Publish: Jan 23, 2019, 12:26 AM IST
h1 style= text-align: center strong पटरी पर कांग्रेस और राहुल उभार /strong /h1
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li strong जावेद अनीस /strong /li
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p style= text-align: justify पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने सियासी समीकरणों को बदल दिया है पिछले करीब साढ़े चार साल में ये पहली बार है जब विलुप्त मानी जा रही कांग्रेस पार्टी ने सीधे मुकाबले में भाजपा को मात दिया है वो भी एक नहीं तीन राज्यों में. चुनाव परिणामों ने इस मिथ को तोड़ दिया है कि मोदी को हराया नहीं जा सकता है इस जीत ने राहुल गांधी को भी एक नेता के तौर पर स्थापित कर दिया है. उन्होंने मृतशैया पर पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने का काम किया है और कभी चुनौतीविहीन माने जा रहे नरेंद्र मोदी के मुकाबले खुद को खड़ा कर दिया है. बहरहाल 2019 का चुनाव दिलचस्प हो गया है. अब यह एकतरफा नहीं होने वाला और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. /p
p style= text-align: justify ऐसा लगता है कि भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अभी तक के अपने सबसे बड़े संकट के दौर से उबर चुकी है. 2014 में उसे अपने सबसे बड़े चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा था और उसे पचास से भी कम सीटें मिल सकी थीं. वैसे तो चुनाव में हार-जीत सामान्य है लेकिन यह हार कुछ अलग थी. इससे पहले कांग्रेस जब कभी भी सत्ता से बाहर हुई थी तो उसकी वापसी को लेकर इतना संदेह नहीं किया जाता था लेकिन 2014 की हार कुछ अलग थी. इसके बाद विजेताओं की तरफ से कांग्रेस मुक्त भारत की उद्घोषणा कर दी गयी थी और कांग्रेस की वापसी को लेकर कई कांग्रेसी ही संदेह करते हुए नजर आ रहे थे. /p
p style= text-align: justify लोकसभा चुनाव में हार के बाद लम्बे समय तक कांग्रेस कमोबेश वहीँ कदमताल कर रही थी जहाँ भाजपा ने उसे 2014 में छोड़ा था. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस की रणनीति में बदलाव देखने को मिला जहां से उसने अपने हिन्दू विरोधी छवि से पीछा छुड़ाने के लिये गंभीरता से प्रयास करने शुरू किये. कांग्रेस ने अपना यह कायाकल्प बहुत ही विपरीत परिस्थितयों में किया है बिना किसी चमकदार चेहरे संसाधन विहीन लुंज-पुंज संगठन हताश कार्यकर्ताओं और भौपू मीडिया के बावजूद उसने अपने अस्तित्व को बचाया और नये तरीके से गढ़ा है. बहरहाल 2018 ने जाते-जाते कांग्रेस को लाईफ लाईन दे दिया है जिसके सहारे वो 2019 के आम चुनाव में नये जोश और तेवर के साथ उतरेगी. /p
p style= text-align: justify 11 दिसबंर 2018 को राहुल गांधी का दिन माना जायेगा. यह उनके कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर एक साल पूरा करने का दिन भी है जिसका सेलिब्रेशन उन्होंने अभी तक के अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी सफलता के साथ किया है. इस चुनावी सफलता ने ना केवल कांग्रेस पार्टी के भीतर उनके नेतृत्व पर जीत की मुहर लगाई है बल्कि विपक्षी खेमे में भी उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है. इससे लम्बे समय से देश की राजनीति में अपना मुकाम तलाश रहे राहुल गांधी आखिरकार एक राजनेता रूप में स्थापित हो गये है कभी उन्हें गंभीर राजनेता ना मानने वाले लोग आज उन्हें गंभीरता से लेने लगे हैं . /p
p style= text-align: justify राहुल का अभी तक का सफर संघर्ष और विफलताओं से भरा रहा है. इस दौरान उनके हिस्से में पराजय जबरदस्त आलोचनायें और दुष्प्रचार ही आये हैं. लम्बे समय तक उनकी छवि एक ऐसे अनिक्षुक थोपे हुए अगंभीर बेपरवाह कमअक्ल और ‘पार्ट टाइम पॉलीटिशियन’ राजनेता की रही है जिसकी भारतीय राजनीति की शैली व्याकरण और तौर-तरीकों पर पकड़ नहीं है जो अनमनेपन से सियासत में है. इस दौरान उन्हें पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह एक प्रेरणादायक और चुनाव जीता सकने वाले नेता के तौर पर स्वीकृति नहीं मिली. उनके जितना मजाक भी शायद ही किसी और राजनेता का बनाया गया हो सोशल मीडिया पर वे ट्रोल सेना के फेवरेट थे. इस स्थिति में उनके पास वापसी करने या फिर विलुप्त हो जाने दो ही विकल्प बचे थे. /p
