जी भाईसाहब जी: मोहन के राज में राधा भूखी 

MP Politics: मोहन के राज में राधा का भूखा रहना एक घटना नहीं है बल्कि एक तस्‍वीर है जो बताती है कि पूरे प्रदेश में अफसर मंत्रियों की कैसी कद्र कर रहे हैं। एक तो मंत्रियों के पास महत्‍पूर्ण काम नहीं है, ऊपर से जहां प्रभार हैं वहां अफसरों द्वारा मान नहीं है। 

Updated: Oct 15, 2024, 12:34 PM IST

कैबिनेट मंत्री प्रह्लाद पटेल, राज्‍यमंत्री राधा सिंह और मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव
कैबिनेट मंत्री प्रह्लाद पटेल, राज्‍यमंत्री राधा सिंह और मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव

गौरव दिवस कार्यक्रम के जश्‍न में डूबा मैहर प्रशासन अपनी अतिथि प्रभारी मंत्री राधा सिंह को खाना खिलाना भूल गया! गौरव दिवस कार्यक्रम की समाप्ति के बाद रात को सर्किट हाउस पहुंचीं मंत्री राधा सिंह के लिए उनके भोजन की व्यवस्था प्रशासन को करनी थी लेकिन गेस्‍ट हाउस में कोई था ही नहीं। भूखे होने मंत्री सो नहीं पाईं और पूरी रात करवटें बदल कर गुजारी। 

इसबात का खुलासा भी तब हुआ जब पत्रकारों ने मंत्री से चर्चा में अपनी समस्याएं सुनाई। समस्‍याएं सुन कर राज्‍य मंत्री राधा सिंह खुद को रोक नहीं पाई और अपनी अपनी पीड़ा उजागर कर बैठीं। वे तो यह कह कर रह गई कि कोई बात नहीं, जब घर में कोई शादी विवाह का कार्यक्रम होता है तो कुछ कमियां रह जाती हैं। सभी अधिकारी मेले के व्यवस्थाओं पर जुटे हुए हैं। उनसे भूल हो गई होगी।

लेकिन सवाल तो यह है कि मेले का आयोजन कर रहे प्रशासनिक अधिकारियों को क्‍या अपने प्रभारी मंत्री के लिए खाने का इंतजाम नहीं करना था? प्रभारी मंत्री राधा सिंह ने रात में एसडीएम से खाना के बारे में पूछा भी था। तब एसडीएम साहब टका सा जवाब दे कर रह गए कि मैंने खाना के लिए बोला था, हो सकता है ज्यादा रात की वजह से खाना उपलब्ध नहीं हुआ। 

किसी भी एसडीएम के लिए एक व्‍यक्ति के लिए खाना जुटाना कोई बड़ी बात नहीं होती है। मैहर में प्रभारी मंत्री राधा सिंह जंगल में नहीं थी, सरकारी गेस्‍ट हाउस में ठहरी थीं। लेकिन देवी की नगरी में आदिवासी महिला मंत्री को भूखे रहना पड़ा। यही एमपी की मोहन सरकार की तस्‍वीर है।

सिंगरौली जिले के चितरंगी विधानसभा से पहली बार चुनाव लड़कर जीतने वाली आदिवासी महिला व पूर्व मंत्री जगन्नाथ सिंह की पुत्रवधु राधा सिंह को मुख्यमंत्री मोहन यादव कैबिनेट में राज्यमंत्री बनाया गया है। वे पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल के साथ बतौर राज्‍यमंत्री कार्य कर रही हैं। भारी कद के दिग्‍गज कैबिनेट मंत्रियों के बोझ तले दबे राज्‍य मंत्रियों के पास महत्‍वूपर्ण कार्य भी नहीं है और दूसरी तरफ मैदानी अफसर मंत्रियों को कुछ मान ही दे नहीं रहे हैं। 

