CMIE: गलत नीतियों से और गहरा सकता है बेरोजगारी संकट, जरूरत के हिसाब से खर्च नहीं बढ़ा रही सरकार

Economic Crisis : देश में श्रम भागीदारी घटी, रोजगार दर में भी गिरावट, निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ाने का माहौल नहीं

Updated: Sep 24, 2020, 11:19 PM IST

Photo Courtesy: Twitter
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नई दिल्ली। देश की अर्थव्यवस्था पर बारीकी से नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) ने आशंका जताई है कि आने वाले समय में देश में बेरोजगारी के हालात बदतर हो सकते हैं। संस्थान ने इसके लिए केंद्र सरकार की राजकोषीय नीति को जिम्मेदार ठहराया है। खासकर सरकारी खर्च के संबंध में। संस्थान का कहना है कि इस कठिन समय में भी सरकार की नज़र सिर्फ राजकेषीय घाटे पर है। वह ज़रूरत के हिसाब से न तो खर्च बढ़ा रही है और न ही आगे चलकर ऐसा करने का कोई संकेत दे रही है। सरकार की इस नीति की वजह से निजी क्षेत्र को उत्पादन क्षमता और रोज़गार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित नहीं हो रहा है। इसकी वजह से रोज़गार की स्थिति बिगड़ती जा रही है, जो आने वाले समय में विकराल हो सकती है।  

संगठन ने बताया कि हाल के कुछ सप्ताह में बेरोजगारी दर में कमी आई है लेकिन लंबी अवधि के लिए यह पूरी तरह से अर्थहीन है। आंकड़े देते हुए संगठन ने कहा कि पिछले सप्ताह बेरोजगारी दर गिरकर 6.4 प्रतिशत रह गई। लेकिन इसके साथ ही रोजगार की दर घट रही है और श्रम भागीदारी भी गिर रही है। इसलिए हाल के दिनों में बेरोजगारी दर में गिरावट के आंकड़े भ्रमित करने वाले हैं। 

Courtesy: CMIE

संगठन ने बताया कि सितंबर के पहले तीन सप्ताह में रोजगार दर 37.5 प्रतिशत रही, यह औसत रोजगार दर 37.9 प्रतिशत से कम है। इसी तरह श्रम भागीदारी भी घटक 40.3 प्रतिशत रह गई। यह अगस्त में 40.96 फीसदी थी। गिरती हुई श्रम भागीदारी का मतलब है कि लोग रोजगार के अवसरों को लेकर इतने हतोत्साहित हो गए हैं कि अब वे नौकरी खोजने की जगह घर पर ही बैठना पसंद कर रहे हैं। 

सीएमआईई ने एक चिंतित करने वाली टिप्पणी करते हुए कहा कि 21 जून से लगातार गिर रही रोजगार दर आने वाले समय में और भी ज्यादा गिर सकती है। संगठन ने बताया कि अप्रैल में बुरी तरह से गिरने के बाद रोजगार दर की गति कभी ऊपर और कभी नीचे वाली रही है। हालांकि, हर बार सुधार कम हुआ है और गिरावट ज्यादा तेज देखी गई है।