जी भाईसाहब जी: इस जमीं से आसमां तक मैं ही मैं हूं, मैं ही मैं हूं

Holi Hai: होली का मौका है और राजनीति भी पूरे रंग में है। कहीं इंतजार का रंग और गाढ़ा हो रहा है तो कहीं वर्चस्‍व की रंगत निखर रही है। एक मंत्री पहले खूब बोला करते थे। हर बात पर उनका बयान होता था। अब उनका रंग बदला बदला सा है। पूछो तो अंदाज होता है, बोलूंगा तो बोलोगे कि बोलता है।

Updated: Mar 07, 2023, 06:00 PM IST

भगोरिया मेले में सीएम शिवराज  सिंह चौहान
भगोरिया मेले में सीएम शिवराज सिंह चौहान

एमपी में यह चुनावी साल है। यही कारण है कि सभी राजनीतिक गतिविधियां भी चुनाव केंद्रित हो गई हैं। बजट भी चुनाव को ध्‍यान में देख कर बनाया गया तो तमाम राजनीतिक कार्यक्रमों के बैकग्रांउड में भी चुनावी योजना ही है। ऐसे में जब होली मौके पर राजनीति की गपशप हो तो नेताओं के रंग को देख कर सिने जगत के किरदार और गीत याद हो आना स्‍वाभाविक है। इस होली पर ‘जी भाईसाहब जी’ में ऐसे ही रंगों की बात। उन किरदारों की बात जो प्रदेश की राजनीति में कई तरह के रंग भर रहे हैं तो उनकी भी चर्चा जिनके लिए राजनीति बेरंग हो चली है। हमने होली के अवसर पर इन किरदारों के लिए कुछ गाने ढूंढ लिए हैं। बुरा न मानो होली है, कहते हुए इस रंग का भी आनंद लीजिए :

मुझको देखोगे जहां तक, मुझको पाओगे वहां तक
रास्तों से कारवां तक, इस जमीं से आसमां तक
मैं ही मैं हूं, मैं ही मैं हूं, दूसरा कोई नहीं ... 

आपको ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्‍म का यह गाना याद है? इस गाने को गुनगुनाते हैं तो हमें मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चेहरा याद आता है। बीते 18 सालों से प्रदेश की कमान संभाले हुए शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में बीजेपी की राजनीति का चेहरा बने हुए हैं। वे हैं तो डबल इंजन की सरकार का मुहावरा भी लागू हो रहा है। विरोधियों ने तो हर संभव कोशिश कर डाली मगर शिव ‘राज’ को हटा पाना संभव नहीं हुआ। यहां तक कि शिवराज सिंह चौहान दिल्‍ली जाएं या नागपुर, या कोई और प्रमुख व्‍यक्ति मध्‍य प्रदेश यात्रा पर आएं, चर्चा का विषय यही होती है कि जाएंगे या रह जाएंगे।

इस बार तो बीजेपी की ओर से हर तरफ शिवराज ही शिवराज दिखाई दे रहे हैं। यहां तक कि प्रदेश अध्‍यक्ष विष्‍णुदत्‍त शर्मा का कार्यकाल गुजरे एक पखवाड़ा हो गया और अब तक उनके कार्यकाल बढ़ने या नई नियुक्ति के आदेश नहीं हुए हैं। दूसरी तरफ, मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान युवाओं के बीच में प्रेरणा बन कर उपस्थित होते हैं तो किसानों और आदिवासियों के बीच ट्रेनर के रूप में। भगोरिया में वे आदिवासी वेशभूषा में रंग जमाते हैं तो लाड़ली बहना योजना लांच करते समय घुटनों के बल बैठ कर महिलाओं से संवाद करते हैं। यहां कि एक महिला का लाड़ली बहना योजना के लिए आवेदन भी खुद भरते हैं। वर्चस्‍व में उनके आसपास कोई नेता नजर नहीं आ रहा है।   

उनके इस रूप को देख कर तो यही कहा जा सकता है: ‘इस जमीं से आसमां तक मैं ही मैं हूं...’  

कुछ हुआ क्‍या अभी तो नहीं ... 

कहते हैं समय से पहले और किस्‍मत अधिक किसी को कुछ भी नहीं मिलता है। अपनी किस्‍मत की रेखाएं बांच-बांच कर थक गए बीजेपी के वरिष्‍ठ नेताओं के दर्द को बयां करना हो तो ‘शराबी’ फिल्‍म का गाना याद आता है: 

इंतहा हो गई इंतज़ार की,  आई ना कुछ खबर मेरे यार की
ये हमें है यक़ी बेवफा वो नहीं, फिर वजह क्या हुई इंतजार की... 

