जी भाईसाहब जी: फिर नहीं बनेगी शिवराज सरकार, खुश क्यों हैं बीजेपी नेता

MP Politics: ऐसा क्‍या हुआ कि मध्‍य प्रदेश बीजेपी के लिए आई बुरी खबर से पार्टी के नेता खुश हैं? इस खुशी का राज क्‍या है? दूसरी तरफ, लाडली बहना योजना में व्‍यस्‍त सीएम शिवराज सिंह चौहान से क्‍यों कहा गया कि जीजाजी की तरफ भी ध्‍यान दे दीजिए सरकार?

Updated: Mar 14, 2023, 07:07 PM IST

शिवराज  सिंह चौहान और वीडी शर्मा
शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा

इन दिनों मध्‍य प्रदेश की पूरी राजनीतिक और प्रशासनिक गतिविधियां मिशन 2023 के इर्दगिर्द संचालित हो रही हैं। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने फोकस एरिया को ध्‍यान में रखते हुए नई योजनाओं को प्रस्‍तुत कर चुके हैं तो संगठन अपनी पहुंच बढ़ाने की कवायद में हैं। बीतें दिनों इन सारी कोशिशों में बहुत तेजी आई है। इस तेजी के पीछे का कारण वे जानकारियां भी हैं जो सत्‍ता और संगठन को मैदान से मिल रही हैं। 

बीजेपी और कांग्रेस संगठन के अलावा मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ निजी तौर पर भी विधायकों की मैदानी स्थिति का सर्वे करवाते रहे हैं। एक बार भी फिर बीजेपी का एक सर्वे चर्चा में हैं। बीजेपी संगठन के अंदरूनी सर्वे में बताया गया है कि मिशन 2023 संकट में है। पार्टी 230 सीटों वाली विधानसभा में इस बार 200 पार का नारा दे चुकी है और 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ा कर इस लक्ष्‍य को पूरा करने का जतन कर रही है मगर सर्वे तो कुछ ओर ही दृश्‍य दिखा रहे हैं। राजनीतिक चर्चाओं का विषय बने इन सर्वे में बताया गया है कि 200 पार तो ठीक इस बार स्थिति 2018 से भी बुरी है। 2018 में तो बीजेपी 106 सीट ले आई थी अब 100 तक पहुंचना भी मुश्किल है।

अकेले सर्वे ही नहीं, संगठन के प्रभारी जिन-जिन क्षेत्रों में गए हैं उन्हें वहां ऐसी हकीकत देखने को मिली है। इस सर्वे के बाद सरकार और संगठन की नींद उड़ी हुई है। संकेत दिए गए हैं कि पिछली बार वाली गलती नहीं दोहराई जाएगी। जहां आवश्‍यक होगा वहां मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए जाएंगे।

संगठन और सत्‍ता के सूत्रधार जहां बेचैन हैं वहीं एक खेमा है जो इन सर्वे के परिणामों को जानकर खुश है। ये खेमा उन नेताओं का है जिनकी टिकट किसी आयातीत नेता के कारण काट दी गई थी या जिन्‍हें पार्टी ने किसी कारण से नजरअंदाज कर रखा है। इन नेताओं की खुशी का कारण यह भी है कि पार्टी को खड़ा करने के लिए खून पसीना उन्होंने बहाया और जब लाभ पाने की बारी आई तो कोई और उनका हक ले गया। अब जब संगठन फिर मैदानी स्थिति को जांचेंगा तो वे भारी पड़ेंगे और टिकट के लिए उनकी दावेदारी पक्की होगी।  

जीजाजी की सुध लीजिए सरकार

मैदानी सर्वे में कार्यकर्ताओं और जनता के असंतोष की जानकारी मिलने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों का प्रबंधन शुरू कर दिया है। 2018 में आदिवासी वोट नहीं मिलने का खामियाजा भोग चुकी बीजेपी ने दो साल पहले से आदिवासी हितैषी काम आरंभ कर दिए हैं। अब तो पेसा एक्‍ट भी लागू किया जा चुका है। 

इसी तरह आधी आबादी को लक्ष्‍य करते हुए लाडली बहना योजना लाई जा चुकी है। इसके पहले के कार्यकाल में लाडली लक्ष्‍मी योजना लागू कर सीएम शिवराज सिंह ने मामा के रूप में ख्‍याति अर्जित कर ली है। अब वे खुद कह रहे हैं कि बहनों की समस्‍याओं को दूर करने के लिए वे लाडली बहना योजना लेकर आए है। 23 मार्च को राजधानी में युवा समागम आयोजित किया जा रहा है जिसमें युवा नीति लाने की तैयारी है। आदिवासी, महिलाओं और युवाओं के लिए तो सरकार ने खजाने का मुंह खोल दिया है मगर कृषि और किसानों की समस्याएं यथावत हैं। अतिवृष्टि से परेशान किसानों का मानना है कि सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया है। 

