इस उपलब्धि पर गर्व कीजिए

– जाहिद खान- हमारा देश आखिरकार अब उन देशों में शामिल हो गया है, जो पोलियो मुक्त हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए एक समारोह के दौरान भारत समेत पूरे दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के ग्यारह देशों को पोलियो मुक्त होने का सर्टिफिकेट दिया। डब्लूएचओ के दक्षिण-पूर्व एशिया […]

Publish: Jan 14, 2019, 02:59 PM IST

इस उपलब्धि पर  गर्व कीजिए
इस उपलब्धि पर गर्व कीजिए
- span style= color: #ff0000 font-size: large जाहिद खान- /span p style= text-align: justify strong ह /strong मारा देश आखिरकार अब उन देशों में शामिल हो गया है जो पोलियो मुक्त हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए एक समारोह के दौरान भारत समेत पूरे दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के ग्यारह देशों को पोलियो मुक्त होने का सर्टिफिकेट दिया। डब्लूएचओ के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र सर्टिफिकेशन आयोग ने केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद को पोलियो मुक्त देश का प्रमाण पत्र सौंपा। जिन देशों को भारत के साथ पोलियो मुक्त घोषित किया गया उसमें बांग्लादेश भूटान कोरिया इंडोनेशिया मालदीव म्यांमार नेपाल श्रीलंका थाइलैंड व तिमोर-लेस्ते शामिल हैं। सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले हमारे देश के लिए यह एक ऐसी उपलब्धि है जिस पर सचमुच गर्व किया जा सकता है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि यदि कोई काम ईमानदारी और पूरी प्रतिबध्दता से किया जाए तो मंजिल पर पहुंचना मुश्किल काम नहीं। सरकारी कार्यक्रम के प्रभावकारी क्रियान्वयन स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं और सामाजिक संस्थाओं की एकजुट मुहिम ने वह कर दिखाया जो एक समय मुश्किल लक्ष्य लगता था। भारत ने साल 1980 में स्मॉलपॉक्स यानी चेचक को जड़ से मिटाया था इसके बाद पोलियो दूसरी ऐसी बीमारी है जिसे टीकाकरण के जरिए मिटाया गया है। /p p style= text-align: justify विश्व स्वास्थ्य संगठन की शर्त के मुताबिक उसी देश को पोलियो मुक्त घोषित किया जाता है जहां पर तीन साल तक एक भी पोलियो का मामला रोशनी में नहीं आया है। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन कभी किसी एक अकेले देश को पोलियो मुक्त घोषित नहीं करता बल्कि क्षेत्रीय जोन को एक साथ पोलियो मुक्त घोषित किया जाता है। सबसे पहले साल 1994 में अमेरिका साल 2000 में पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र और साल 2002 में यूरोपीय क्षेत्र को पोलियो मुक्त घोषित किया गया था। और अब इस फेहरिस्त में दक्षिण-पूर्व क्षेत्र भी शामिल हो गया है। इस साल 11 जनवरी को भारत ने ऐसे देश का दर्जा हासिल कर लिया था जहां पिछले तीन वर्षों में पोलियो का कोई नया मामला सामने नहीं आया। 11 जनवरी 2011 को पोलियो का आखिरी केस पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में सामने आया था। इसके अलावा सीवेज के नमूनों में भी देश में जनवरी 2011 के बाद से ही कोई पोलियो वायरस का मामला दर्ज नहीं किया गया है। विष्व स्वास्थ संगठन के मुताबिक नवम्बर 2010 के बाद भारत में पहली बार पर्यावरण से लिए गए सभी नमूनों में हवा के अंदर पोलियो वायरस की मौजूदगी नकारात्मक आई है। /p p style= text-align: justify गौरतलब है कि इस क्षेत्र में शामिल दस देश भारत से पहले पोलियो मुक्त हो गए थे। सिर्फ हमारे देश को ही पोलियो मुक्त होने का इंतजार था। भारत को तीन साल पोलियो मुक्त पूरा करने के बाद पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया जोन को आधिकारिक तौर पर पोलियो मुक्त घोषित किया गया। भारत को पोलियो मुक्त क्षेत्र का दर्जा मिलना ये एक ऐसे देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है जिसमें हर साल एक लाख से भी ज्यादा बच्चे अपंगता के शिकार होते थे। साल 2009 तक भारत में पूरी दुनिया के आधो से अधिक पोलियो के मामले दर्ज किए जाते थे। अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे हैं जब देश में पोलियो के मामलों का उच्चतम भार 741 था। जो कि तीन दीगर पोलियो पीड़ित देशों से भी ज्यादा संख्या थी। जाहिर है यह आंकड़े किसी भी लिहाज से संतोषजनक नहीं थे। ऐसे में पोलियो पर जीत सरकार के लिए वाकई सुकून लेकर आई है। /p p style= text-align: justify पांच साल उम्र तक के बच्चों को अपना शिकार बनाने वाले पोलियो के वायरस से बच्चे लकवाग्रस्त हो जाते हैं। जो कि लाइलाज है। डॉ. एल्बसर्ट सेबिन ने साल 1961 में जब ओरल पोलियो टीके (ओपीवी) का विकास किया तो पूरी दुनिया में उम्मीद की एक किरण जागी। आज दुनिया के सारे देष अपने यहां पोलियो उन्मूलन के लिए