असल में मार्च 2020 में बीजेपी की सरकार बनते ही कई नेताओं के चेहरे खिल उठे थे। विपक्ष में बैठ कर खुद को उपेक्षित पा रहे इन नेताओं को उम्‍मीद थी कि जल्‍द ही मंत्री की कुर्सी उनकी होगी। इनमें वे नेता भी शामिल हैं जो 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले तक मंत्री थे और जिनकी तूती बोलती थी। 

मगर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी संगठन के मन में को कुछ और बात समाई थी। एक महीने के इंतजार के बाद गठन हुआ तो मात्र पांच नेता ही मंत्री बन पाए। फिर शुरू हुआ लंबा इंतजार। कोरोना का हवाला दे कर मंत्रिमंडल गठन टाला गया। दबाव के बाद फिर जब विस्‍तार हुआ तो बीजेपी नेताओं की कुर्सी पर कांग्रेस की सरकार गिराकर आए नेताओं को मंत्री पद मिल गया। बीजेपी के मैदानी, वरिष्‍ठ और दिग्‍गज नेताओं के हिस्‍से इंतजार ही आया। 

अब जब चुनाव में दस माह से भी कम समय बचा है तब पिछले कुछ माह से मंत्रिमंडल विस्‍तार की हलचलें हैं। जरा सा राजनीतिक खटका होता है तो लगता है कि बस अब हुआ, तब हुआ। 19 फरवरी को विकास यात्रा के बीच में जब सभी मंत्रियों को भोपाल बुलाया गया तो कई चेहरे खिल गए, अब तो कुर्सी मिली समझो। मगर इंतजार ही हाथ आया। अब कहा जा रहा है कि विधानसभा के बजट सत्र के बाद विस्‍तार होगा। ऐसी सूचनाओं और संगठन द्वारा मौजूदा मंत्रियों को उनके कामकाज पर मिलती हिदायतों से इंतजार कर रहे नेताओं की सांस में सांस आती हैं। वे ‘आपकी कसम’ फिल्‍म के गाने की तरह एक दूसरे से पूछते हैं : 

सुनो
कहो
कहा
सुना
कुछ हुआ क्या?
अभी तो नहीं
कुछ भी नहीं
चली हवा
झुकी घटा
कुछ हुआ क्या?
अभी तो नहीं
कुछ भी नहीं.

मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं मेरी मर्जी

मैहर से बीजेपी विधायक हैं नारायण त्रिपाठी। इनका व्‍यवहार एकदम अप्रत्‍याक्षित होता है। नारायण त्रिपाठी की अपनी राजनीति है और अपना खास वोट बैंक। यही कारण है कि मैहर क्षेत्र से अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ कर चार बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त वे कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और इस्तीफा देकर वर्ष 2016 में उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर जीते। वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमा चुके हैं। हालांकि उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 

नारायण त्रिपाठी के लिए यदि कोई गाना चुनना पड़े तो ‘गेम्‍बलर’ फिल्‍म का गीत याद है: 

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं 
मैं चाहे यहां जाऊं, मैं चाहे वहां जाऊं, मेरी मर्जी. 

यह गाना इसलिए कि वे जो भी करते हैं अपनी राजनीति को ही केंद्र में रखते हैं, फिर चाहे पार्टी को उनके किए से खतरा भी क्‍यों न हो। इस आदत के कारण वे बीजेपी और शिवराज सरकार की कई बार मुसीबतें बढ़ा चुके हैं। जैसे, कमलानाथ सरकार में जुलाई 2019 के विधानसभा सत्र के दौरान बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने क्रास वोटिंग की थी। उन्‍होंने तत्‍कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की मौजूदगी में बीजेपी और शिवराज सिंह पर गंभीर आरोप लगाए थे। बाद में वे बीजेपी में आ गए और इसे अपनी घर वापसी बताया। कभी वे विद्युत कंपनियों के संविदा एवं आउटसोर्स कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन करते हैं तो कभी बीजेपी उम्‍मीदवारों के खिलाफ निकाय चुनाव में अपने समर्थकों को मैदान में उतार देते हैं। विंध्‍य प्रदेश की मांग को लेकर बीजेपी को असहज कर देते हैं तो पूर्व मुख्‍यमंत्री अर्जुन सिंह की भोपाल में प्रतिमा लगाने को लेकर सरकार को अल्टीमेटम दे देते हैं। नारायण त्रिपाठी ने 4 मार्च को प्रतिमा के अनावरण का एलान किया तो सरकार ने घोषणा कर दी कि 7 मार्च की सीएम शिवराज सिंह चौहान खुद अर्जुन सिंह की प्रतिमा का अनावरण करेंगे।

असल में बीजेपी चाह कर भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई या सख्‍ती नहीं कर पाती क्‍योंकि विंध्‍य क्षेत्र में उनकी अपना वोट बैंक है जो किसी पार्टी का मोहताज नहीं है। यह मैदानी पकड़ ही नारायण त्रिपाठी को अपनी मर्जी का मालिक बनाती है। 

बोलूंगा तो बोलेगा कि बोलता है...

