जी भाईसाहब जी: एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई
Election 2024: दलित राजनीति में कांग्रेस का युवा चेहरा बन उभरे देवाशीष जरारिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर बीएसपी का दामन थाम लिया है। इस दल बदल से उन्हें क्या हासिल होगा इस आकलन के बीच दूसरी पार्टी में मिलने वाले सम्मान पर तंज करता हुआ एक वीडियो वायरल हुआ। पहले चरण के प्रचार का शोर थमने के बाद भी लोग रौनक-ए- महफिल को खोज रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए बीजेपी का मिशन न्यू जाइनिंग चालू हैं। इस क्रम में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के दो नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी जरूर लेकिन वे बीजेपी में नहीं गए बल्कि बीएसपी में शामिल हो गए। बीएसपी ने युवा दलित नेता देवाशीष जरारिया, कल्याण सिंह कंसाना और बीजेपी से छोड़ने वाले व्यापारी रमेश गर्ग के पार्टी में आते ही टिकट भी दे दिया। अब सवाल यह है कि इन नेताओं के आने से बीएसपी का प्रदर्शन कितना सुधरेगा और इन नेताओं के लिए यह निर्णय ‘आसमान से टपके खजूर में अटके’ की तरह तो नहीं हो जाएगा?
मध्यप्रदेश की दलित राजनीति में कांग्रेस का युवा चेहरा बन उभरे देवाशीष जरारिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर बीएसपी का दामन थाम लिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भिंड से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे देवाशीष जरारिया ने बुधवार की सुबह कांग्रेस छोड़ दी। उन्हें बीएसपी ने भिंड से टिकट दे दिया। पार्टी ने कांग्रेस छोड़ कर कल्याण सिंह कंसाना को ग्वालियर से तथा बीजेपी से बगावत करने वाले व्यापारी रमेश गर्ग को टिकट दिया है।
इस टिकट वितरण से साफ है कि बीएसपी स्वयं का जनाधार मजबूत करने या अपने कोर वोट बैंक को साथ रखने के लिए नहीं चुनाव नहीं लड़ रही है। वह दूसरे दलों की रणनीति के अनुसार टिकट देती है ताकि वोट काट कर किसी की जीत और किसी की हार का कारण बने। मुद्दा बीएसपी के नए सदस्यों की राजनीति का है। कल्याण सिंह कंसाना और रमेश गर्ग से अधिक चमकीला और उभरता हुआ चेहरा देवाशीष जरारिया हैं। देवाशीष ने इस्तीफा देने के साथ ही कांग्रेस पर कई आरोप लगाए हैं। उनका मानना है कि कांग्रेस में उनकी राजनीतिक हत्या हो रही थी लेकिन सवाल यह है कि अन्य मोर्चों पर चाहे जो स्थिति हो क्या बीएसपी में जा कर उन्होंने अपनी राजनीतिक आत्महत्या की तैयारी नहीं कर ली है?
इसे यूं समझना चाहिए कि वे कांग्रेस में रहते तो अपनी टीम और अपने कोर वोटरों के विश्वस्त बने रहते। अब बसपा में जाने के बाद देवाशीष भिंड का मुकाबला त्रिकोणीय बना देंगे। इससे कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह बरैया की मुश्किलें बढ़ेंगी और बीजेपी को राहत मिलेगी। यूं भी बरैया के मुद्दे पर बीएसपी और देवाशीष का साथ दुश्मन का दुश्मन दोस्त जैसी बात है। असल में देवाशीष भिंड से टिकट मांग रहे थे और जब कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता फूलसिंह बरैया पर भरोसा दिखाया तो देवाशीष बिफर गए। फूलसिंह बरैया कभी बहुजन समाज पार्टी का चेहरा हुआ करते थे लेकिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था। यही कारण है कि फूलसिंह बरैया की राह में कांटें बिछाने के लिए बीएसपी और देवाशीष एक हो गए हैं।
संभव है कि अपने उद्देश्य में वे कामयाब भी हो जाएं लेकिन बीएसपी में जाने से देवाशीष जरारिया के राजनीतिक भविष्य को वो चमक और उड़ान तो शायद ही मिले जो कांग्रेस में रहते संभव हुई थी। खासकर ऐसे समय में जब बीएसपी का अस्तित्व ही संकट में हो और वो अपने कोर वोटर की चिंता छोड़ कर केवल वोट काटने वाली पार्टी बन कर ही रह गई हो।
तुम्हें तो पीछे ही रह जाना है...
