शिवराज को उम्‍मीद, केंद्र सरकार दे एमपी का हक़ तो ख़त्म हो क़र्ज़ का सहारा

मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र सरकार से राज्य का रुका हुआ पैसा माँगा है, यह भी कहा है कि अगर प्रदेश की बकाया रक़म नहीं मिलती तो और कर्ज लेने की छूट दी जाए

Updated: Jan 18, 2021, 08:09 AM IST

एक जमाना था जब कर्ज लेकर घी पीने यानि उधारी की लक्‍जरी को हैय दृष्टि से देखा जाता था। मगर इन दिनों राज्‍य सरकारें कर्ज लेकर ही विकास का घी पी रही हैं। मध्‍य प्रदेश में किसी भी दल की सरकार रही हो, उसे अपने काम चलाने के लिए कर्ज पर निर्भर रहना पड़ा है। प्रदेश में 2003 में सत्‍ता में आई भाजपा शासन में कर्ज 8 गुना तक बढ़ गया है। एक तरफ जहां केन्‍द्रीय वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्‍तीय वर्ष 2021-22 के बजट की तैयारी कर रही हैं उसी समय एमपी की चिंता है कि केन्‍द्र उसका रूका पैसा दे ताकि उसे हर माह कर्ज न लेना पड़े।

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 जनवरी शुक्रवार को दिल्‍ली जा कर वित्‍तमंत्री निर्मल सीतारमण, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की। मुख्‍यमंत्री चौहान की यह यात्रा असल में सरकार की घटती आय और बढ़ते कर्ज के बोझ की फिक्र में थी। वे केन्‍द्र सरकार द्वारा पिछले चार सालों से रोके गए एमपी के पैसे की मांग करने ही नहीं गए थे बल्कि स्‍ट्रीट वेंडर से लेकर राज्‍य सरकार के लिए भी कर्ज लेने को आसान बनाने का आग्रह लेकर दिल्‍ली गए थे। उन्‍होंने स्‍ट्रीट वेंडरों के लिए चलाई जाने वाली प्रधानमंत्री स्‍वनिधि योजना में दस हजार का कर्ज देने में आ रही बाधाओं को दूर करने का आग्रह तो किया ही साथ ही गुहार लगाई कि एमपी का रूका पैसा दिया जाए। जब तक यह पैसा मिले तब तक राज्यों को बाजार से एक प्रतिशत अतिरिक्त ऋण उठाने की अनुमति दी जाए। यदि यह अनुमति नहीं मिली तो राज्‍य का वित्तीय प्रबंधन डगमगा जाएगा। मुख्‍यमंत्री चौहान को डर है कि केन्‍द्र ने पैसा नहीं दिया या कर्ज लेने की अनुमति नहीं दी तो विकास कार्य तो रूकेंगे ही जनकल्याण योजनाओं पर संकट गहरा जाएगा। सीएम चौहान की चिंता का एक कारण कम आय भी है। प्रदेश में हर साल 10 से 12 प्रतिशत राजस्‍व बढ़ता है लेकिन इस वित्तीय वर्ष में राज्य को करीब 7 हजार करोड़ रुपए कम राजस्व मिला है। इस नुकसान की पूर्ति के लिए भी प्रदेश सरकार केन्‍द्र की ओर मुंह ताक रही है।

कहां कहां रूका पैसा

वित्‍तमंत्री सीतारमण से मुलाकात में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बताया है कि एमपी ने केन्‍द्रीय योजनाओं पर बेहतर प्रदर्शन किया है। केन्‍द्र सरकार काम के प्रदर्शन के आधार पर राज्यों को राशि स्वीकृत करती है। काम के आधार पर एमपी ने केंद्र से 1600 करोड़ रुपए मांगे थे, लेकिन केंद्र सरकार ने इसमें से 660 करोड़ रुपए की ही स्वीकृति दी है। इनमें से भी 330 करोड़ रुपए अभी नहीं मिले हैं। कोरोना काल में पूरे प्रदेश सरकार ने गरीबों को लगभग सात हजार करोड़ खर्च कर राशन और में गरीब कल्याण योजना के तहत जरूरतमंदों को दाल उपलब्ध करवाई है। यह पैसा भी केन्‍द्र ने नहीं दिया है। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से मुलाकात में सीएम चौहान ने याद दिलाया है कि वर्ष 2011-12 से अब तक खाद्य वितरण प्रणाली के लिए राज्‍य सरकार ने 3700 करोड़ रूपए व्यय किए हैं। यह पैसा भी लंबित है। यह स्थिति तब है जब वर्ष 2020 के आम बजट में केन्द्र सरकार ने प्रदेश के हिस्से से 14 हजार 233 करोड़ रुपए कटौती की थी। केंद्र सरकार ने आम बजट में मप्र को 49,517.61 करोड़ रुपए दिए थे लेकिन पुनरीक्षित अनुमान में केंद्रीय करों में प्रदेश को मिलने वाली हिस्सेदारी में से 11,556 करोड़ रुपए की कटौती की गई थी। जुलाई 2019 में की गई 2,677 करोड़ रुपए की कटौती मिलाकर यह राशि 14,233 करोड़ रुपए हो गई थी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली और उपार्जन के लिए मिलने वाले बजट में भी 30 फीसदी की कटौती कर दी गई थी। राज्य सरकार ने प्राकृतिक आपदा के लिए केंद्र से 7000 करोड़ रुपए की मांगे थे लेकिन मिले थे केवल 1700 करोड़ रुपए।