‘चौदहवीं का चांद’ फिल्‍म का एक गाना है,

‘बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं…/ डूबे रहते थे मेरे प्यार में जो शाम-ओ-सहर
मेरे चेहरे से ना हटती थी कभी जिनकी नजर/ मेरी सूरत से वो बेजार नज़र आते हैं
सुने सुने दर-ओ-दीवार नजर आते हैं...'

यह गाना सुनते हुए अचानक गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का चेहरा याद आ जाता है। एक समय था जब मिश्रा मीडिया में छाए रहते थे। कोई मौका नहीं होता था जब गृहमंत्री मिश्रा का बयान नहीं आता था। वे खुल कर बोलते और बेबाकी से अपनी बात रखते थे। विधानसभा में फ्लोर मैनेज करना हो या मीडिया में सरकार के चेहरे को चमकाना, डॉ. मिश्रा का कोई सानी नहीं। मगर फिर शाहरूख खान की फिल्‍म ‘पठान’ के गाने ‘बेशर्म रंग’ पर विवाद हुआ। देशभर में प्रतिक्रियाएं हुई। एक प्रतिक्रिया हमारे गृहमंत्री डॉ. नरोत्‍तम मिश्रा की भी थी। मगर फिर एक संकेत मिला और उनकी अदा बदल गई।

असल में यह संकेत पार्टी मुखिया का नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से मिला था। फिर क्‍या था, गृहमंत्री मिश्रा ने प्रतिक्रियाओं से पल्‍ला झाड़ लिया।  उनकी चुप्पी ‘कसौटी’ फिल्‍म के गाने के अंदाज में यही कहती है, ‘हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता है...’  

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई..

मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र जारी है। वर्तमान सरकार का यह अंतिम बजट सत्र है। बीते कुछ समय से विधानसभा अपने तय समय से भी कम कार्य कर रही है। इस बार तो पांच दिनों में जो हुआ वैसा पहले कभी नहीं हुआ। हम कह सकते हैं कि सदन में मर्यादा टुकड़े-टुकड़े हो गई। कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के पूरे सत्र के लिए निलंबन से गुस्‍साई कांग्रेस प्रश्न काल में ही विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की मांग पर अड़ गई। इसी दौरान संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा सदन की नियमावली किताब हाथ में लेकर विपक्षी विधायकों को समझाने लगे। तभी किताब उनके हाथ से छूट कर चार-पांच फीट दूर विधानसभा अफसरों की सेंटर टेबल पर जा गिरी।

इसी बात पर आक्रोशित कांग्रेसियों ने आरोप लगाया कि नरोत्तम ने नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह पर किताब फेंकी। कांग्रेस ने इसे संविधान का अपमान बताया और नरोत्तम के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देते हुए निलंबन की मांग कर दी। करीब 12 मिनट हंगामा चला और कार्यवाही स्थगत कर दी गई। थोड़ी देर बाद जब सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सज्जन सिंह वर्मा ने यह कहते हुए नियमावली को सबके सामने फाड़ दिया कि जब सदन नियमों से चल ही नहीं रहा है तो इसका क्या काम? 

सदन की कार्यवाही 13 फरवरी तक के लिए स्थगित है। बीजेपी विधायक दल कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा और विजयलक्ष्मी साधौ के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस लाने का निर्णय कर चुका है। तैयारी बता रही है कि इस बार सत्र शायद ही पूरी अवधि तक चल पाए और बजट पर ठीक से चर्चा भी न हो पाए। जिस सदन में जनता की मांगों और हित पर चर्चा होनी चाहिए उसकी कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ जाना तय है। पहले सदन की कार्यवाही का सम्‍मान तो होता ही था, सदस्‍य परस्‍पर सौजन्‍य और गरिमा का व्‍यवहार करते थे। अब  विधानसभा में जो हुआ उसे देख कर कवि प्रदीप का लिखा ‘नास्तिक’ फिल्‍म गाना याद आता है : 

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,
कितना बदल गया इंसान...