समाज व राजनीति का अपराधीकरण

– डा. देव प्रकाश खन्ना – हमारे देश में प्रजातंत्र ने अपनी जड़े गहरी जमा ली है। भले ही इससे हमारे आसपास के देश, जो प्रजातान्त्रिक प्रणाली वाले नहीं है वे अपने आप को पिछड़ा महसूस करने को बाध्य होते दिखते हों पर वास्तविकता कुछ ऐसी है कि हम भारतवासी भी अपने प्रजातांत्रिक स्तम्भों के […]

Publish: Jan 24, 2019, 11:59 PM IST

समाज व राजनीति का अपराधीकरण
समाज व राजनीति का अपराधीकरण
strong - डा. देव प्रकाश खन्ना - /strong p style= text-align: justify हमारे देश में प्रजातंत्र ने अपनी जड़े गहरी जमा ली है। भले ही इससे हमारे आसपास के देश जो प्रजातान्त्रिक प्रणाली वाले नहीं है वे अपने आप को पिछड़ा महसूस करने को बाध्य होते दिखते हों पर वास्तविकता कुछ ऐसी है कि हम भारतवासी भी अपने प्रजातांत्रिक स्तम्भों के गम्भीर राजनीतिकरण और अपराधीकरण से चिन्तित है। ऐसा लगता है कि हमारे देश के सभी राजनैतिक दल येनकेन प्रकारेण नीति से या अनीति से गरीबों के या अपराधियों के सहयोग से राजनैतिक सत्ता हथियाने के सारे हथकण्डे खुलकर अपनाने में व्यस्त है । यदि हमें उन हथकण्डों से देश में राजनैतिक सत्ता पाने में अथवा सत्ता पाकर उसे बनाये रखने में सफलता मिलती है तो वे सारे हथकण्डे हमें उचित सही व न्यायपूर्ण लगते हैं । वर्तमान प्रशासन में पुलिस व्यवस्था में न्यायप्रणाली में चुनाव प्रणाली में अनेक स्थलों पर अनेक सुधारों की बातें तो हमारे नेतागण यथावसर करते रहते हैं पर वास्तव में उन सुधारों को कार्यरूप में परिणत करने में उनकी रूचि अन्दर से नहीं दिखाई पड़ती । हमारे राजनेताओं चाहे वे किसी भी दल के हों पक्ष के या विपक्ष के खाने के दांत और हैं व दिखाने के और । /p p style= text-align: justify संसदीय व नैतिक दृष्टि से हमारे विधायकों व सांसदों का व्यवहार एक पहचान चिन्ह होना चाहिए। परन्तु सांसदों के असंसदीय व्यवहार की कितनी ही शिकायतें हुई व लोकसभा में इस पर जाॅच रिपोर्ट तक भी प्रस्तुत हुई । जाॅच समितियों ने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के तय मापदण्डों के प्रति निष्ठा का सम्यक् प्रदर्शन नितान्त आवश्यक माना । केन्द्रीय व राज्य सरकारों के मंत्रियों के लिए एक विस्तृत और नई आचार संहिता लागू करने की बात जोर-शोर से कही जाती है । उनके लिए हर वर्ष अपने आय-व्यय का ब्यौरा देने की बाध्यता को अनिवार्य भी किया जा चुका है । सांसदों/विधायकों के द्वारा संसद भवन / विधान सभा भवनों में चर्चाओं व कार्य के दौरान शालीन भाषा एवं शालीन व्यवहार रखने के आदेशों के बावजूद इन पावन संसदीय केन्द्रों में आचरण की पवित्रता आज भी अक्षुण्ण नहीं है । पर अभी तक इनमें कोई आचार-संहिता लागू करने की बात नहीं बन पाई। बस उसकी बातें ही ज्यादा होती है। /p p style= text-align: justify अपराधी प्रकृति वाले तथा अदालतों से सजा पाये लोगों के द्वारा चुनावों में टिकट पाकर चुनाव लड़ने व चुनाव जीतकर अपराधिक रिकार्ड वालों का अहित होने से बचाने के सफल उपायों के कारण आज देश की निर्वाचन आधारित प्रतिनिधि संस्थाओं में काफी मात्रा में अपराधिक पूर्वभूमिका वाले लोग चुनाव जीतकर आने में सफल होते पाये गये हैं । वर्तमान संसद