दूसरों का पेट भरने वालों की जेब खाली
असंगठित रेस्टोरेंट कारोबारियों की बात कहने और सुनने वाला कोई नहीं है।

सरकार गरीबों का पेट भरने का इंतजाम कर रही है। वह बड़े उद्योगों से लेकर छोटे श्रमिक तक की फिक्र कर रही है मगर रेस्टोरेंट जैसे व्यवसाय की ओर सरकार का ध्यान नहीं है। बड़े रेस्टोरेंट संचालक तो अपने संगठन के जरिए हक की लड़ाई लड़ लेंगे मगर हमारी कौन सुनेगा? हम अपने स्टॉफ को सेलेरी भी दे रहे है। जो फंसे हुए हैं उन्हें खाना भी दे रहे हैं। काम बंद है मगर बिजली बिल भर रहे हैं। आगे कोई उम्मीद नहीं कि ग्राहक आएंगे भी या नहीं। दूसरों का पेट भरने वाले रेस्टोरेंट संचालकों की भी तो सुने सरकार।
भोपाल के पॉश एरिया शाहपुरा में रेस्टोरेंट चला रहे आशीष मेहता के ये शब्द समूचे रेस्टोरेंट कारोबारियों की पीड़ा को बयान करते हैं। इधर सरकार लॉकडाउन में छूट के नियम तैयार करने में जुटी है और उधर रेस्टोरेंट व्यवसायी अपने बिजनेस को दोबारा खड़ा करने की चिंता में डूबे जा रहे हैं।
इस फिक्र का कारण भी है। देश भर में 21 दिनों के लिए 25 मार्च से लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। जिसके बाद से रेस्टोरेंट कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया है। डाइन-इन रेस्टोरेंट की आय तो खत्म हुई है, दिल्ली में पिज्जा डिलेवरी बॉय के संक्रमित होने की सूचना मिलने के बाद होम डिलेवरी भी घटी है। अब विश्व की प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि रेस्टोरेंट इंडस्ट्री को दो माह के लॉकडाउन के झटके से उबरने में साल भर का समय लगेगा। इस रिसर्च के मुताबिक कोरोना की वजह से देश के डाइन-इन रेस्टोरेंट की बिक्री में 90 फीसदी की कमी आई है। ऑनलाइन ऑर्डर भी 50 से 70 फीसदी कम हुए हैं। लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए रेस्टोरेंट 45 दिनों तक केवल 25 से 30 प्रतिशत ही सर्विस दे पाएंगे। ऐसे में शुरूआती दिनों में डाइन-इन रेस्टोरेंट में कम लोग ही जाएंगे।
क्रिसिल की रिसर्च कहती है कि एक बार प्रतिबंध हटा दिए जाने के बाद रेस्टोरेंट को अपने बिज़नेस मॉडल पर फिर से काम करना होगा और बिज़नेस चलाने की चुनौतियों को पार करना होगा। उन्हें रेस्टोरेंट के प्रोटोकॉल में सुधार करना होगा, जिससे लागत बढ़ेगी। लोग भी कम आएंगे जिसका असर भी इस सेक्टर पर पड़ने की आशंका है।
क्रिसिल ने संगठित रेस्टोरेंट उद्योग की ही बात की है। मगर हर शहर और कस्बों के लाखों असंगठित रेस्टोरेंट कारोबारियों की बात कहने और सुनने वाला कोई नहीं है। परिवहन बंद है तो रेलवे स्टेशनों और बस स्टेण्ड के बाहर के रेस्टोरेंट भी बंद है। वे पूरी तरह यात्रियों की आवाजाही पर निर्भर हैं। इसी तरह विद्यार्थियों और कामकाजी लोगों के न होने से कई टिफिन सेंटर व भोजनालय चलाने वालों को कोई उम्मीद नहीं बची है कि वे जल्द काम शुरू कर पाएंगे।
भोपाल के रेस्टोरेंट व्यवसायी आशीष मेहता कहते हैं कि उनके रेस्टोरेंट 25 मार्च से ही बंद है। मगर स्टॉफ फंस गया है। वे उन्हें पूरी सेलेरी दे रहे है। वे यहां फंसे हैं तो उनके खाने का जिम्मा भी उठा रहे हैं। सरकार बिजली बिल में कोई छूट नहीं दे रही है। कारोबार बंद है तो वे बिल नहीं भर पाए हैं। अभी केवल मार्च का बिल भर कर कनेक्शन कटने से रोका। आशीष मेहता ने कहा कि यदि सरकार ने सहायता नहीं की तो छोटे रेस्टोरेंट संचालकों के लिए दोबारा खड़ा होना मुश्किल हो जाएगा।
हमारा क्या होगा यह भी तो सोचे सरकार
डीबी सिटी जैसे मॉल में 10 डाउन स्ट्रीट का संचालन करने वाले पलाश पटेल ने कहा कि अधिकांश रेस्टोरेंट किराए के भवन पर संचालित हैं। लॉकडाउन खत्म होने के बाद सबसे बड़ी समस्या वर्किंग केपिटल की आएगी। हमें चिंता है कि किराया, लोन वगैरह कैसे भरेंगे। हमारा व्यवसाय पार्टी नाइट पर टिका है। यदि सोशल डिस्टेंसिंग का नियम लागू होगा तो हमारा काम तो शुरू ही नहीं हो पाएगा। ऐसे में हमें उम्मीद है कि सरकार हमारी मदद करेगी। यदि मदद नहीं मिली तो हम स्टॉफ कम करेंगे और इस तरह बेरोजगारी बढ़ेगी। सरकार को किराए में कमी करवाने में हस्तक्षेप करना चाहिए। छह माह तक रेंट आधा करवाया जा सकता है। वह बार लाइसेंस फीस और टैक्स कम नहीं करती है तो हमारे लिए काम करना असंभव हो जाएगा।