किसानों की परेशानी को बताने वाला एक मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, इसमें कहा गया है कि मामा शिवराज जी लाडली बहना योजना से फ्री हो गए हो तो जीजाजी के खेत की तरफ भी थोड़ा देख लेना। हमारे खेत की फसलें बिन मौसम बरसात में खराब हो गई हैं। हमारे अकाउंट भी भर देना। 

मैसेज किसने लिखा यह तो खबर नहीं लेकिन ओला बारिश से परेशान किसानों की पीड़ा तो व्यक्त कर ही दिया गया है। किसान इस बात से भी नाराज है कि कर्ज माफी, बिगड़ी फसलों के सर्वे, मुआवजा देने की बात तो हर बार होती है मगर अनेक किसानों की झोली खाली रह जाती है। इस बार भी सरकार ने 15 मार्च तक सर्वे पूरे कर जिलों से रिपोर्ट मंगवाई है मगर किसानों की पीड़ा यह है कि जितन कही जाती है उतनी राहत उन्‍हें मिलती नहीं है। 

कलेक्टर साहब आप संभालो... 

मैदान से जब विपरीत सूचनाएं मिलेंगी तो सत्‍ता और संगठन सवाल तो पूछेंगे ही। इस बार भी मंत्रियों और विधायकों से उनके प्रति क्षेत्र में उपज रही नाराजगी पर सवाल हुए तो नेताओं ने कह दिया कि अफसशाही हावी है। ऐसी ही एक शिकायत पर मंदसौर कलेक्‍टर को तो तुरंत बदल दिया गया मगर दूसरे जिलों में भी वैसे ही हाल हैं। कहीं एक गुट इसलिए नाराज है कि कलेक्‍टर दूसरे गुट की ज्‍यादा सुन रहे हैं। कहीं नेताओं की परेशानी है कि अफसर भोपाल के आगे उनको कुछ मानते ही नहीं है। यहां तक कि मंत्रालय में बैठे अफसर भी मंत्रियों और विधायकों को हल्‍के में लेते हैं।

बीजेपी सरकार में ब्यूरोक्रेसी के हावी रहने का आरोप नया नहीं है। मगर इसबार मामला नाजुक है। बहुमत लाना है तो मैदान कर नाराजगी दूर तो करनी होगी। लिहाजा सरकार ने कलेक्टरों से विकास यात्रा की रिपोर्ट तलब करते हुए कह दिया है मैदान में गड़बड़ है तो साहब खुद ही संभालो। विकास यात्रा का फॉलोअप करने के निर्देश देते हुए कहा गया है कि विकास यात्रा तभी परफेक्ट होगी जब जीरो डिफेक्ट होगा। बचे रह गए कार्यों को भी कलेक्टर और उनकी टीम पूरा करें। 

कांग्रेस के सामने अपनी ताकत को पहचान कर उसे बढ़ाने की चुनौती 

मिशन 2023 के लिए बीजेपी में चिंतन और कार्रवाई जारी हैं तो कांग्रेस की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। उसे 2018 से अधि‍क अच्‍छा प्रदर्शन करना होगा। यही कारण है कि जनता के बीच पैठ बढ़ाने के साथ सरकार को घेरने का कोई मौका कांग्रेस को छोड़ना नहीं चाहिए। देश भर में राजभवन के घेराव के आह्वान पर कांग्रेस ने 13 मार्च को भोपाल में भी प्रदर्शन किया। पुलिस के बल प्रयोग और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के साथ विरोध प्रदर्शन समाप्‍त हुआ लेकिन प्रदर्शन में आई भीड़ से नेताओं के चेहरे खिल गए हैं।

अब बारी विधानसभा में सरकार को कठघरे में खड़ा करने की है। सरकार से जवाब तलब करने के लिए कांग्रेस के पास दो विकल्प है। पहला यह कि विधायक जीतू पटवारी के निलंबन वाले मामले को ज्यादा नहीं खींचे और नरम रुख अपना कर पटवारी और सज्जन वर्मा–नरोत्तम मिश्रा प्रकरण निपटाया जाए तथा बजट व अन्‍य चर्चा पर बहस का समय निकाल कर सरकार को घेरा जाए। दूसरा विकल्‍प जीतू पटवारी का निलंबन वापिस न हो तथा कांग्रेस हंगामा जारी रखे लेकिन इससे सदन की कार्यवाही बाधित होगी और सरकार मजे मजे से अपना एजेंडा पूरा कर लेगी। 

स्‍वा‍भाविक है, लक्ष्‍य सरकार को घेरना और जनता तक अपनी बात पहुंचानी है तो कांग्रेस को पहला रास्‍ता चुन कर सरकार की मुसीबतों को बढ़ाए रखना चाहिए। बीजेपी तो अपनी कमियों और खूबियों पर मंथन, अध्‍ययन कर उसमें सुधार के हर कदम उठाती है, कांग्रेस अपनी ताकत और कमजोरियों को जानते हुए भी उनमें सुधार की पहल नहीं करती है। वह भी मैदान और सदन में अपनी ताकत पहचान कर उस शक्ति को बढ़ाने का काम करे तो 2023 अंत में नया साल नई सरकार का नारा सच साबित हो सकता है।