में 2014 के चुनावों के बाद लगभग 15% सांसद अपराधिक रिकार्ड वाले आ गये हैं । सुप्रीम कोर्ट द्वारा जुलाई 2013 को दिये ऐतिहासिक फैसलें में जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8(4) को रद्द करते हुए धारा बी(3) के प्रावधानों को बहाल किया है । इसके अनुसार अब ’किसी भी अपराध के लिए दो साल की कैद से दण्डित व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है और चुनाव लड़ने की अपात्रता की अवधि 6 वर्ष की कर दी गई है’’। /p p style= text-align: justify वर्तमान न्यायलयीन व्यवस्था में मुकदमों के ट्रायल में सजा से बचने के लिए देरी करते जाना अभी तक अपराधियों का एक बड़ा पसन्दीदा हथियार हो गया है। अतः यह आवश्यक है कि चुने गये जनप्रतिनिधयों पर चल रहे मुकदमों का फैसला जल्दी तथा एक निश्चित समय सीमा में फास्ट हरेक या विशेष कोर्टो से किया जाना चाहिए। न्यायालयीन कार्रवाई को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए निश्चित समय सीमा 6 माह से 3 वर्ष के अन्दर की तय करके उसे क्रियान्वित करने के अति गम्भीर व कड़े प्रयास होने चाहिए। लोक अदालतें फास्ट ट्रेक अदालतें व नई अदालतें बनाकर आवश्यक न्यायिक सुधार लागू किये जाने चाहिए । व मुकदमों के ट्रायल में तरह तरह से होती देरी को रोका जाना चाहिए। /p p style= text-align: justify वर्तमान व्यवस्था के अन्तर्गत प्रशासनों में व्यापत अनैतिकता सत्ता की अपूरणीय भूख सरकारी मशीनरी व पुलिस का गम्भीर दुरूपयोग व पुलिस का राजनीतिकरण पर शीघ्र अंकुश लगाया जाना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा केन्द्रीय शासन व प्रान्तीय शासनों को पुलिस व्यवस्था में कुछ विशेष सुधारों को लागू करने बाबत सितम्बर 2006 में निर्देश देने के बावजूद इनका पालन सतही व शब्द मात्र में किया जा रहा है। कोर्ट के आदेशों के पालन में पुलिस अनुसंधान कार्य में दक्षता बढ़ाने के लिए अभी तक केवल 16 राज्यों में अनुसंधान व लॉ एण्ड आर्डर की शाखाओं को अलग-अलग किया गया है। सभी राज्यों में इसे भी अभी तक लागू नहीं किया । स्थानान्तरों पदोन्नतियों के अधिकार राजनेतागण अपने पास दबाए रखकर पुलिस की निष्पक्ष कार्यप्रणाली को प्रभावित किये चले जा रहे हैं। अब अगली सुनवाई जनवरी 2015 में होगी। /p p style= text-align: justify हमारे देश में राजनैतिक दल मुफ्त की चुनावी रेवड़िया बांटने के लिए होड़ करते रहते हैं । इस सम्बन्ध में चुनाव आयोग यदाकदा पूछताछकर उन्हें रोकने के प्रयास तो करना दिखता है पर किसी प्रभावी नियंत्रण के लिए उसे दण्ड के अधिकार दिये जाने अति आवश्यक है। इसके आभाव में आयोग निष्प्रभावी है। /p p style= text-align: justify राजनीति का अपराधीकरण तब तक रोका जाना सम्भव नहीं लगता जब तक हमारे राजनैतिक दल अपराधिक रूप से दागदार लोगों को चुनाव में प्रत्याशी बनाते रहेंगे । इस पर चुनाव आयोग को अधिकारों से सम्पन्न कर चुनाव-सुधारों को तत्काल लागू किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। ऐसे ही पुलिस के ऊपर राजनैतिक शासन के कड़े नियंत्रण को हटाकर उसे उचित नीति व नियमानुसार कार्य करने के अवसर देने के लिए पुलिस सुधारों को तत्काल व सख्ती से लागू करना चाहिए। /p