सत्संग मनुष्य को प्रभावित करता है

सत्संगियों का साथ करके अपने जीवन को धन्य बनाना चाहिए।

Updated: Jan 03, 2021, 01:25 PM IST

मानव जीवन का वह क्षण अत्यंत दुर्लभ माना जाता है जिस क्षण में मनुष्य को सत्संग की प्राप्ति हो।

धन्य घड़ी सोइ जब सत्संगा

और भी एक स्थान पर गोस्वामी तुलसीदास महराज कहते हैं कि-

तुलसी संत समागम,

सम न लाभ कछु आन।

बिनु हरि कृपा न होइ सो,

गावहिं वेद पुरान।।

अब हमें ये देखना है कि सत्संग मनुष्य को किस रूप में और कितनी मात्रा में प्रभावित करता है, इसे यदि व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाय तो ऐसा लगता है कि मनुष्य एक अनुकरण शील प्राणी है। कुछ प्राणियों में कुछ विशेषताएं जन्म से ही आ जाती हैं। जैसे पक्षी शावक को उड़ना सिखाना नहीं पड़ता। इसी प्रकार पशु के बच्चे को तैरना नहीं सिखाना पड़ता। उसको आप जल में छोड़ दें तो वह तैरने लग जायेगा, और मनुष्य के बालक को छोड़ दीजिए तो वह डूब जायेगा। क्यूंकि उसने तैरना नहीं सीखा है।

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इसका अभिप्राय ये है कि मनुष्य एक अनु्करण शील प्राणी है। जब वह किसी को तैरते हुए देखेगा तब उसे तैरना आएगा। अभिप्राय ये है कि मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण उसके आसपास के वातावरण से होता है। एकबार एक भेड़िये ने कुछ मनुष्य के बच्चों का अपहरण कर लिया। और उन्हें मारा नहीं अपने बच्चों के साथ मांद में रख दिया। वो बच्चे भेड़ों के साथ उनकी तरह चार पैरों (दो हाथ दो पैर) से चलना सीख गये। बिना वस्त्र के रहते और उन्हीं की तरह जीभ से चाट कर पानी पीते थे। जब उन्हें भेड़ियों से छुड़ाकर घर में रखा गया और कपड़े पहनाए गए तो वो कपड़ों को फाड़ दिए और पशुवत ही आचरण करते थे।

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इसका अर्थ है कि उन्होंने कभी चलते हुए मनुष्य को नहीं देखा था। वस्त्र पहने हुए मनुष्य को नहीं देखा था। और जब उन्हें मानवोचित आचरण सिखाया गया तब सीख गए। इसलिए हमें अपने आसपास अच्छे वातावरण का निर्माण करना चाहिए, सत्संगियों का साथ करके अपने जीवन को धन्य बनाना चाहिए।