जो नेता कांग्रेस में अपमान और दम घुटने की बातें करके विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कही जाने वाली बीजेपी में गए हैं उन्हें नई पार्टी में ज्यादा अपमान झेलना पड़ेगा। इस दावे के साथ दल बदल की आलोचना करने वाले कार्यकर्ताओं को अपने तर्क के पक्ष में एक और वीडियो मिला है।
यह वीडियो कमलनाथ के करीबी रहे पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना का है। मंगलवार को छिंदवाड़ा में गृहमंत्री अमित शाह का रोड शो हो रहा था। रथ पर मुख्यमंत्री मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, छिंदवाड़ा से बीजेपी प्रत्याशी बंटी साहू और पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना मौजूद थे। वीडियो में दिखाई दे रहा है कि सुरक्षाकर्मियों ने दीपक सक्सेना को नीचे उतरने के लिए कहा, लेकिन जब दीपक सक्सेना नहीं उतरे तो हाथ पकड़कर खींच लिया गया। बाद में उन्हें रथ पर पीछे खड़ा रहने दिया गया।
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होते ही सवाल उठाए गए कि अब वह सम्मान कहां गया जिसकी कमी का हवाला दे कर दीपक सक्सेना कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे। एक समय था जब छिंदवाड़ा में कमलनाथ का करीबी होने के कारण दीपक सक्सेना को कांग्रेस में अग्रणी स्थान मिलता था। अब पीछे धकेला जाने लगा है। अच्छा है यह सम्मान! इसके पहले भी दीपक सक्सेना की तरह कांग्रेस छोड़ कर गए नेताओं के फोटो और वीडियो वायरल कर पूछा गया था कि क्या वे ऐसे ही सम्मान के लिए अपनी मूल पार्टी छोड़ गए हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बयानों का जिक्र करते हुए भी तंज किया जाता है कि तुम्हें तो पीछे ही रह जाना है...।
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सीधी में सबकुछ सीधा-सीधा नहीं
विंध्य की सीधी लोकसभा सीट में चुनाव दिलचस्प मोड़ पर आ गए हैं। यहां 19 अप्रैल को मतदान होना है। सीधी लोकसभा सीट से पिछले दो चुनावों से बीजेपी की रीति पाठक लगातार चुनी जाती रही हैं। इस बार रीति पाठक विधायक हैं और बीजेपी ने ब्राह्मण डॉ. राजेश मिश्रा को टिकट दिया है। जातीय समीकरणों को साधने के लिए कांग्रेस ने कमलेश्वर पटेल को चुनावी मैदान पर उतारा है। इस सीट पर ठाकुर वोट असरकारी संख्या में है। बीजेपी के क्षेत्रीय नेता पूर्व राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह ने टिकट न मिलने से नाराज होकर बगावत कर दी है। वे गोंगपा से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में नजर कांग्रेस के ठाकुर नेता अजय सिंह पर है। अजय सिंह की सक्रियता ने संघर्ष को मुश्किल बना दिया है।
विंध्य की राजनीति में सिंह और पटेल परिवार में हमेशा ही वर्चस्व का संघर्ष रहा है। अजय सिंह अपने पिता अर्जुन सिंह और कमलेश्वर पटेल अपने पिता इंद्रजीत सिंह पटेल की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
सीधी जिले में अजय सिंह का दबदबा माना जाता है। कई बार महसूस किया गया है कि उनके और कमलेश्वर सिंह के बीच में ठीक संबंध नहीं है। इसीलिए माना जा रहा था कि यदि अजय सिंह सक्रिय नहीं होंगे तो कमलेश्वर पटेल की जीत मुश्किल होगी। लेकिन सारे कयासों को गलत साबित करते हुए अजय सिंह ने कमलेश्वर पटेल के नामांकन के बाद आयोजित रैली में शामिल हुए और एकजुटता दिखाई। इस पहल पर जनसभा में कमलेश्वर सिंह ने अजय सिंह की ओर मुखाबित होते हुए कहा था कि अगर मुझसे कभी कोई गलती हुई तो माफ करना।
इस दिखने और कहने के राजनीतिक संदेश दूर तक गए हैं। अजय सिंह की सक्रियता ने कांग्रेस को मुकाबले में ला दिया है।
शिवराज कहां हैं, सभी पूछते हैं...
पांच बार के सांसद और तीन बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लोकसभा चुनाव 2024 में गेस्ट अपीयरेंस में दिखाई दे रहे हैं। बीते तीन आम चुनावों सहित एक दर्जन चुनावों में बीजेपी के स्टार प्रचारक रहते हुए कई बार पूरा प्रदेश माप लेने वाले शिवराज सिंह चौहान अब तक नामांकन भरवाने सहित कुछ ही सभाओं में पहुंचे हैं। डेढ़ दशक में यह पहली बार है जब शिवराज सिंह चौहान की उतनी सभाएं भी नहीं हुई जितनी वे पहले एक दिन में कर लिया करते थे।
लोकसभा चुनाव जैसे महत्वपूर्ण प्रसंग में उन्हें उस सीट पर सीमित कर दिया गया है जिस विदिशा सीट पर उनके जाए बगैर ही जीत जाने का दावा किया जाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों का ही उदाहरण लें। वे पार्टी का चेहरा थे तो अपने क्षेत्र में केवल घंटों के लिए ही जाते थे। वे कहा करते थे कि उनका चुनाव को कार्यकर्ता ही लड़ते हैं। अब पार्टी की लाइन बदल चुकी है। शिवराज नैपथ्य में धकेले जा चुके हैं। पार्टी के कार्यक्रमों में उनकी भूमिका अतिथि के रूप में ही होती है। ऐसे में उनकी शैली और व्यवहार के मुरीद कार्यकर्ता, जनता आज भी पूछते हैं कि रौनक-ए- महफिल इनदिनों कहां हैं?