p style= text-align: justify इन सबके बीच दो ऐसी घटनायें होती हैं जिन्हें राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिये टर्निंग पॉइन्ट कहा जायेगा पहला पंजाब विधानसभा चुनाव में “आप के गुब्बारे का फूटना और दूसरा नीतीश कुमार का भगवा खेमे में चले जाना. पंजाब में “आप की विफलता से राष्ट्रीय स्तर पर उसके कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरने की बची-खुची सम्भावना को पूरी तरह से समाप्त कर दिया इसी तरह से नीतीश कुमार को 2019 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा माना जा रहा था लेकिन उनके पाला बदल लेने के बाद सारा फोकस राहुल गांधी पर आ गया. /p
p style= text-align: justify इसके बाद गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद से राहुल एक जुझारू नेता के रूप में उभर कर सामने आते हैं यहां वे कुछ अलग ही अंदाज में दिखाई दिये थे जिसे देखकर लगा कि एक राजनेता के तौर पर उनकी लंबी और उबाऊ ट्रेनिंग खत्म हो चुकी है. गुजरात में उन्होंने मोदी–शाह की जोड़ी को उन्हीं की जमीन पर बराबरी का टक्कर दिया था फिर कर्नाटक में भी उन्होंने आखिरी समय पर गठबंधन की चाल चलते हुये भाजपा की इरादों पर पानी फेर दिया था. गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद से राहुल गांधी ने अपनी पार्टी को एक नयी दिशा दी है इसे भाजपा और संघ के खिलाफ काउंटर नैरेटिव तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इसने राहुल और उनकी पार्टी को मुकाबले में वापस आने में मदद जरूर की है. राहुल लगातार खुद को पूरे विपक्ष की तरफ से नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे थे और विपक्ष के दूसरे नेताओं के मुकाबले वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर और आक्रामक राजनीति कर रहे थे. आज वे मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की सबसे बुलंद आवाज बन चुके हैं. तीन भाजपा शासित राज्यों में जीत के बाद राहुल के इन कोशिशों को एक ठोस मुकाम मिल गया है यह राहुल की अभी तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है. /p
p style= text-align: justify आज राहुल गांधी विपक्ष की तरफ से ना केवल विकल्प बनकर उभरे हैं बल्कि काफी हद तक वे देश के राजनीति का एजेंडा तय करने की स्थिति में भी आ गये हैं. दरअसल विपक्ष में रहते हुये राहुल गांधी की सबसे बड़ी सफलता यही रही है कि वे मोदी साकार को आर्थिक मोर्चे पर घेरने में सफल रहे हैं. वे रोजगार-भ्रष्टाचार और किसान मुद्दों को लेकर को लगातार उठाते रहे हैं इन चुनावों में भाजपा को जो नुकसान हुआ है उसके पीछे सबसे बड़ा कारण किसान-ग्रामीण असंतोष और मोदी सरकार की आर्थिक विफलता मानी जा रही है विपक्ष की तरफ से. नोटबंदी जीएसटी बैंकिंग-राफेल में भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी के मुद्दे को अकेले राहुल ही उठाते रहे हैं. /p
p style= text-align: justify आज राहुल गांधी ने किसानों की कर्ज माफी को देश की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया है मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने दस दिनों के भीतर किसानों की कर्जमाफी का वादा किया था और इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने सरकार बनाते ही किसानों के कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया है. अब राहुल सीना तानकर ऐलान कर रहे हैं कि “किसानों के कर्ज माफी के लिए हम केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे जब तक किसानों का कर्ज माफ नहीं किया जाता तब तक हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न बैठने देंगे और न ही सोने देंगे . /p
p style= text-align: justify लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आर्थिक मुद्दों की वापसी के बाद भाजपा के लिये इसे अपने मंदिर-गाय जैसे कोर मुद्दों पर वापस ले आसान नहीं होगा. ऐसी स्थिति में यह और भी मुश्किल है जब कांग्रेस नरम हिन्दुतत्व के रास्ते पर आगे बढ़ते हुये इन मुद्दों पर भाजपा का एकाधिकार को चुनौती पेश कर रही है. /p