कैलाश जी खुलासा करो, सरकार आपकी ही है

बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता और सबसे ताकतवर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय जितने मंझे हुए नेता हैं उतने ही बेबाक भी। वे खुल कर बोलते हैं फिर चाहे अपनी सरकार की आलोचना ही क्‍यों न हो। उनके इसी अंदाज का विपक्ष भी कायल है। इसबार भी कैलाश विजयवर्गीय ने ऐसा कुछ कहा है कि उनके अंदाज की तारीफ करते हुए कहा जा रहा है, आपकी ही सरकार है, कैलाश जी, आप तो ड्रग्‍स माफिया का खुलासा कीजिए। 

बात इंदौर में हुई और जब मंच पर मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी बैठे हों तो उसका दूर तक जाना लाजमी है। एमपी में करोड़ों की एमडी ड्रग्‍स का कारखाना और सप्‍लाई चेन के उजागर होने के बाद सरकार के क्रियाकलापों पर ही सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में भरे मंच पर कैलाश जी ने बेबाकी से कहा कि उन्‍हें ड्रग्‍स के पूरे रेकैट की जानकारी है। यह सब राजस्‍थान के प्रतापगढ़ से संचालित है। उन्‍होंने कहा कि भोपाल के अधिकारियों कुछ करते नहीं है। इस मामले में खुद सीएम को सख्‍त कार्रवाई के निर्देश देने पड़ेंगे। 

यूं तो कैलाश जी का कद ऐसा है कि उनकी बात कोई अनुसनी नहीं कर सकता है। वे चाहते तो यह बात कैबिनेट की औपचारिक और अनौपचारिक चर्चाओं में या मुख्‍यमंत्री से एकांत में मुलाकात में भी बता सकते थे। लेकिन उन्होंने भरी सभा में यह खुलासा किया है तो इसके गहरे अर्थ हैं। कैलाश विजयवर्गीय का यह बयान सहज रूप से कहा गया वाक्‍य नहीं है। यह बताता है कि वे प्रदेश में फैले ड्रग्‍स के जाल के प्रति कितने चिंतित हैं। 

वे बीते कुछ दिनों से इंदौर में ड्रग्‍स और शराब के खिलाफ सख्‍ती दिखा रहे हैं। अब कैलाश जी से यही उम्‍मीद की जा रही है कि वे पूरे प्रदेश की चिंता करें। गुजरात, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार हैं। मंच से उन्‍होंने जो संकेत दिए हैं अब उनका खुलासा करें ताकि जैसा वे चिंता जता रहे हैं, युवा पीढ़ी को नशे की गिरफ्त में जाने से बचाया जा सके। मंच पर जताई चिंता तब ही सार्थक होगी जब उनके खुलासे पर सरकार ड्रग्‍स माफिया के नेटवर्क को तोड़ कर उनके आकाओं को पकड़ पाएगी। 

बुधनी में शिव पुत्र या शिव भक्‍त 

बतौर कृषि मंत्री राष्‍ट्रीय राजनीति में अपना दायरा बढ़ा रहे शिवराज सिंह चौहान के सामने अपने घर में ही संकट खड़ा हो गया है। यह संकट है अपने पुत्र और पार्टी की रीति नीति में से एक के चयन का। 

बुधनी से विधायक चुने गए पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब विदिशा से सांसद हैं। उनकी छोड़ी गई सीट पर उपचुनाव होना है। उनचुनाव की घोषणा भले ही नहीं हुई है लेकिन राजनीतिक जमावट हो चुकी है। बुधनी शिवराज सिंह चौहान के प्रभाव वाली सीट है और उनके राजनीतिक उत्‍तराधिकारी के रूप में बेटा कार्तिकेय चौहान टिकट का दावेदार भी है। 

प्रदेश बीजेपी ने इस मामले से खुद को दूर करते हुए उम्‍मीदवार चयन का जिम्‍मा केंद्र पर छोड़ दिया है। प्रदेश बीजेपी ने केंद्र को भेजे गए पैनल में शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान के साथ उनके समर्थक पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव, पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह का शामिल किया है। अब केंद्रीय संगठन तय करेगा कि किसे टिकट दिया जाए। इस बीच चर्चा है कि इसबार बुधनी से पार्टी किसी आम आदमी को चुनाव लड़वाना चाहती है। ताकि उसका सकारात्‍मक संदेश जाए। 