जीएसटी ने आय छीनी, केन्‍द्र ने हक रोका

वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद आय के मामले में राज्‍य पूरी तरह केन्‍द्र पर निर्भर हो गए हैं। केन्‍द्र सरकार ने भी वादा किया था कि वह जीएसटी के कारण राज्‍यों को होने वाले नुकसान की भरपाई करेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने जीएसटी की क्षतिपूर्ति का पैसा 2017-18 से देना शुरू किया है। पहले ही साल कुल क्षतिपूर्ति 3462 करोड़ में से 951 करोड़ रुपए रोककर उसे वर्ष 2018-19 के लिए शिफ्ट कर दिया गया। इसी तरह पहले साल का बैलेंस मिलाकर वर्ष 2018-19 में 3253 करोड़ रुपए मिलने चाहिए थे, लेकिन फिर 386 करोड़ शिफ्ट करके 2019-20 में देने की बात कही गई थी। तब से लगातार पैसा अटक रहा है। बीते दिनों केन्द्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई जीएसटी काउंसिल की 41वीं बैठक एक मात्र एजेंडा राज्यों के जीएसटी राजस्व में आई कमी की क्षतिपूर्ति ही था। इस बैठक में एमपी के वाणिज्यिक कर और वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बताया था कि वित्तीय वर्ष 2020-2021 में प्रदेश को मात्र 2600 करोड़ की क्षतिपूर्ति प्राप्त हुई है जबकि 5995 करोड़ की क्षतिपूर्ति राशि बकाया है। इस बैठक में एक राय में तय किया गया था कि जीएसटी राजस्व में आई कमी की पूर्ति के लिए राज्‍य आरबीआई के माध्यम से कर्ज लेंगे। यही कारण है कि एमपी सरकार लगातार कर्ज लिए जा रही है।

क़र्ज़ के सहारे विकास की झांकी

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पार्टी के केन्‍द्रीय मंत्रियों के साथ मुलाकात में साफ कर दिया है कि प्रदेश के आर्थिक संकट को टालने के लिए बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है। यदि केन्‍द्र से अब भी सहायता नहीं मिली तो प्रदेश में कई काम रूक जाएंगे। इस संकट से निपटने के लिए मुख्‍यमंत्री युवा स्‍वरोजगार योजना को फिलहाल रोक दिया गया है। प्रदेश में टैक्स का बोझ कई वस्तुओं पर ज्यादा है। अधिक वैट के चलते सबसे महंगा पेट्रोल बिक रहा है और डीजल की अधिक कीमतों में भी मप्र देश में तीसरे नंबर पर है। जनता पर टैक्‍स के इस बोझ के बाद भी अभी प्रदेश पर कुल कर्ज 2 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है। जबकि 2003 में जब भाजपा सरकार सत्‍ता में आई थी तब प्रदेश सरकार पर लगभग 23 हजार करोड़ का कर्जा था। यूं तो एमपी सरकार को हर वर्ष आरबीआई के मापदंडों के हिसाब से लगभग 26 हजार करोड़ का कर्ज लेने की पात्रता है। इसके अलावा सरकार ने सड़क, पुल, कृषि, ग्रामीण पेयजल आदि योजनाओं के लिए भी एडीबी, नाबार्ड तथा वर्ल्ड बैंक से 15 से 20 सालों के लिए कर्ज लिया है। खास बात यह है कि विकास के लिए लिया जाने वाला यह कर्ज सरकार के विभाग कंपनी बना कर लेते हैं और सरकार इस कर्ज को अपने बजट में शामिल नहीं करती है। इस कारण सरकार के आर्थिक आंकड़ें गड़बड़ाते नहीं हैं।

आरबीआई द्वारा दी गई छूट के बाद एमपी की कर्ज लेने की क्षमता भले की बढ़ी है और इस कर्ज से राज्‍य सरकार ने केन्‍द्र से पैसा न मिलने से उठे संकट पर पर्दा कर दिया है मगर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जानते हैं कि यह स्थिति ज्‍यादा दिन नहीं चलने वाली है। तभी उन्‍होंने केन्‍द्रीय वित्‍तमंत्रियों से रोका पैसा मांग लिया। साथ ही कह दिया कि हक नहीं मिलता है तो कर्ज लेने की छूट ही दे दें। अब केन्‍द्र ने हक नहीं दिया तो एमपी और होगा कर्जदार।