ओपीवी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। इस टीके से जहां बच्चे में हमेशा के लिए पोलियो संक्रमण की रोकथाम हो जाती है वहीं दीगर बच्चों में भी उसकी वजह से पोलियो वायरस नहीं फैलता। साल 1988 में विष्व स्वास्थ संगठन ने रोटरी इंटरनेशनल यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन और यूनीसेफ के सहयोग से पोलियो उन्मूलन के लिए जब विश्वव्यापी मुहिम छेड़ी तब पोलियो से कोई 125 से ज्यादा देश पीड़ित थे। खास तौर पर यह बीमारी अविकसित और पिछड़े देशों में ज्यादा थी। आहिस्ता-आहिस्ता विश्व स्वास्थ संगठन की कोशिशें रंग लाई। जहां-जहां डब्लूएचओ ने पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया वहां इस महामारी का प्रभाव कम होता चला गया। मौजूदा स्थिति यह है कि पोलियो महामारी से पीड़ित देशों की संख्या घटते-घटते अब सिर्फ तीन तक सीमित रह गई है। जिसमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान अफगानिस्तान के अलावा अफ्रीकी देश नाइजीरिया शामिल है। /p p style= text-align: justify साल 1995 में भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ संगठन के सहयोग से पोलियो उन्मूलन के लिए अपने यहां एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम (पीपीआई) शुरू किया। कार्यक्रम का उद्देष्य ओरल पोलियो टीके यानी ओपीवी के जरिए शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करना था। इस कार्यक्रम के तहत पूरे देश में पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों को साल में दो बार यानी दिसम्बर और जनवरी महीने में ओरल पोलियो टीके की खुराकें दी गईं। पोलियो टीके की दो खुराक पीने वाले बच्चों में तीनों तरह के पोलियो वायरस के खिलाफ सुरक्षात्मक एंटीबॉडी बन जाती है और 99 फीसदी बच्चे तीन खुराकों के बाद सुरक्षित हो जाते हैं। शुरूआत में इस कार्यक्रम की राह में काफी अड़चने पेश आईं। भारत जैसे विशाल आबादी और क्षेत्रफल वाले देश में हर बच्चे को दो बूंद जिंदगी की पिला पाना सचमुच एक मुश्किल चुनौती थी। सरकार ने अपनी मुहिम को कामयाब बनाने के लिए न सिर्फ स्वास्थ महकमे और स्वयंसेवी संस्थाओं का सहारा लिया बल्कि अपने कई महकमों के हजारों कर्मचारियों को भी इसमें झोंक दिया। कोई चौबीस लाख स्वयंसेवी और डेढ़ लाख सरकारी कर्मचारी विशम परिस्थितियों में भी घर-घर जाकर पांच साल उम्र तक के बच्चों को पोलियो की दवा पिलाते रहे। हर साल पूरे देष में छह से आठ बार पोलियो टीकाकरण के अभियान चलाए गए। /p p style= text-align: justify इस मुहिम के दौरान अनेक परेशानियां भी पेश आईं। अशिक्षा अंधविश्वास और अज्ञानता की वजह से देश की एक बड़ी आबादी ने पहले इस कार्यक्रम से किनाराकशी की। पोलियो टीकाकरण के बारे में कुछ समाजों के अंदर खासकर मुस्लिम समुदाय के अंदर कई गलतफहमियां और भ्रांतियां थीं जिसके चलते वे अपने बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाने को तैयार नहीं होते थे। लेकिन सरकार ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और लगातार अपनी कोशिशें जारी रखीं। सरकार ने इसके लिए राष्ट्रव्यापी प्रचार अभियान छेड़ा और घर-घर जाकर बच्चों को पोलियोरोधी ड्राप्स पिलाए। तब जाकर देश आज इस मुकाम पर पहुंचा है। पोलियो के खिलाफ इतनी बड़ी कामयाबी मिलने के बाद भी भारत के लिए चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। इस उपलब्धिा को पाने के बाद सरकार को लगातार सतर्कता व निगरानी बरतना होगी ताकि पोलियो दोबारा देश को अपने आगोश में न ले ले। आगे भी इस संक्रामक बीमारी के खिलाफ सरकार को जागरूकता अभियान और रोकथाम के उपाय एक साथ जारी रखने होंगे। देश के नौनिहालों को निरंतर पोलियो की दवा पिलानी होगी जब तक कि पूरी दुनिया पोलियो मुक्त न हो जाए। /p p style= text-align: justify सावधानी अकेले घरेलू मोर्चे पर ही नहीं बल्कि बाहरी मोर्चे पर भी जरूरी है। भारत को इस बीमारी के आने का सबसे ज्यादा खतरा अपने पड़ोसी देशों से है। क्योंकि हमारी सीमाएं खुली हुई हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अब भी पोलियो के काफी मामले सामने आ रहे हैं। इस साल अकेले जनवरी में ही पाकिस्तान के अंदर तीस मामलों की पुष्टि हुई है। ऐसे में पाकिस्तान से पोलियो भारत आने से इंकार नहीं किया जा सकता। जाहिर है देश को इसके लिए आगे भी भरपूर सतर्कता बरतना होगी। जो बच्चे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रास्ते भारत आ रहे हैं उन्हें सीमा पर पोलियो ड्रॉप पिलाकर ही देश के अंदर प्रवेश दिया जाए। इसके अलावा पाकिस्तान से आने वाले यात्री जब तलक पोलियो ड्रॉप या टीका लगे होने का प्रमाणपत्र नहीं दें तब तक उन्हें भारत में प्रवेश नहीं दिया जाए। यदि हमने वाकई गंभीरता से यह सावधानियां बरतीं तो देश भविष्य में भी पोलियो मुक्त बना रहेगा। /p