जी भाईसाहब जी: बीजेपी से इस्तीफे की राजनीति, नुकसान में फायदे का गणित
MP Politics: ऐसे समय में जब कई नेता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, बीजेपी के राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफों की राजनीति के भी अपने गहरे अर्थ हैं। जिन्हें अपनी-अपनी तरह समझा जा रहा है। बीजेपी नेता कार्यकर्ताओं को समझा रहे हैं कि जिसे वे नुकसान समझ रहे हैं, उसी में उनका फायदा छिपा है।
विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति के बीच अजय प्रताप सिंह तेजी से उभरे नेता हैं जिन्हें बीजेपी ने समय-समय पर महत्वपूर्ण पद दिए हैं। प्रदेश महासचिव, उपाध्यक्ष, प्रदेश संगठन सचिव रहे अजय प्रताप सिंह को 2018 में राज्यसभा भेजा गया था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाने वाले अजय प्रताप सिंह ने ऐसे समय में बीजेपी छोड़ने का फैसला कर लिया जब नेता कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं! यह फैसला सभी के लिए चौंकाने वाला है। उनके इस फैसले की वजहें तलाशी गई तो खास राजनीतिक मंतव्य निकले।
अजय प्रताप सिंह सीधी लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट की दावेदारी कर रहे थे। यहां बीजेपी ने डॉ. राजेश मिश्रा को टिकट दिया है। माना जा रहा है कि अब अजय प्रताप सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लडेंगे। उनका यूं इस्तीफा देना असल में बीजेपी में अंदर ही अंदर धधक रही असंतोष की आग की बाहर आई एक चिंगारी की तरह है। कई नेता स्वयं को नजरअंदाज कर दिए जाने से नाराज हैं। कुछ खुल कर बोल रहे हैं, अधिकांश कार्रवाई के डर से चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि अजय प्रताप सिंह ने मुखर होना स्वीकार किया और धारा के विपरीत जाने का साहस दिखाया।
दूसरी ओर, इस इस्तीफे का एक अन्य राजनीतिक कोण भी है जो जातीय समीकरण पर निर्भर है। अगर अजय प्रताप सिंह बीजेपी के बागी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ते भी हैं तो यह कांग्रेस के लिए अधिक फायदेमंद साबित नहीं होने वाला है। जातीय वोट समीकरण को देखें तो सीधी में ब्राह्मण और ठाकुर मतदाताओं का वर्चस्व और छत्तीस का आंकड़ा रहा है। सीधी से बीजेपी ने ब्राह्मण नेता डॉ. राजेश मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है। उनकी उम्मीदवारी से ठाकुर मतदाता नाराज हो सकते हैं और इसका लाभ कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश्वर पटेल को मिल सकता है।
इस संभावना को देखते हुए बीजेपी के ठाकुर नेता अजय प्रताप सिंह का निर्दलीय चुनाव लड़ना बीजेपी के असंतुष्ट ठाकुर वोटों को कांग्रेस में जाने से रोक सकता है और जीत के समीकरण बदल सकते हैं। यदि अजय प्रताप जीत गए तो उनकी वापसी की संभावनाएं बनी हुई है। यानी, नाराज हो कर भी अजय प्रताप अंतत: बीजेपी का फायदा ही पहुंचाएंगे।
आखिर कैलाश विजयवर्गीय की बताना पड़ा कलदार का महत्व
यदि राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह का इस्तीफा बीजेपी में फैले असंतोष की बानगी है तो यह असंतोष प्रदेश की कई जगहों पर कहीं दबे हुए तो कहीं खुले रूप में दिखाई दे रहा है। मालवा में धुर कांग्रेसी रहे नेताओं के कांग्रेस में आने से बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता नाराज है। इस नाराजगी के कई कारण है। पहला तो यह कि बीजेपी अपने जिन कार्यकर्ताओं को देवतुल्य कहती है, जिनके परिश्रम से वह सत्ता में पहुंची है और दो दशकों से बनी हुई है उन्हीं कार्यकर्ताओं का महत्व घट रहा है। उनके मन में यह धारणा घर करती जा रही है कि जब सत्ता में रहने की बारी आई तो कांग्रेसी नेता आ कर उनका हक मार रहे हैं। सत्ता के लिए पार्टी बदलने वालों का सम्मान बीजेपी के आधार कार्यकर्ताओं को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या वे केवल दरी बिछाने के लिए हैं।
