Nacha: नाचा के जरिए सामाजिक बुराइयों को दूर करने वाले दाऊ दुलार सिंह मंदराजी

Dau Dular Singh Mandraji: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नाचा के माध्यम से मनोरंजक अंदाज में सामाजिक बुराइयों को दूर करने वाले दाऊ दुलार सिंह मंदराजी को पुण्यतिथि पर किया याद

Updated: Sep 25, 2020, 06:32 AM IST

रायपुर। आज छत्तीसगढ़ी लोककला 'नाचा' के जनक दाऊ दुलार सिंह मंदराजी की पुण्यतिथि है। उन्होंने गांवों के लोक कलाकारों को संगठित कर 'नाचा' को एक नये मुकाम तक पहुंचाने का काम किया था। उन्होंने नाचा-गम्मत के जरिए सामाजिक बुराइयों को दूर करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

जमींदार परिवार को पंसद नहीं था गाना बजाना

राजनांदगांव के रवेली ग्राम में दाऊ दुलार सिंह मंदराजी का जन्म 1 अप्रैल 1910 को हुआ था। उनके पिता संपन्न जमींदार थे। उस दौर में उनकी चार-पांच गांवों की मालगुजारी हुआ करती थी। मंदराजी को बचपन से नाच-गाने में खास रुचि थी। लेकिन उनके परिवार को यह सब पसंद नहीं था। उस दौर में गांवों में खड़े साज का बोल-बाला था, जो आगे चलकर गम्मत-नाचा के रूप में विकसित हुआ और मंचों पर उसकी प्रस्तुतियां होने लगीं। दाऊ दुलार सिंह मंदराजी ने नाचा को मंच पर लाने और उसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

मंदराजी ने अपने गांव रवेली से की नाचा की शुरुआत

मंदराजी ने लोककला नाचा को परिष्कृत करने का बीड़ा भी उठाया। उन्होंने अपने रवेली गांव में नाचा का प्रदर्शन शुरु किया। अपने साथ कलाकारों की एक टोली बनाई। धीरे-धीरे उनकी टोली लोकप्रिय होने लगी। राजनांदगांव के रवेली गांव से निकलकर छत्तीसगढ़ी नाचा की ख्याति चारों तरफ फैलने लगी। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, जगदलपुर, अंबिकापुर, रायगढ़ से लेकर टाटानगर तक कई जगहों पर नाचा के कार्यक्रम होने लगे। मंदराजी गम्मत-नाचा का परचम फैलाते और आगे बढ़ते रहे।  

   

18 साल की उम्र में रवेली नाचा पार्टी की नींव रखी

मंदराजी ने समाज में फैली असमानता, जातपात, छुआछूत की सामाजिक बुराइयों को मिटाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने गांवों में जाकर गीत-संगीत के जरिए समाज को जागृत करने का काम किया। मंदराजी ने सन 1928-29 में 18 साल की उम्र में ही गांव के कुछ लोक कलाकारों के साथ मिलकर रवेली नाचा पार्टी की नींव रखी। इस रवेली नाचा पार्टी के साथ छत्तीसगढ़ के कई मूर्धन्य और नामी कलाकार जुड़े। उन्होंने 1928 से 1953 तक अपनी नाचा लोककला का प्रदर्शन किया। इस दौर में मंदराजी ने नाचा लोककला में कई बड़े सुधार भी किये।

सामाजिक बुराइयों के प्रति फैलाई जागरुकता

सन 1940 से 1952 का समय रवेली नाचा पार्टी का स्वर्ण युग कहा जाता है। उस दौर में मंदराजी दाऊ की रवेली नाचा पार्टी का डंका बजता था। उनकी रवेली नाचा पार्टी ने कई शहरों में अपनी कला का जौहर दिखाया और ख्याति अर्जित की। मंदराजी दाऊ ने रवेली नाचा पार्टी के जरिये सामाजिक बुराइयों को दूर करने और जन जागरण में भी अहम भूमिका निभायी। समाज में फैली नशाखोरी, बहुपत्नी प्रथा, शादी में फिजूलखर्ची, सामंतवाद, ग, छुआछूत पर जमकर कटाक्ष किया। इसके साथ ही उन्होंने लोगों को पर्यावरण संरक्षण, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य और साक्षरता के प्रति भी जागरुक करने का प्रयास किया।

छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति को जीवंत रखने में अहम योगदान

मंदराजी दाऊ ने नाचा के जरिए छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को जीवंत रखा और उसे संरक्षित करने के लिए आजीवन लगे रहे। उन्होंने अपना पूरा जीवन नाचा की समृद्धि को समर्पित कर दिया। उन्होंने नाचा को आम लोगों के बीच प्रतिष्ठित करने और छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों को सहारा देने का काम भी किया।

लोक कला, शिल्प के लिए दाऊ मंदराजी सम्मान दिया जाता है

मंदराजी के निधन के 36 वर्ष बाद भी उनका व्यक्तित्व और कृतित्व नई पीढ़ी को प्रेरणा देता है। छत्तीसगढ़ में उनकी याद में लोक कला/शिल्प के लिए दाऊ मंदराजी सम्मान भी स्थापित किया गया है। नाचा के पितामह पर केंद्रित एक बॉयोपिक फ़िल्म भी बनी है, जो 28 जून 2019 को रिलीज हुई थी। मंदराजी ने गीत, संगीत व नाचा के जरिये समाज में फैले अंध विश्वाश और छुआछूत पर जोरदार ढंग से प्रहार किया है। मंदराजी लोक कला नाचा के माध्यम से समाज में असमानता को खत्म करना चाहते थे। 

मंदराजी को राज्यापल, मुख्यमंत्री ने किया याद

छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लोककला नाचा के जनक दाऊ दुलार सिंह मंदराजी को उनकी 36वीं पुण्यतिथि पर याद किया है। राज्यपाल का कहना है कि मंदराजी ने लोकनाट्य नाचा को एक नई पहचान दिलाई और छत्तीसगढ़ का नाम देश-विदेश में रोशन किया। मंदराजी का सारा जीवन कला के लिए ही समर्पित रहा है। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ी लोककला और संस्कृति में मंदराजी के अविस्मरणीय योगदान को याद किया।

 

उन्होंने अपने ट्वीट संदेश में लिखा है कि दाऊ मंदराजी ने गावों के लोक कलाकारों को संगठित कर नाचा को एक नये आयाम तक पहुंचाया। नाचा-गम्मत को मनोरंजन के साथ-सात समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ प्रचार प्रसार का सशक्त माध्यम बनाया। दाऊ जी ने नाचा को जीवंत बनाए रखने, लोक कलाकारों को संगठित करने, नाचा के माध्यम से सामाजिक पुनर्जागरण और जनसामान्य में नाचा कला को पुनर्स्थापित करने में महती भूमिका निभाई।