इन झूठी योजनाओं से मत बहकाइए श्रीमान

– हरे राम मिश्र – हाल ही में नरेन्द्र मोदी सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना’ की शुरुवात यह कहते हुए की कि इससे देश के ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे उन्हें नौकरी मिलने में आसानी होगी। मोदी सरकार का दावा है कि इस प्रशिक्षण के बाद ग्रामीण युवाओं को नौकरी […]

Publish: Jan 18, 2019, 02:16 AM IST

‘इन झूठी योजनाओं से मत बहकाइए श्रीमान’
‘इन झूठी योजनाओं से मत बहकाइए श्रीमान’
strong - हरे राम मिश्र - /strong p style= text-align: justify हाल ही में नरेन्द्र मोदी सरकार ने दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना’ की शुरुवात यह कहते हुए की कि इससे देश के ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे उन्हें नौकरी मिलने में आसानी होगी। मोदी सरकार का दावा है कि इस प्रशिक्षण के बाद ग्रामीण युवाओं को नौकरी के लिए बाजार में भटकना नही पड़ेगा। अगर इस योजना के मसविदे को ध्यान से देखा जाए तो यह बेहद ही हास्यास्पद और देश के युवाओं को भरमाने वाली प्रतीत होती है। वस्तुतः यह योजना महज राजनैतिक ’प्रोपेगंेडा’ से ज्यादा कुछ भी नही है जिसका मकसद मोदी सरकार के उन झूठों का बचाव करना है जिसे उन्होंने चुनाव के वक्त देश की आम जनता बोला था। क्या मोदी सरकार के सिपहसलार देश के वर्तमान जर्जर आर्थिक हालातों को समझने की सामथ्र्य नही रखते जो समाज की उत्पादन शक्तियों को समायोजित करने की ताकत खो चुका है? दरअसल इस योजना की आड़ में मोदी सरकार एक खास रणनीति के तहत देश के बेरोजगार नौजवानों को धोखा देने की कोशिश कर रही है। /p p style= text-align: justify दरअसल आज देश की अर्थव्यस्था भीषण मुश्किलों से गुजर रही है जहां कुशल और अकुशल दोनों ही श्रमिकों के लिए रोजी का जबरजस्त संकट बना हुआ है। अप्रशिक्षित युवाओं की खस्ताहाली तो छोडि़ए आज प्रशिक्षित नौजवानों की बाजार में पूर्ति बहुत ज्यादा है और उनके लिए नौकरियां बहुत ही कम हैं। मुल्क में भीषण बेरोजगारी व्याप्त है जिसमें उच्च प्रशिक्षित युवाओं की भी अच्छी खासी तादात है। सवाल यह है कि जब पहले से ही प्रशिक्षित युवा नौकरी के लिए मारे मारे फिर रहे हैं तो फिर प्रशिक्षण की ऐसी योजनाएं किसके हित चिंतन के लिए बनाई गई हैं? वास्तव में रोजगार की तलाश में उच्च शिक्षित प्रोफेशनल युवाओं की दुर्गति मोदी सरकार के इस प्रायोजित ’प्रोपेगेंडा’ पाॅलिटिक्स को बेनकाब कर देती है। /p p style= text-align: justify जब से चाइना के लिए देश का बाजार खोला गया है मुल्क के परंपरागत उद्योग धंधे बड़े पैमाने पर तबाह हो चुके हैं। इनमें काम कर रहा एक बड़ा वर्ग अपनी रोजी खो कर उजरती मजदूरों के कतार में सम्लित हो चुका है। सवाल यह है कि मोदी सरकार का यह प्रशिक्षण इन्हें कैसे अपने पुराने रोजगार से जोड़ेगा? और क्या इनके उत्पाद चाइना के बनाए गए उत्पाद से बाजार में प्रतिस्पर्धा भी कर पाएंगे? /p p style= text-align: justify वैसे भी प्रशिक्षण पा लेना नौकरी की गारंटी नही होता। आज आईटी और मैनेजमेंट के छात्रों की मांग इतनी ज्यादा गिर गई है कि वे मामूली वेतन पर कंप्यूटर आॅपरेटर और सेल्समैन का काम पाने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। दिल्ली जैसी जगहों पर कई संस्थानों के छात्र साफ्टवेयर कंपनियों में मुफ्त में काम कर रहे हैं। ऐसे कई छात्र हैं जो पीजीडीसीए बीसीए और बीबीए करने के बाद