इस मामले में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी राय ली जाएगी। इसीलिए शिवराज सिंह चौहान के सामने संकट है कि वे अपने बेटे और समर्थक में से किसे चुनें। इधर राजनीतिक उत्‍तराधिकारी के रूप में बेटा कार्तिकेय कई सालों से क्षेत्र में सक्रिय है। उधर, पार्टी परिवारवाद की आलोचक है। खुद शिवराज सिंह चौहान परिवारवाद को निशाने पर लेकर कई विपक्ष पर हमला कर चुके हैं। ऐसे में यदि वे पार्टी की राय मानते हुए आम कार्यकर्ता को आगे बढ़ाते हैं तो बेटे के राजनीतिक भविष्‍य पर संकट आएगा और बेटे को चुनते हैं तो परिवारवाद की आलोचना कैसे कर पाएंगे? बीजेपी के अन्‍य नेता भी इस फैसले पर नजर टिकाए हैं। यदि शिवराज सिंह चौहान के बेटे को पार्टी टिकट देती है तो फिर उनके भी राजनीतिक उत्‍तराधिकारी परिवारवाद के खिलाफ बनी नीति का शिकार नहीं होंगे। उनका भी टिकट पक्‍का करवाया जा सकेगा। 

बिगड़ी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाएं या सरेंडर करें 

आमतौर पर कार्यकर्ता अपनी सरकार में दबंग हो जाते हैं। उन्‍हें लगता है कि सरकार अपनी है तो अपना रूतबा जमेगा ही लेकिन मध्‍य प्रदेश में माजरा ही अलग है। बीजेपी विधायकों को अपनी ही सरकार में अफसरों के आगे और फिर संगठन के आगे सरेंडर करना पड़ रहा है।

पिछले सप्‍ताह में बीजेपी के छह विधायकों की नाराजगी सुर्खियां बनी। अधिकांश विधायक ब्‍यूरोक्रेसी के कामकाज से असंतुष्‍ट हैं। सागर के देवरी के विधायक बृजबिहारी पटेरिया ने पीडि़त की सहायता के लिए पुलिस को फोन किया, खुद थाने गए लेकिन सुनवाई नहीं हुई। आक्रोश में आ कर विधानसभा अध्‍यक्ष को इस्‍तीफा दे दिया। मऊगंज के बीजेपी विधायक प्रदीप पटेल ने नशे के खिलाफ पुलिस की निष्क्रियता और बढ़ रहे अपराधों को लेकर एडिशनल एसपी के सामने दंडवत प्रणाम किया। इसके वीडियो में वे यह भी कहते सुनाई दे रहे हैं, 'मुझे गुंडों से मरवा दीजिए।' सागर के नरियावली विधायक प्रदीप लारिया भी नशे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। वे भी पुलिस द्वारा सुनवाई न होने से परेशान है। 

सत्‍ता तथा प्रशासन के खिलाफ सार्वजनिक रूप से नाराजगी व्‍यक्‍त करने पर इन विधायकों को संगठन ने 'फटकारा' है। संगठन ने विधायकों को हिदायत दी है कि वे पार्टी लाइन के खिलाफ न जाएं। कोई समस्या है तो पहले सत्ता और संगठन में बात रखें। 

विधायकों को गुस्‍सा और इस आक्रोश की अभिव्‍यक्ति का तरीका बता रहा है कि दाल में कुछ तो काला है। सरकार चला रहे अफसर उनकी सुन नहीं रहे हैं और अपनी उपेक्षा से त्रस्‍त विधायक सार्वजनिक रूप से गुस्‍सा दिखा रहे हैं। सत्‍ता से परेशान इन विधायकों को अभी भले ही संगठन ने चुप करवा दिया हो लेकिन मैदान में ऐसे ही उपेक्षा होती रही तो धैर्य फिर चूकेगा। आखिर कब तक नेता अफसरों और सत्‍ता के आगे सरेंडर करते रहेंगे? वे फिर आवाज उठाने को मजबूर होंगे।