यही कारण है कि पहले ग्वालियर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने और अब इंदौर में नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया है कि कांग्रेस से कोई भी आए, बीजेपी के कार्यकर्ताओं का महत्व कम नहीं होगा। इंदौर में कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि बीजेपी कार्यकर्ता कलदार है। कलदार ही चलता है। आप सकारात्मक काम करते हुए पार्टी में अपना स्थान बनाएं। किसी की टांग खींचने से कोई बड़ा नहीं बनता। अगर आपने किसी की टांग खींची तो आप खुद छोटे हो जाओगे।
बीजेपी कार्यकर्ताओं में अब यही भरोसा है कि उन्हें राजनीतिक लाभ हीं मिला तो कम से कम उन्हें भी नहीं मिलेगा जो बहाव में बीजेपी में आ गए हैं। बीजेपी कार्यकर्ता तो अपने नेताओं की बात सुन रहे हैं, यह संदेश तो उन नेताओं तक भी पहुंच रहा है जो कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी जा चुके हैं।
आखिर किसने बचाया शंकर लालवानी का टिकट
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपनी पहली सूची में पांच सीटों पर प्रत्याशियों के नाम होल्ड किए थे। इन पांच सीटों में सबसे ज्यादा चर्चा इंदौर की सीट की थी। प्रत्याशी की घोषणा रूकने से अंदाजा लगाया गया कि इस सीट से वर्तमान सांसद शंकर लालवानी की टिकट काटी जा रही है।
महिला शक्ति वंदन कार्यक्रम में कैलाश विजयवर्गीय ने तो यह कह कर इस कयास को बल दे दिया था कि मुझे उड़ती-उड़ती खबर मिली है कि इस बार शंकर लालवानी का टिकट कट रहा है। पीएम चाहते हैं कि सेफ सीट से किसी महिला को टिकट दी जाए। जब विवाद हुआ तो कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहते हुए बात संभाली की वे मजाक कर रहे थे। इसके पहले भी महिला प्रत्याशी या केंद्रीय नेतृत्व में किसी को इंदौर से टिकट मिलने की संभावना जता चुके थे।
इस कारण माना जरा रहा था कि इस सीट से नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स की सदस्य डॉ. दिव्या गुप्ता या किसी अन्य नेत्री को टिकट दिया जा रहा है। मगर जब नाम घोषित हुए तो शंकर लालवानी की टिकट कायम रही। इस टिकट के पीछे कई कारण हैं। नाम होल्ड होते ही शंकर लालवानी दिल्ली पहुंच गए थे। समर्थकों ने उनके पक्ष में हर तरह की लामबंदी की। सीएए नोटिफिकेशन आने के बाद सिंधी वोट का समीकरण देखते हुए एक मात्र सांसद शंकर लालवानी का दावा बुलंद हो गया।
इसबीच, बीजेपी के वे नेता भी शंकर लालवानी के पक्ष में आ गए जो शुरुआत में उनका विरोध कर रहे थे। इस एकजुटता की वजह इंदौर लोकसभा सीट पर महिलाओं का वर्चस्व रहना है। वे इंदौर से लगातार आठ बार सांसद बनी। 2019 में शंकर लालवानी सांसद बने थे। यही वजह रही कि यदि इस सीट पर फिर किसी महिला को टिकट मिल जाता तो पुरुषों के हाथ से सीट जाने का खतरा था। इसलिए महिला के बदले शंकर लालवानी के पक्ष में ही तर्क रखे गए।
अब कांग्रेस की रणनीति के खुलासे की बारी
लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लग गई है। बीजेपी ने सभी 29 सीटों पर टिकट की घोषणा कर दी है जबकि कांग्रेस की दूसरी सूची का इंतजार है। दिल्ली में मंगलवार शाम 4 बजे कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक है। इस बैठक के बाद बची हुई 18 सीटों के लिए प्रत्याशियेां की सूची जारी होने की संभावना है। सूची आज नहीं तो कल आ ही जाएगी मगर मुख्य मुद्दा मैदान में कांग्रेस की सक्रियता का है।
विधानसभा चुनाव में एकतरफा बहुमत पाने के बाद जब बीजेपी संगठन ने नेतृत्व बदला तो कई स्तरों पर नाराजगी दिखाई दी। तब आकलन किया गया था कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करेगी और इस बार पिछली बार की तरह एक नहीं बल्कि ज्यादा सीट जीतेगी। लेकिन पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस नेताओं के लगातार बीजेपी में जाने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हुआ है। ऐसे में बेहतर टिकट वितरण के साथ ही मैदान में दिखाई देना भी प्रदेश कांग्रेस के लिए चुनौती है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी अपने हरफनमौला अंदाज के कारण चर्चित रहे हैं। अब इंतजार उनकी रणनीति का है जिसके सहारे कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी। जीतू पटवारी को कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के साथ ही जनमत भी जुटाने के लिए भी कारगर रणनीति बनानी होगी।