RBI ने जताई चिंता, राज्यों को आर्थिक संकट से बाहर आने में लगेंगे कई साल
RBI Report: बढ़ते खर्च और घटती आय के कारण राज्यों के सरकारी खजाने का घाटा बेतहाशा बढ़ने का खतरा, सरकारें नागरिक सुविधाओं पर खर्च घटा सकती हैं

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के वजह से राज्य अपने वित्तीय ढांचे पर बहुद अधिक दबाव महसूस कर रहे हैं और उनकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में कई सालों का समय लग जाएगा। देश के केंद्रीय बैंक ने चेतावनी दी है कि एक तरफ तो मांग घटने के कारण राज्यों की आमदनी घट रही है और दूसरी तरफ कोरोना महामारी से निपटने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाने की कोशिश में उनका खर्च बढ़ रहा है। घटती आय और बढ़ते खर्च की इस दोहरी मार के कारण आने वाले दिनों में राज्यों पर असहनीय बोझ पड़ने वाला है।
रिज़र्व बैंक ने ये तमाम बातें राज्यों की आर्थिक हालत से जुड़ी अपनी एक रिपोर्ट में कही हैं। यह रिपोर्ट राज्यों के बजट के अध्ययन के आधार पर तैयार की गई है,जिसमें लॉकडाउन से पहले और उसके बाद पेश अलग-अलग राज्यों के बजट में व्यक्त अनुमानों का आकलन करके पूरे देश के लिए एक तस्वीर पेश करने की कोशिश की गई है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि सभी राज्यों को एक सााथ रखकर देखें तो उनका औसत राजकोषीय घाटा राज्य की जीडीपी के करीब तीन प्रतिशत तक हो सकता है। हालांकि कुछ राज्यों में इसके साढ़े चार फीसदी से ज्यादा रहने की भी आशंका है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में आधे से अधिक राज्यों का राजकोषीय घाटा कोविड 19 की वजह से बहुत बुरी स्थिति में पहुंच सकता है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि इस घाटे को कम करने के लिए राज्य सरकारें मूलभूत सेवाओं पर होने वाले खर्च में कटौती कर सकती हैं। इनमें साफ-सफाई, शिक्षा और विकास कार्यों पर खर्च शामिल है। ज्यादातर राज्यों को पहली तिमाही में उनके बजट का पांचवां हिस्सा मिल जाता है, लेकिन इस बार केवल आठवां हिस्सा ही मिल पाया है। इसके बावजूद उन्होंने खर्च को पहले की तरह बरकरार रखा है।
बताया गया है कि राज्यों के राजस्व संग्रह में भारी कमी आने की आशंका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों का अधिकतर राजस्व स्टेट जीएसटी, आबकारी टैक्स, पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाले वैट और स्टैंप ड्यूटी से आता है, जिसमें काफी गिरावट आ सकती है। राजस्व में कमी की मुख्य वजह उत्पादन और मांग में आई गिरावट है। कोरोना महामारी के प्रोटोकॉल्स और मजदूरों के उल्टे पलायन की वजह से भी कई राज्यों की माली हालत में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। इसके अलावा नागरिकों और व्यवसायियों को दी जाने वाली टैक्स छूट का भी राज्यों के राजस्व संग्रह पर बुरा असर पड़ेगा।
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीएसटी संग्रह में 47.2 प्रतिशत की कमी आई है। हालांकि, दूसरी तिमाही में यह कमी घटकर 6.2 प्रतिशत रह गई है। फिर भी, राज्यों पर खर्चों के बढ़े हुए खर्चों के लिए यह पर्याप्त नहीं है। कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने आमदनी बढ़ाने के लिए पेट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ाने का रास्ता चुना है। कई राज्य अपना खर्च पूरा करने के लिए बाजार से उधार भी ले रहे हैं। यह उधारी भी पहले के मुकाबले काफी बढ़ी है। वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2020-21 में राज्यों की उधारी में 90 प्रतिशत का उछाल आया है, जो उनकी आर्थिक सेहत के लिए और भी चिंता की बात है।