या तो खाली शीशियों में मंजन भर रहे हैं या फिर एटीम मशीनों की रखवाली। उनकी शिक्षा अर्थव्यवस्था में कहीं ’फिट’ नही बैठ रही है। इसलिए यह माना जाना कि इस मुल्क में पेशेवर युवाओं की कमी है बेहद हास्यास्पद और झूठी बात होगी। /p p style= text-align: justify वैसे भी इस समय रोजगार के क्षेत्र में बेहद ही निराशाजनक माहौल है। उस पर भी कोढ़ में खाज यह कि शासक वर्ग हमेशा देश से यह झूठ बोलता रहा है कि यहां के युवाओं में नौकरी के लिए योग्यता ही नही है जबकि देश में नौकरियों की कमी नही है। दरअसल शासक वर्ग इस प्रचार की आड़ में देश के युवाओं को रोजगार देने की अपनी बुनियादी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है। जबकि बेरोजगारी का संकट बिकाऊमाल मुनाफाखोरी की उत्पादन और वितरण प्रणाली की आवश्यक उपज है और इस प्रकार की योजनाएं इसे कदापि खत्म नही कर सकतीं। /p p style= text-align: justify अगर यह मान भी लें कि मोदी नेक नीयती से इन युवाओं के बारे में सोच रहे हैं तो भी अर्थव्यवस्था की वर्तमान हालत इन्हे नौकरी देने की गवाही नही करती। आज देश का उत्पादन पिछले दस सालों के सबसे न्यूनतम स्तर को छू रहा है। जिसका सीधा मतलब है कि रोजगार के लिए कहीं कोई ’स्पेस’ अभी लंबे समय तक नही बनने जा रहा है। मेक इन इंडिया के ’प्रोपेगेंडे’ और अथाह विदेशी पूंजी निवेश के प्रायोजित प्रचार के बीच नरेन्द्र मोदी सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है जिसमें सभी सरकारी नौकरियों के लिए की जा रही भर्तियों पर तत्काल प्रभाव से एक साल के लिए रोक लगा दी गई है। इंफोसिस जैसी दिग्गज कंपनी ने अगले एक साल तक नई भर्तियां करने से इनकार कर दिया है। जाहिर सी बात है इन फैसलों का सबसे ज्यादा असर देश के बेरोजगार नौजवानों पर सीधे पड़ेगा और उनके नौकरी पाने के रास्ते बंद हो जांएगें। ऐसी स्थिति में कहीं कोई आंदोलन न पैदा हो इसके लिए दीन दयाल जैसी योजनाओं का झुनझुना आम जनता को दिया जा रहा है। इसके पीछे की असलियत लोगों को भरमाना मात्र है। /p p style= text-align: justify अब सवाल यह है नौजवानों की इस दुर्गति का असल जिम्मेदार किसे माना जाए। क्या नरेन्द्र मोदी सरकार इस भयावह बेरोजगारी से निपटने के लिए वाकई ईमानदार हैै? अब तक के कदमों से ऐसा लगता है कि कहीं कुछ भी गंभीरता से होने नही जा रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था आज जिस भयानक मंदी में फंस चुकी है वहां से निकलना इसके लिए आसान नही है। जब तक आर्थिक ढांचे में आमूल चूल बदलाव के बारे में नही सोचा जाता तब तक चाहे जिस देश की यात्रा की जाए चाहे जो नारे दिए जाएं देश के बेरोजगारों के आंसू सरकार नही पोंछ सकती। वैसे भी मोदी उस रास्ते पर देश को ले जा रहे हैं जहां ये समस्याएं हल होने की जगह और बढ़ जाएंगी। कुल मिलाकर मोदी के सपनों का हिन्दुस्तान आम आदमी की बेहतरी की गारंटी नही करता है। दरअसल इस किस्म की योजनाओं का मकसद महज ’झूठ’ की राजनीति को बनाए रखना है। वैसे भी बाजार में श्रम की अधिकता न्यूनतम मजदूरी को हमेंशा ही गिरा देती है। मोदी सरकार भी यही चाहती है। इस योजना के मार्फत सरकार का मकसद बाजार में श्रम की बहुतायत पैदा करके देश के देशी-विदेशी पूंजीपतियों का और ज्यादा फायदा कराना है ताकि वे न्यूनतम वेतन में ही मजदूरों का शोषण कर सकें। कुल मिलाकर यह योजना देश के युवाओं का आंसू पोंछने के लिए तो कतई ही नही है और इसलिए इससे कोई उम्मीद भी नही है। /p