवृत्ति भी नहीं। मतलब जिसकी पूजा की जा रही है उसके परिवार को पूछा भी नहीं जा रहा है।
जब बिरसा मुंडा के परिजन की यह हालात हो सकती है तो जल, जंगल और जमीन के लिए संघर्ष करने वाले आम आदिवासियों की दशा समझी जा सकती है। जनजातीय गौरव दिवस राजनीतिक आयोजन हो सकता है, बिरसा मुंडा और टंट्य मामा भील की प्रतिमाएं लग सकती हैं, स्मारक बनाए जा सकते हैं, आदिवासी को सर्वोच्च पद दिया जा सकता है मगर आम आदिवासियों के हक हकूक सवाल अधूरे छोड़ दिए जाते हैं। जैसे, रीवा पेशाब कांड के पीडि़त आदिवासी के चरण धो दिए गए लेकिन फिर उसकी कोई सुध नहीं ली गई। उत्सव और दिवस आयोजन शोभादायक हो सकते हैं मगर आदिवासियों के उत्थान की पहल सबसे ज्यादा जरूरी है।
चुनाव आखरी चरण में वायरल वीडियो का दांव
मध्य प्रदेश में नई सरकार चुनने के लिए 17 नवंबर को मतदान होगा और इसके लिए प्रचार आज शाम थम जाएगा। अंतिम चरण में जहां प्रचार चरम पर पहुंचा है वहीं झूठे-सच्चे वीडियो वायरल कर राजनीतिक पटकनी देने के दांव आजमाए जा रहे हैं।
सतना के नागौद से बीजेपी प्रत्याशी नागेंद्र सिंह के छोटे भाई छत्रपाल का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे कहते दिखाई रहे हैं कि सही गलत करके आने वालो की मदद करता हूं। हत्या और रेप करके आने वालों को कानून से बचाया। ये सम्मान की लड़ाई है। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा हार जाऊंगा पर आप लोग क्या करोगे?
हाशिए पर डाल दी गई बीजेपी के कद्दावर नेता उमा भारती का भी पुराना वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे बीजेपी द्वारा लोधी समाज की उपेक्षा पर नाराज दिखाई दे रही है। मंदसौर गोली कांड वीडियो वायरल हुआ है जिसमें किसानों पर सरकार ने सख्ती करते हुए गोलियां चलवा दी थी। भोपाल उत्तर से कांग्रेस प्रत्याशी आतिफ अकील का भाई के साथ हाथापाई का वीडियो वायरल हुआ। इसमें उनके पिता और विधायक आरिफ अकील व अन्य परिजन भी दिखाई दे रहे हैं।
इन वीडियो के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बयानों को भी विवादित बनाते हुए वायरल किया गया। कई स्थानों पर प्रत्याशियों के फोटो, ऑडियो, वीडियो को संपादित कर उनकी छवि बिगाड़ने के लिए क्षेत्र में वायरल किए जा रहे हैं। हालांकि, रियलिटी चेक में ऐसे कई वीडियो व ऑडियो गलत और एडिटेड साबित हुए हैं। खुद का चेहरा चमकाने की प्रचार नीति का ही एक हिस्सा है ये वायरल होते नए-पुराने, झूठे-सच्चे वीडियो ताकि विपक्षी प्रत्याशी को मात दी जा सके।
मतदान कम तो कुर्सी गई समझो
लगभग आधा प्रतिशत वोट ज्यादा पाने के बाद भी 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सीट के मामले में कांग्रेस से पिछड़ गई थी। कांग्रेस ने 114 तो बीजेपी ने 109 सीट हासिल की थी। ज्यादा वोट के बाद भी सीटों के मामले में पिछड़ने वाली बीजेपी की कोशिश है कि इस बार ऐसे समीकरण न बने। उसने नेताओं को समझा दिया है कि वोट पर नजर रखो, वरना मतदान प्रतिशत गिरा तो कुर्सी का जाना तय समझो।
अबकी बार 200 पार के नारे से कदम पीछे ले चुकी बीजेपी 51 फीसदी वोट शेयर के लक्ष्य पर नजरे गढ़ाए हुए हैं। पिछले सबक को पन्ना प्रमुख तक को लक्ष्य दे दिया गया है कि 17 नवंबर को सबसे पहले खुद और परिवार को मतदान करवाए। फिर मोहल्ले के पांच लोगों को मतदान करवाए। यह लक्ष्य 12 बजे तक पूरा कर लेना है। इसका कारण वह आकलन है जो बता रहा है कि अबकी बार वोट प्रतिशत गिर गया तो सत्ता संकट टल नहीं पाएगा।
अब कार्यकर्ता कैसे इस काम में जुट जाए यह तय करने के लिए बीजेपी ने सबसे पहले अपने सभी बड़े नेताओं को सड़क पर उतार कर मतदाता पर्चियां बांटने का काम दिया ताकि उनके प्रभाव से कार्यकर्ता भी सक्रिय हो जाएं।
पार्टी नेतृत्व जानता है कि वोटर ही नहीं कार्यकर्ता भी बीजेपी नेताओं, विधायकों से खासा नाराज है। इस नाराजगी के कारण मतदान कम होना तय है। 2018 में 75 फीसदी मतदान हुआ था। कार्यकर्ताओं व मतदाताओं की उदासीनता भारी न पड़े इसलिए व्यक्ति मत देखो, पार्टी देखो के नारे के साथ वोट प्रतिशत बरकरार रखने के जतन किए जा रहे हैं।